दहेज और SC/ST एक्ट का मामला यूँ हुआ खारिज: कोलकाता HC ने साफ़ किया- घरेलू विवाद कब बनते हैं अपराध?

कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।
कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।
कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।
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कोलकाता- कोलकाता हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक डॉक्टर व उनके भूवैज्ञानिक पुत्र पर लगे दहेज उत्पीड़न और अनुसूचित जाति अत्याचार के सभी आरोपों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप "अस्पष्ट", "आधारहीन" और "कानूनी प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग" हैं।

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता ने 3 सितंबर को अपने फैसले में कहा कि सामान्य पारिवारिक विवादों को आपराधिक मामला बनाकर परिवार के सदस्यों को प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया है कि सामान्य घरेलू विवाद और आपराधिक मामले के बीच क्या अंतर है। फैसले में डॉ. हिरालाल कोनार और उनके बेटे अनिर्बान कोनार के खिलाफ अलीपुर सेशन कोर्ट में लंबित आपराधिक मामले को समाप्त कर दिया।

यह मामला पाटुली पुलिस स्टेशन में 15 मार्च 2022 को दर्ज कराया गया था। पत्नी ने अपने पति (एक भूवैज्ञानिक) और ससुर (एक सेवानिवृत्त चिकित्सक) पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (पति द्वारा क्रूरता), 406 (विश्वासभंग), 506 (आपराधिक धमकी), दहेज निषेध अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम और सबसे गंभीर - अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(u) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।
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कोर्ट ने SC/ST एक्ट के आरोप को किया ख़ारिज

कोर्ट ने इस मामले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू अनुसूचित जाति अत्याचार कानून के आरोपों पर गौर किया। पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसकी सास ने उसे जातिगत अपमानजनक शब्द कहे और सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित किया।

आरोप लगाया था कि सास ने कथित तौर पर जातिवादी गालियां देते हुए उससे कहा था "तोरा बंगाली, तोरा शेकर बकर खाश" (तुम निचली जाति के हो, तुम बदसूरत हो और सड़ा हुआ beef खाती हो), बताया गया कि यह बात घर के भीतर हुई।

SC/ST (PoA) एक्ट के तहत महत्वपूर्ण आरोप पर कोर्ट ने माना कि अपराध के लिए आवश्यक तत्व "public view" में होना पूरी तरह से गायब था। कोर्ट ने पाया कि यह आरोप पूरी तरह से निराधार है। कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हितेश वर्मा व सुधाकर मामले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि "घर के अंदर हुई कथित घटना से SC/ST अधिनियन के प्रावधान लागू नहीं होते। यह आरोप मनगढ़ंत है और कानून का दुरुपयोग है।"

धारा 498A का उद्देश्य महिलाओं की रक्षा करना है, लेकिन इसे "निजी द्वेष पूरा करने के tool" के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
कोलकाता हाईकोर्ट

दहेज और क्रूरता के आरोप भी हुए खारिज

पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, उसे भूखा रखा गया, उस पर चाकू से हमला किया गया और उसकी सास उसे जाति के आधार पर अपमानित करती थी।

लेकिन कोर्ट ने पाया कि ये सभी आरोप पूरी तरह से अस्पष्ट और तथ्यहीन हैं। कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने किसी भी घटना की सही तारीख, समय या स्थान नहीं बताया, चिकित्सीय प्रमाण पूरी तरह से गायब हैं। पड़ोसियों ने कभी कोई झगड़ा या हिंसा नहीं सुनी और पत्नी के बयानों में गंभीर अंतर्विरोध हैं।

कोर्ट ने कहा कि "पति द्वारा पत्नी से घर के खर्च या EMI में योगदान मांगना, बच्चे की देखभाल संबंधी अपेक्षा रखना, या online shopping करने को कहना - ये सभी सामान्य पारिवारिक बातें हैं, इन्हें आपराधिक क्रूरता नहीं माना जा सकता।" कोर्ट ने कहा "विपक्षी पक्ष संख्या 2 एक शिक्षित और कमाने वाली महिला है, और routine expectations किसी भी तरह से आईपीसी की धारा 498A के अर्थ के तहत 'क्रूरता' का गठन नहीं कर सकती हैं।"

कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।
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साथी को जानकार किया था प्रेम विवाह

कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि यह विवाह एक लंबे प्रेम संबंध के बाद हुआ था। दंपति ने 2011 में कोर्ट मैरिज की और 2014 में हिंदू रीति-रिवाज से शादी की। दोनों एक साथ जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में काम करते थे।

कोर्ट ने कहा कि "यह बिल्कुल अविश्वसनीय है कि कोई महिला लंबे प्रेम संबंध के बाद ऐसे व्यक्ति से शादी करेगी जो शादी के पहले दिन से ही 'क्रूर, बेरहम और असंवेदनशील' था। ये आरोप विवेकसंगत मन को स्वीकार्य नहीं हैं।"

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दारा लक्ष्मी नारायण मामले का हवाला देते हुए चेतावनी दी कि "वैवाहिक विवादों में अक्सर पति और उसके परिवार के सभी सदस्यों को झूठे आरोपों में फंसाने की प्रवृत्ति देखी जाती है। ऐसे अस्पष्ट और सामान्यीकृत आरोपों की सख्ती से जांच होनी चाहिए।"

कोर्ट ने कहा कि धारा 498A का उद्देश्य महिलाओं की रक्षा करना है, लेकिन इसे "निजी द्वेष पूरा करने के tool" के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने CRR 2329/2022 की याचिका स्वीकार करते हुए अलीपुर सेशन कोर्ट में चल रहे सभी आपराधिक मामलों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले को जारी रखना "न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ" होगा और "कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग" होगा।

कोर्ट ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3(1)(u) लागू होने के लिए जरूरी है कि अपमान या अत्याचार "सार्वजनिक दृष्टि" (public view) में हुआ हो। इस मामले में कथित घटना घर के भीतर हुई थी, सार्वजनिक स्थान पर नहीं।
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