भीलवाड़ा- राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के आसींद थाना क्षेत्र के बराणा गांव में खाखुलदेव मंदिर में गत माह एक दलित पुजारी और उसके परिवार पर जातिवादी लोगों ने सामूहिक हमला किया था। इस हमले को केवल एक सामान्य मारपीट की घटना नहीं, बल्कि चार पीढ़ियों से चले आ रहे एक दलित परिवार के 400 साल पुराने मंदिर के अधिकारों और प्रबंधन को छीनने की सुनियोजित साजिश बताया गया है।
यह निष्कर्ष एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पेश किए हैं, जिसने घटनास्थल का दौरा कर पीड़ित परिवार, स्थानीय निवासियों और अधिकारियों से बातचीत की। दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान राजस्थान, पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), अंबेडकर वेलफेयर सोसाइटी, और अन्य मानव अधिकार संगठनों की यह रिपोर्ट 22 अगस्त 2025 को गठित एक तथ्यान्वेषी दल की जांच पर आधारित है, जिसका उद्देश्य दलित पुजारी विष्णु मेघवंशी और उनके परिवार पर 14 अगस्त को हुए सुनियोजित हमले की सच्चाई को उजागर करना,पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाना और राजस्थान में दलित समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए उनकी आवाज को मजबूत करना है।
फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, 14 अगस्त की रात करीब 10 बजे लगभग 50-60 लोगों के एक समूह ने, जिसका नेतृत्व जातिवादी हिन्दू समूह के कुछ प्रभावशाली लोग कर रहे थे, 'खाखुलदेव मंदिर' में जबरन घुसकर पुजारी विष्णु मेघवंशी और उनके परिवार पर जातिगत गाली-गलौज करते हुए हमला बोल दिया। हमलावरों ने परिवार की महिलाओं सहित आठ लोगों को पीटा और उन्हें मंदिर से बाहर निकालने की कोशिश की। इसके अगले दिन, 15 अगस्त को, हमलावरों ने फिर से मंदिर में घुसकर वहां रखे दानपात्रों को तेज धार वाले हथियारों से काटकर लूट लिया। हमले के बाद, विष्णु मेघवंशी ने आसींद पुलिस थाने में FIR नंबर 218/2025 दर्ज की,जिसमें BNS धारा 189(2), 115(2), 126(2), 303(2), 74, 342(2) और SC/ST (PoA) Act की धारा 3(1)(r), 3(1)(s), 3(2)(va) शामिल हैं.हालांकि पुलिस ने अभी तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया है और पीड़ित पक्ष ने प्रशासन पर पक्षपात और निष्क्रियता का आरोप लगाया है.
हमलावरों ने "सकल हिंदू समाज" के बैनर तले गैर-अनुसूचित जाति समूहों को एकजुट कर मंदिर प्रबंधन में अव्यवस्था और परंपराओं के उल्लंघन का झूठा आरोप लगाया.18 अगस्त 2025 को एक विरोध प्रदर्शन और 21 अगस्त को एक महापंचायत आयोजित कर दलित पुजारी को मंदिर से हटाने की मांग की गई.यह सुनियोजित साजिश दलित समुदाय को सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से बाहर करने और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास है.
इस घटना की पृष्ठभूमि बेहद गहरी और ऐतिहासिक है। फैक्ट फाइंडिंग टीम के अनुसार, खाखोले जी महाराज मंदिर की स्थापना आज से लगभग 400 साल पहले पुजारी विष्णु मेघवंशी की दादी लक्ष्मी देवी के पूर्वजों ने अपनी निजी जमीन पर की थी। तब से लेकर आज तक इस मंदिर की पूजा, देखरेख और प्रबंधन का दायित्व इसी दलित परिवार के पास रहा है। मान्यता है कि इस परिवार के पूर्वज घेला मेघवंशी के सपने में देवता प्रकट हुए थे और उन्होंने ही मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। समय के साथ मंदिर की ख्याति फैली और यह आस-पास के इलाके का एक प्रमुख आस्था का केंद्र बन गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता और संसाधनों पर नजर रखने वाले स्थानीय ताकत समुदाय के कुछ लोगों ने इस दलित परिवार को मंदिर के प्रबंधन से बेदखल करने की एक सुनियोजित साजिश रची। उन्होंने गांव में यह झूठा प्रचार फैलाया कि मंदिर एक 'ट्रस्ट' है और दलित पुजारी परंपराओं का पालन नहीं कर रहा है, जबकि रिपोर्ट के मुताबिक ट्रस्ट जैसा कोई कानूनी दस्तावेज है ही नहीं। हमले के बाद, हमलावरों ने 'सर्व हिंदू समाज' के नाम से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर और धरना देकर अपने झूठे narrative को हवा दी।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है, जिसकी वजह से आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं और पीड़ित परिवार को डरा-धमका रहे हैं। इस लापरवाही ने आरोपियों के हौसले बुलंद कर दिए हैं और गांव में एक डर का माहौल बना दिया है।
टीम ने अपनी रिपोर्ट में बताया राजस्थान में दलित समुदाय लंबे समय से सामाजिक बहिष्कार,मंदिर प्रवेश पर रोक और हिंसक हमलों का शिकार रहा है. जुलाई 2025 तक, राजस्थान पुलिस की मासिक रिपोर्ट में दलितों के खिलाफ 3651 अत्याचार के मामले दर्ज किए गए, जिनमें 44 हत्याएं और 325 बलात्कार शामिल हैं.आसींद क्षेत्र में मेघवंशी समुदाय विशेष रूप से उत्पीड़न का शिकार है और प्रशासन द्वारा प्रभावी कार्रवाई का अभाव इसे और बढ़ावा दे रहा है।
फैक्ट-फाइंडिंग दल ने पीड़ित परिवार, स्थानीय मेघवंशी समुदाय और अन्य गवाहों से बातचीत के आधार पर पाया कि यह हमला पूरी तरह से जातिगत भेदभाव से प्रेरित था. मेघवंशी समुदाय का कहना है कि मंदिर उनके पूर्वजों की धरोहर है और इसे जबरन कब्जाने की कोशिश न केवल उनके धार्मिक अधिकारों का हनन है,बल्कि संवैधानिक समानता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है.दलित संगठनों ने प्रशासन की निष्क्रियता को गंभीर चिंता का विषय बताया और मांग की कि दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई हो।
आसींद पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने दावा किया कि वे मामले की निष्पक्ष जांच कर रहे हैं,लेकिन पीड़ित पक्ष का आरोप है कि पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने में देरी की और आरोपियों को संरक्षण दिया। 20 अगस्त 2025 को,दलित संगठनों और मेघवंशी समुदाय ने आसींद में एक ज्ञापन सौंपकर त्वरित जांच और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की। इसके बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई,जिसके कारण आरोपियों का मनोबल बढ़ा हुआ है।
दलित आदिवासी एवं घुमंतू अधिकार अभियान, PUCLऔर अन्य संगठन निम्नलिखित मांग करते हैं-
1. त्वरित गिरफ्तारी और सजा-FIR नंबर 218/2025 में नामजद आरोपियों -सम्पत लाल पुत्र श्रवण लाल जाट, मिश्रीलाल पुत्र उदा जाट, बन्ना राम पुत्र हरदेव जाट, डालुराम पुत्र कल्याण जाट, शंकर लाल पुत्र बन्ना जाट, गजु पुत्र गोपी जाट, पोखर पुत्र जमना जाट, सांवर पुत्र हरदेव जाट आदि और अन्य सह-आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी और SC/ST (PoA) Act के तहत सख्त कार्रवाई।
2. दानपात्र की बहाली-15 अगस्त 2025 को काटे गए दानपात्र को जब्त कर मंदिर में पुनः स्थापित किया जाए और इसके लिए प्रयुक्त औजारों को बरामद किया जाए।
3. निष्पक्ष जांच-मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला पुलिस अधीक्षक की निगरानी में त्वरित और निष्पक्ष जांच हो और SC/ST (PoA) Act के तहत सक्षम न्यायालय में अभियोजन प्रस्तुत किया जाए।
4. पीड़ितों की सुरक्षा-SC/ST (PoA) Act की धारा 15(1)(c) के तहत पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
5. आर्थिक सहायता-SC/ST (PoA) Act के नियम 12(4) के तहत पीड़ितों को तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान की जाए।
6. सामाजिक शांति-क्षेत्र में सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए अत्याचार प्रवण क्षेत्रों की पहचान कर निवारक उपाय लागू किए जाएं।
7. आरोपियों पर रोक-बार-बार मंदिर परिसर में सभाएं आयोजित करने और भड़काऊ बयान देने वाले आरोपियों के खिलाफ SC/ST (PoA) Act की धारा 10(1) और 17(1) के तहत कार्रवाई हो।
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