बालोतरा/जोधपुर- राजस्थान के ग्रामीण अंचलों में आज भी जाति और समाज का वर्चस्व इतना गहरा है कि वह प्रेम को अपराध और जबरदस्ती को 'सम्मान' की रक्षा बता देती है। यहां दो वयस्कों की मर्जी से हुए प्रेम विवाह को भी 'सम्मान' और 'परंपरा' के नाम पर खारिज कर दिया जाता है, खासकर तब जब यह विवाह जाति की सीमाओं को लांघता हो।
ऐसा ही एक संघर्ष देखने को मिला बालोतरा में, जहां एक मेघवाल युवक धन्नाराम से प्रेम विवाह करने वाली पटेल समुदाय की युवती कविता को अपने ही परिवार ने अपहरण कर लिया और उस पर दूसरी शादी थोपने का प्रयास किया। लेकिन कविता की हिम्मत और न्यायपालिका की दखल ने उसे न केवल मुक्त कराया, बल्कि उसके पति के साथ जीवन जीने का अधिकार भी दिलाया। यह मामला समाज में व्याप्त जातिगत पूर्वाग्रहों और अंतर्जातीय विवाहों के प्रति नफरत की कड़वी सच्चाई को एक बार फिर उजागर करता है।
कविता चौधरी (21) बालोतरा जिले के समदड़ी थाना क्षेत्र के गांव बुरड़ के एक पटेल परिवार से ताल्लुक रखती है। वहीं धन्नाराम मेघवाल, अम्बों का बाडा कोटडी गांव का रहने वाला है, जिसे समाज एक 'दलित' जाति मानता है।
लगभग एक साल पहले धन्नाराम कविता के पड़ोसी के ट्रैक्टर चलाने आता था। धीरे-धीरे दोनों की बातचीत होने लगी।धन्नाराम ने कविता को एक मोबाइल फोन लाकर दिया ताकि दोनों बात कर सकें। दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगे।
समाज के डर से दोनों ने 19 मार्च 2025 की रात परिवार वालों को बिना बताए घर छोड़ दिया और जोधपुर पहुंच गए। अगले दिन 20 मार्च को आर्य समाज मंदिर में उन्होंने विधिवत शादी की। इसके बाद वे समदड़ी थाना पहुंचे, जहां कविता ने महिला पुलिस अधिकारियों के सामने स्पष्ट कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से धन्नाराम से शादी की है और उसके साथ रहना चाहती हैं। पुलिस ने उन्हें सुरक्षित जोधपुर के संतोष नगर इलाके में एक किराए के मकान में पहुंचा दिया, जहां धन्नाराम एक फैक्ट्री में काम करने लगा और दोनों ने अपनी नई जिंदगी शुरू की।
लेकिन एक 'दलित' युवक के साथ बेटी के विवाह ने पटेल परिवार को सामाजिक प्रताड़ना का डर सता दिया। उन्हें लगा कि इससे समाज में उनकी 'इज्जत' चली जाएगी। 25 अप्रैल को जब धन्नाराम फैक्ट्री पर था, कविता के चाचा और अन्य रिश्तेदार एक कार में उनके घर पहुंचे और उसे जबरन कार में बैठाकर गांव ले जाया गया।
धन्नाराम ने जब यह देखा कि उसकी पत्नी नहीं है तो उसने तुरंत बासनी पुलिस में अपहरण का मुकदमा दर्ज करवाया। अगले दिन, कविता को उसके परिवार वाले थाने लेकर आए। परिवार के भारी दबाव और 'तुम्हारे पति को मार देंगे' जैसी धमकियों के आगे झुककर कविता ने पुलिस के सामने वह बयान दिया जो उसके परिवार वाले चाहते थे - कि वह अपनी मर्जी से गई थी और अब मायके जाना चाहती है। पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट देकर मामला बंद कर दिया और कविता को परिवार के साथ भेज दिया।
परिवार वाले कविता को तुरंत राजस्थान से बाहर, बंगलौर ले गए। उसे एक कमरे में कैद कर दिया गया। उससे कहा गया कि वह धन्नाराम को भूल जाए और दूसरी शादी के लिए राजी हो जाए। उसे खाने-पीने और यहां तक कि घर से बाहर निकलने तक की इजाजत नहीं थी। दिन-रात उसे मानसिक प्रताड़ना दी जाती, उसके और उसके पति के लिए अपशब्द कहे जाते और धमकियां दी जातीं। कविता ने जैसे तैसे धन्ना राम से संपर्क किया और उसे वापस लाने की गुहार लगाई।
धन्नाराम की ओर से एडवोकेट भटराज जोगसान ने राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच में हेबियस कॉर्पस (Habeas Corpus) याचिका दायर की।
कविता की इच्छा जानने के लिए इसके द्वारा लिखा एक पत्र भी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसमे कविता ने लिखा, "मुझे रात भर धमकाया गया... मेरे दिमाग में मेरे पति का सदमा बैठ गया... मुझे बंगलौर भेज दिया... मुझे धमकियां देते हैं... हम तुझे और धनिया को मार देंगे... मुझे यहां से लेकर जाएं... मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हैं..." ।
इस पत्र के आधार पर धन्नाराम के वकील ने राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया। कविता की गुमशुदगी और उसकी सुरक्षा को देखते हुए कोर्ट ने त्वरित कार्रवाई का आदेश दिया।
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कविता को उसकी कैद से मुक्त कराया गया और कोर्ट के सामने पेश किया गया। कोर्ट में कविता ने जोर देकर कहा कि वह धन्नाराम के साथ ही रहना चाहती है।
अदालत ने एक वयस्क महिला के अधिकारों को मान्यता देते हुए यह फैसला सुनाया कि कविता को उसकी इच्छानुसार अपने पति धन्नाराम के साथ जाने की पूरी स्वतंत्रता है।
एडवोकेट भटराज ने द मूकनायक को बताया कि आज कविता और धन्नाराम एक बार फिर साथ हैं, लेकिन उनके सामने अब भी चुनौतियों का पहाड़ है। समाज का दबाव, जाति के नाम पर होने वाली प्रताड़ना और आर्थिक संघर्ष उनकी राह मुश्किल बना रहे हैं। लेकिन उनकी इस जीत ने उन सैकड़ों युवाओं के लिए आशा की एक किरण जगाई है जो जाति की दीवारों को तोड़कर प्रेम करना चाहते हैं।
कविता और धन्नाराम की यह कहानी साबित करती है कि कानून और इंसान की जज्बाती जिद के आगे जातिवाद की जड़ें आखिरकार कमजोर पड़ती हैं। यह सिर्फ एक शादी की कहानी नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए लड़ी गई एक जंग है।
राजस्थान सरकार सामाजिक भेदभाव और जातिगत ऊंच-नीच की मानसिकता को खत्म करने और अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयासरत है. सरकार द्वारा अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देने के लिए सविता बेन अम्बेडकर अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन योजना चलाई जा रही है. इस योजना का उद्देश्य सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देना और जातीय दीवारों को तोड़ना है. योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति के युवक या युवती के सवर्ण हिंदू साथी से विवाह करने पर 10 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है. योजना की शुरुआत में सरकार द्वारा 5 लाख रुपये की सहायता दी जाती थी, जिसे अब दोगुना कर 10 लाख रुपये कर दिया गया है. अब तक करीब 200 जोड़ों को इस योजना का लाभ मिल चुका है, जिस पर लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं.
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