IIM बेंगलुरु के दलित प्रोफेसर दुनिया के टॉप 20 मार्केटिंग शोधकर्ताओं में शामिल, पर संस्थान में झेल रहे हैं जातिगत अपमान का दंश

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की लिस्ट में भी शामिल प्रोफेसर गोपाल दास ने IIM निदेशक समेत 8 लोगों पर लगाया उत्पीड़न का आरोप, जानिए DCRE की जांच रिपोर्ट में क्या हुआ खुलासा।
एक तरफ दुनिया में सम्मान, दूसरी तरफ IIM में FIR! जानिए भारत के नंबर 1 मार्केटिंग रिसर्चर प्रो. गोपाल दास के साथ हुए 'अन्याय' की पूरी कहानी।
एक तरफ दुनिया में सम्मान, दूसरी तरफ IIM में FIR! जानिए भारत के नंबर 1 मार्केटिंग रिसर्चर प्रो. गोपाल दास के साथ हुए 'अन्याय' की पूरी कहानी।
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बेंगलुरु: एक तरफ वैश्विक अकादमिक जगत में भारत का परचम लहराने की कहानी है, तो दूसरी तरफ देश के प्रतिष्ठित संस्थान में सम्मान के लिए संघर्ष की व्यथा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बैंगलोर (IIMB) के मार्केटिंग एसोसिएट प्रोफेसर और दलित विद्वान गोपाल दास ने दुनिया के शीर्ष 20 मार्केटिंग शोधकर्ताओं में अपना नाम दर्ज कराया है। अगस्त में मार्केटिंग बिग15 यूएसए द्वारा जारी इस सूची में उन्हें भारत में पहला और एशिया में दूसरा स्थान मिला है, जबकि विश्व स्तर पर वह 17वें पायदान पर हैं।

यह सम्मान उन्हें 2018 से 2025 तक दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित 'मार्केटिंग बिग 15' जर्नल्स में उनके असाधारण योगदान के लिए दिया गया है। इन जर्नल्स को यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास एट डलास और फाइनेंशियल टाइम्स जैसे वैश्विक मानक मान्यता देते हैं। प्रोफेसर दास इस विशिष्ट वैश्विक सूची में एकमात्र भारतीय हैं, जो न केवल IIMB के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का क्षण है।

लेकिन इस शानदार उपलब्धि के पीछे एक कड़वा सच भी छिपा है। प्रोफेसर दास ने IIMB में अनुसूचित जाति समुदाय से होने के कारण व्यवस्थित रूप से उत्पीड़न, अपमान और अवसरों से वंचित किए जाने के गंभीर आरोप लगाए हैं।

उपलब्धियों का लंबा सफर

प्रोफेसर दास की यह वैश्विक रैंकिंग उनकी निरंतर उत्कृष्टता का प्रमाण है। वह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा जारी दुनिया के शीर्ष 2% वैज्ञानिकों की सूची में लगातार पांच वर्षों से अपनी जगह बना रहे हैं, जिसमें हाल ही में 2024 की सूची भी शामिल है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी खड़गपुर से पीएचडी करने के बाद उन्होंने 2017 में IIMB में कार्यभार संभाला था। उनका शोध उपभोक्ता भावनाओं, संवेदी विपणन और नैतिक निर्णय लेने जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। वह 'जर्नल ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड मार्केटिंग' जैसे कई प्रतिष्ठित जर्नल्स के संपादकीय समीक्षा बोर्ड में भी शामिल हैं।

भेदभाव के गंभीर आरोप और कानूनी लड़ाई

प्रोफेसर दास, जो अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से हैं और खुद को दलित के रूप में पहचानते हैं, ने IIMB में जाति-आधारित भेदभाव का सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया है। उनके इन दावों ने एक बड़ी बहस छेड़ दी है।

  • जून 2024: प्रोफेसर दास ने IIMB के दौरे पर आईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलकर एक शिकायत दर्ज कराई। इसमें उन्होंने संस्थान के तत्कालीन निदेशक ऋषिकेश टी कृष्णन, डीन (संकाय) दिनेश कुमार और छह अन्य संकाय सदस्यों पर जाति के आधार पर उत्पीड़न, अपमान और समान अवसरों से वंचित करने का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि उन्हें महत्वपूर्ण समितियों से बाहर रखा गया, पदोन्नति नहीं दी गई और उनके खिलाफ बदले की भावना से वित्तीय अनियमितता व छात्रों की शिकायतों की जांच शुरू की गई।

  • नवंबर-दिसंबर 2024: कर्नाटक सरकार के नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय (DCRE) ने मामले की जांच की। 19 दिसंबर, 2024 को जारी जांच रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि प्रोफेसर दास को जातिगत भेदभाव के कारण "अपमान और बहिष्कार" का सामना करना पड़ा। रिपोर्ट में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कार्रवाई की सिफारिश की गई।

  • 21 दिसंबर, 2024: DCRE की रिपोर्ट के आधार पर, बेंगलुरु पुलिस ने आठों आरोपियों के खिलाफ SC/ST एक्ट और IPC की धाराओं के तहत प्राथमिकी (FIR) दर्ज की। ऑल इंडिया OBC स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AIOBCSA) जैसे छात्र संगठनों ने निदेशक के इस्तीफे की मांग की।

IIMB का पक्ष

हालांकि, IIMB ने इन सभी आरोपों को "निराधार" बताते हुए खारिज कर दिया। संस्थान का कहना है कि ये आरोप तब सामने आए जब 2024 में प्रोफेसर दास के खिलाफ कदाचार और छात्रों द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायतों के कारण उनकी पदोन्नति टाल दी गई थी। संस्थान ने अपनी समावेशिता की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए कहा कि विवादों से पहले प्रोफेसर दास को इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया था।

31 दिसंबर, 2024 तक, अदालत ने सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी, जिससे आरोपियों को FIR को चुनौती देने का अवसर मिल गया।

यह मामला भारत के शीर्ष संस्थानों में जातिगत गतिशीलता पर एक व्यापक चर्चा का केंद्र बन गया है। प्रोफेसर दास के समर्थक उनकी वैश्विक रैंकिंग को उनके खिलाफ कथित पूर्वाग्रह का करारा जवाब मानते हैं। सितंबर 2025 तक, यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है और इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं आया है।

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