मोहना को हाल ही में नेपाल के काठमांडू में आयोजित एक कार्यक्रम लैंगिक समानता की ओर दुनिया को प्रेरित करने के लिए कमला भसीन पुरस्कार (दक्षिण एशिया) से समानित किया गया।
मोहना को हाल ही में नेपाल के काठमांडू में आयोजित एक कार्यक्रम लैंगिक समानता की ओर दुनिया को प्रेरित करने के लिए कमला भसीन पुरस्कार (दक्षिण एशिया) से समानित किया गया। ग्राफिक: आसिफ निसार/द मूकनायक

चेन्नई की 'ऑटो क्वीन' मोहना सुंदरी को कमला भसीन अवॉर्ड 2025: देश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर यूनियन की अध्यक्ष जो 350+ महिलाओं को बना रही सशक्त

मोहना वीर पेंगल मुन्नेत्र संगम (वीपीएमएस) की अध्यक्ष हैं जो देश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर यूनियन है, मोहना ने महामारी के तूफानों से जूझते हुए न केवल खुद को संभाला, बल्कि 350 से ज्यादा महिलाओं को "इरुम्बु कोट्टई" (लोहे का किला) बनाकर एकजुट किया।
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चेन्नई- चेन्नई की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर ऑटो की होर्न बजाती हुई एक महिला, जो न केवल यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाती है, बल्कि सैकड़ों बहनों को आर्थिक आजादी की मंजिल भी दिखा रही है। शायद किसी ने कभी सोचा नहीं था कि स्टीयरिंग थामने वाले इन हाथों में इतनी ताकत होगी कि वह महिलाओं की जिंदगियां बदल सके! ये हैं मोहना सुंदरी जो हाल ही में नेपाल की धरती पर खड़ी होकर कमला भसीन पुरस्कार से सम्मानित हुईं हैं।

यह पुरस्कार पाने वाली तमिलनाडु की पहली विजेता के रूप में "ड्राइविंग द वर्ल्ड टुवर्ड्स जेंडर इक्वालिटी" श्रेणी में सम्मानित मोहना की कहानी एक आम ऑटो ड्राइवर की नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी की है। वे Veera Pengal Munnetra Sangam (वीर पेंगल मुन्नेत्र संगम (वीपीएमएस) की अध्यक्ष हैं जो देश की पहली महिला ऑटो ड्राइवर यूनियन है, मोहना ने महामारी के तूफानों से जूझते हुए न केवल खुद को संभाला, बल्कि 350 से ज्यादा महिलाओं को "इरुम्बु कोट्टई" (लोहे का किला) बनाकर एकजुट किया।

मोहना सुंदरी, जिन्हें प्यार से मोहना कहा जाता है, चेन्नई के अयानवरम इलाके की रहने वाली हैं। आठवीं कक्षा तक पढ़ाई करने वाली मोहना ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। शुरुआती दिनों में उन्होंने छोटे-मोटे व्यवसाय आजमाए: एक ब्यूटी पार्लर खोला, फास्ट फूड की दुकान चलाई, टिफिन सेंटर शुरू किया। लेकिन हर बार नुकसान ही हाथ लगा। कोविड-19 महामारी ने तो जैसे सब कुछ उजाड़ दिया। लॉकडाउन के दौरान आर्थिक तंगी इतनी बढ़ गई कि घर चलाना मुश्किल हो गया।

मोहना बताती हैं, "मुझे याद आया कि मेरे पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस है। सोचा दैनिक आय के लिए ऑटो रिक्शा चलाना शुरू कर दूं। आठ साल पहले इसी फैसले ने मेरी जिंदगी बदल दी"। आज वे चेन्नई में कई ट्रैवल एग्रीगेटर्स के लिए रोजाना ऑटो चलाती हैं और महीने में 30,000 रुपये तक कमाती हैं। लेकिन शुरुआत आसान नहीं थी। पुरुष ऑटो ड्राइवरों का विरोध, ताने और चुनौतियां- सब कुछ झेला। "वे मेरी परेशानियों को समझे बिना ताने मारते थे। लेकिन मैंने हार नहीं मानी।"

मोहना की यह यात्रा व्यक्तिगत संघर्ष तक सीमित नहीं रही। शहर में ऑटो चलाने वाली अन्य महिलाओं से मुलाकात ने उन्हें नई दिशा दी। ये महिलाएं भी वैसी ही कहानियां साझा करतीं - आर्थिक दबाव, परिवार की जिम्मेदारियां, पुरुषों का विरोध। मोहना कहती हैं, "हमने महसूस किया कि वित्तीय स्वतंत्रता और एकजुटता से समाज का नजरिया बदल सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की असमानताओं पर तो हम बात करते हैं, लेकिन चेन्नई जैसे बड़े शहर में भी महिलाएं चुपचाप पीड़ित हैं।" इसी सोच ने जन्म दिया वीर पेंगल मुन्नेत्र संगम (वीपीएमएस) को- एक ऐसी सहकारी समिति, जो महिला ऑटो ड्राइवरों के लिए बेहतर कामकाजी स्थितियां और आर्थिक लाभ सुनिश्चित करती है। वीपीएमएस के सदस्यों में से 55 प्रतिशत एकल अभिभावक हैं। वे कहती हैं, "बच्चों की देखभाल और पैसे कमाने दोनों में कठिनाई होती है। लेकिन ड्राइविंग और परिवहन उद्योग, चाहे कारें हों, ऑटो हों या फूड डिलीवरी, हमारे लिए वरदान साबित हुआ है।"

अप्रैल 2024 में, मोहनसुंदरी और 45 महिला ऑटो चालकों ने चेन्नई में एक मज़बूत जगह बनाने के लिए वीरा पेंगल मुनेत्र संगम (वीपीएमएस) की स्थापना की जिसका अर्थ है "वीर महिलाओं की प्रगति के लिए संघ"। मोहना ने वीपीएमएस की अध्यक्ष का पद संभाला।
अप्रैल 2024 में, मोहनसुंदरी और 45 महिला ऑटो चालकों ने चेन्नई में एक मज़बूत जगह बनाने के लिए वीरा पेंगल मुनेत्र संगम (वीपीएमएस) की स्थापना की जिसका अर्थ है "वीर महिलाओं की प्रगति के लिए संघ"। मोहना ने वीपीएमएस की अध्यक्ष का पद संभाला।(upbeat)

वीपीएमएस की शुरुआत छोटे कदमों से हुई। शहर की महिला ऑटो ड्राइवरें पहले सिर्फ स्कूल ट्रिप्स को समन्वयित करने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप पर जुड़ीं। धीरे-धीरे यूनियनों के फायदों के बारे में जानकर उन्होंने अपनी खुद की यूनियन बनाने का फैसला लिया। एलायंस फॉर कम्युनिटी एम्पावरमेंट (एसीई) के सह-संस्थापक विजय ज्ञानप्रसाद ने उन्हें मार्गदर्शन दिया। आईटी कर्मचारी विजय सामुदायिक पहलों का समर्थन करने वाले एक समर्पित व्यक्ति हैं। कई परेशानियों के बाद अप्रैल 2024 में वीपीएमएस को औपचारिक रूप से पंजीकृत किया गया। आज इसमें करीब 400 महिला ऑटो ड्राइवर सदस्य हैं। महिलाएं इसे "इरुम्बु कोट्टई" (लोहे का किला) कहती हैं, एक मजबूत ढाल, जो न केवल आर्थिक मदद देता है, बल्कि सम्मान और सुरक्षा भी।

वीपीएमएस ने महिलाओं के जीवन को कैसे बदला, इसका अंदाजा इसके लाभों से लगाया जा सकता है। सदस्यों को लगातार वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ता है: स्कूल फीस, वाहन बीमा, साहूकारों से ऊंची ब्याज दरों वाले कर्ज, स्वास्थ्य खर्च और बचत की कोई गुंजाइश नहीं। बैंक बिना घर, पति या गारंटर के लोन नहीं देते। बीमारी या दुर्घटना में एनजीओ की मदद लेनी पड़ती है। एक घटना ने सबको झकझोर दिया- जब एक ऑटो ड्राइवर की मौत हो गई, तो उनकी बुजुर्ग मां को सिर्फ साथी ड्राइवरों द्वारा इकट्ठा किए गए कुछ पैसे ही मिले। मोहना याद करती हैं, "इस घटना ने हमें मजबूत समर्थन प्रणाली बनाने के लिए प्रेरित किया।" आज प्रत्येक सदस्य 222 रुपये मासिक योगदान देती है। इस पूल से यूनियन कई सुविधाएं प्रदान करती है:

  1. ड्राइवर की मौत पर 10 लाख रुपये का बीमा कवर (नवीनीकरण यूनियन स्टाफ और वकील द्वारा प्रबंधित, ताकि समय और जुर्माना बचे)।

  2. नियमित छह महीने भुगतान करने वाली सदस्यों को 10,000 रुपये का लोन, जो 10 महीनों में चुकाना होता है। बाद में लोन राशि 30,000 और 50,000 रुपये तक बढ़ सकती है।

  3. बीमारी या दुर्घटना से कुछ हफ्तों काम न कर पाने पर 3,000-5,000 रुपये की सहायता।

  4. माता-पिता या ससुराल वालों के अंतिम संस्कार पर 10,000 रुपये, जो सदस्यता की एक निश्चित अवधि के बाद उपलब्ध होता है।

 मोहना को हाल ही में नेपाल के काठमांडू में आयोजित एक कार्यक्रम लैंगिक समानता की ओर दुनिया को प्रेरित करने के लिए कमला भसीन पुरस्कार (दक्षिण एशिया) से समानित किया गया।
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ये सुविधाएं न केवल आर्थिक राहत देती हैं, बल्कि महिलाओं को योजनाओं जैसे ईएसआई और पीएफ के लिए पात्र भी बनाती हैं। "जैसे-जैसे महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगी, वे दुनिया को बेहतर तरीके से संभाल सकेंगी," मोहना जोर देकर कहती हैं।

वीपीएमएस की सफलता की एक और कड़ी है इसका 25 सदस्यों वाला सहकारी समाज, जो उद्यमिता की टोपी पहन चुका है। इस योजना ने उन्हें आईआईएम-कोझिकोड के वुमन स्टार्ट-अप प्रोग्राम 3.0 में पहला पुरस्कार (50,000 रुपये) दिलाया। अब वे थोक में तेल और स्पेयर पार्ट्स खरीदकर खुदरा बेचने का व्यवसाय शुरू करने की योजना बना रही हैं।

इससे अतिरिक्त आय और बचत होगी, जो बच्चों की शिक्षा, वाहन खरीदने और मजबूत वित्तीय आधार में मदद करेगी। सहकारी समाज को पंजीकृत करने की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। मोहना बताती हैं, "महिलाओं के लिए कोई ऑटो स्टैंड नहीं है। मेट्रो स्टेशनों या मॉल्स पर पुरुष ड्राइवर हमें पार्किंग की अनुमति नहीं देते। हम इस पर काम कर रहे हैं।" शौचालय की सुविधा के लिए तो पेट्रोल पंप ही एकमात्र विकल्प है, क्योंकि कई रेस्तरां उन्हें टॉयलेट इस्तेमॉल करने की अनुमति नहीं देते हैं ।

मोहना की कहानी अब अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी छाई हुई है। वे जल्द ही चेन्नई में प्रीमियर होने वाली तमिल डॉक्यूमेंट्री फिल्म "ऑटो क्वीन्स" की मुख्य किरदार हैं। यह फिल्म महिला ऑटो ड्राइवरों की जिंदगियों को उजागर करती है और वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रही है। वे कहती हैं "हमारा लक्ष्य सभी महिला ऑटो ड्राइवरों को अपनी समस्याओं को बेहतर तरीके से व्यक्त करने और समाज की नजरों में सम्मान हासिल करने के लिए प्रेरित करना है।"

 मोहना को हाल ही में नेपाल के काठमांडू में आयोजित एक कार्यक्रम लैंगिक समानता की ओर दुनिया को प्रेरित करने के लिए कमला भसीन पुरस्कार (दक्षिण एशिया) से समानित किया गया।
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