एमए के बाद उलटे क्रम में की पढाई, दलित प्रोफेसर को TN यूनिवर्सिटी ने कर दिया बर्खास्त: कौन हैं प्रो. सेनरायपेरुमल जिनके लिए भारत-अमेरिका से उठ रही समर्थन की आवाजें

अरुंधतियार समुदाय के पहले विद्वान जिन्होंने पाई डॉक्टरेट की डिग्री, हाईकोर्ट ने बहाली के दिए आदेश लेकिन विवि ने चुना अपील का रास्ता
प्रोफेसर पी. सेनरायपेरुमल को 8 साल की सेवा के बाद मनोनमानियम सुंदरनार विश्वविद्यालय द्वारा बर्खास्त कर दिया गया।
प्रोफेसर पी. सेनरायपेरुमल को 8 साल की सेवा के बाद मनोनमानियम सुंदरनार विश्वविद्यालय द्वारा बर्खास्त कर दिया गया। पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (पारी)
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चेन्नई- भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में छिपे जातिवाद के घाव एक बार फिर खुल गए हैं। तमिलनाडु के मनोनमानियम सुंदरनार यूनिवर्सिटी (एमएसयू) में सहायक प्रोफेसर पी. सेनरायपेरुमल को 'शैक्षणिक अनियमितता' के नाम पर नौकरी से बर्खास्त करने का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंज रहा है। यह केवल भारत तक सीमित नहीं; अमेरिका के रटगर्स यूनिवर्सिटी के एंटी-कास्ट कलेक्टिव द्वारा शुरू की गई एक याचिका ने वैश्विक एकजुटता की मिसाल कायम की है।

हजारों विद्वान, छात्र और कार्यकर्ता इस याचिका पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिसमें प्रोफेसर सेनरायपेरुमल की तत्काल बहाली और संस्थागत जातिवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की गई है। पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (पारी) द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री 'पनिशिंग द प्रोफेसर' ने इस मुद्दे को और उजागर किया है, जो दलित विद्वानों के संघर्ष की मार्मिक कहानी बयां करती है।

यह मामला न केवल एक व्यक्ति की लड़ाई है, बल्कि भारतीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में 'मेरिट' के नाम पर जारी जातिगत भेदभाव का आईना है। प्रोफेसर सेनरायपेरुमल तमिल नाडू में सबसे हाशिए पर धकेले गए दलित समुदायों में से एक अरुंधतियार से ताल्लुक रखते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी को शिक्षा और कला के माध्यम से बदलने की कोशिश की। वे 'राजा-रानी अट्टम' नामक लोक कला में पारंगत हैं।

प्रोफेसर सेनरायपेरुमल 2016 से मनोनमानियम सुंदरनार यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे थे लेकिन मार्च 2024 में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। मद्रास हाईकोर्ट ने जून 2024 में उनकी बहाली का आदेश दिया, लेकिन यूनिवर्सिटी ने अपील दायर कर न्याय का अपमान किया। यह मामला अभी भी लंबित है और आर्थिक मजबूरियों के कारण प्रोफेसर अब फिर से लोक नाट्य 'राजा-रानी अट्टम' के मंच पर लौट चुके हैं।

अरुंधतियार कलाकारों को दर्शकों द्वारा यौनिक वस्तु की तरह देखा जाता था और सेनरायपेरुमल ने 18 वर्षों तक इसमें 'रानी' (महिला) की भूमिका निभाई।
अरुंधतियार कलाकारों को दर्शकों द्वारा यौनिक वस्तु की तरह देखा जाता था और सेनरायपेरुमल ने 18 वर्षों तक इसमें 'रानी' (महिला) की भूमिका निभाई। पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (पारी)

एक दलित कलाकार कैसे बना प्रोफेसर?

पी. सेनरायपेरुमल का जन्म तमिलनाडु के मदुरै के पास सूलापुरम गांव में हुआ। अरुंधतियार समुदाय की कठोर जातिगत दासता और गरीबी ने उन्हें 13 साल की उम्र में स्कूल छोड़ने पर मजबूर कर दिया। परिवार के लोक थिएटर टूू्र्प में शामिल होकर वे 'राजा-रानी अट्टम' नामक पारंपरिक लोक नाट्य-नृत्य का हिस्सा बने।

यह कला रूप तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में शादियों, त्योहारों और अंतिम संस्कारों में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन कलाकार ऐतिहासिक रूप से जातिगत शोषण का शिकार रहे हैं। अरुंधतियार कलाकारों को प्रमुख जातियों के दर्शकों द्वारा यौनिक वस्तु की तरह देखा जाता था, और सेनरायपेरुमल ने 18 वर्षों तक इसमें 'रानी' (महिला) की भूमिका निभाई जो लिंग द्वंद्व को चुनौती देती है और ड्रैग परंपरा से जुड़ी है।

रातों में प्रदर्शन और दिनों में पढ़ाई के बीच संतुलन बनाते हुए सेनरायपेरुमल ने सेल्फ स्टडी से शिक्षा फिर शुरू की। 8वीं कक्षा पूरी की, फिर मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी से एमए और एमफिल। फिर असामान्य क्रम में ओपन यूनिवर्सिटी सिस्टम के जरिए बीए, 10वीं, 12वीं और अंत में 2013 में आर्ट हिस्ट्री में पीएचडी प्राप्त की। 2016 में एससी कोटा से मनोनमानियम सुंदरनार यूनिवर्सिटी (एमएसयू) के हिस्ट्री डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए। चयन समिति में वर्तमान वाइस चांसलर भी थे, और सभी डिग्रियां सत्यापित की गईं। आठ वर्षों में उन्होंने 31 शोधार्थियों को निर्देशित किया और अपनी समुदाय की कला को कक्षा में जीवंत किया।

प्रोफेसर पी. सेनरायपेरुमल को 8 साल की सेवा के बाद मनोनमानियम सुंदरनार विश्वविद्यालय द्वारा बर्खास्त कर दिया गया।
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'अनियमितता' का बहाना या जातिवाद का क्रूर चेहरा?

सेनरायपेरुमल द्वारा 'रिवर्स ऑर्डर' में की गयी पढ़ाई को ही यूनिवर्सिटी ने 'अनियमितता' का आधार बनाया। मार्च 2024 में, प्रमोशन के ठीक पहले उन्हें बिना सुनवाई के बर्खास्तगी का पत्र थमा दिया। यूनिवर्सिटी का तर्क था- शिक्षा का 'उल्टा क्रम'। लेकिन यह उन ओपन लर्निंग सिस्टम पर ही सवाल उठाता है जो राज्य सरकार ने ही हाशिए के छात्रों के लिए बनाए हैं।

इस मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने विश्वविद्यालय के तर्क को पूरी तरह खारिज कर दिया। जून 2024 में कोर्ट ने उन्हें तत्काल बहाल करने, उनके वेतन की बकाया राशि और सभी लाभ देने का आदेश दिया। कोर्ट ने उनकी शैक्षणिक योग्यता और उनके शैक्षिक मार्ग को वैध माना। हालाँकि, सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का दावा करने वाले इस विश्वविद्यालय ने हाई कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दिया और डिवीजन बेंच के समक्ष अपील कर दी। यह सवाल गंभीर है: क्या विश्वविद्यालय प्रशासन और उच्च शिक्षा विभाग जानबूझकर एक दलित विद्वान को कानूनी लड़ाई में उलझाकर थकाना चाहते हैं?

प्रोफेसर सेनरायपेरुमल के पास अब नौकरी नहीं है, वे पड़ोस के बच्चों को होमवर्क में मदद कर शिक्षा की ताकत सिखा रहे हैं। वे अदालत में अपना केस 'गाकर' पेश करना चाहते हैं ताकि न्यायाधीश लोक कला के माध्यम से दलित इतिहास को समझ सकें। रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस.एम. मुरलीधर ने प्रो बोनो उनका प्रतिनिधित्व करने का वादा किया है।
अमेरिका के रटगर्स यूनिवर्सिटी के एंटी-कास्ट कलेक्टिव अपनी ऑनलाइन याचिका के जरिये दुनियाभर से प्रोफेसर सेनरायपेरुमल के लिए समर्थन जुटा रहे हैं।
अमेरिका के रटगर्स यूनिवर्सिटी के एंटी-कास्ट कलेक्टिव अपनी ऑनलाइन याचिका के जरिये दुनियाभर से प्रोफेसर सेनरायपेरुमल के लिए समर्थन जुटा रहे हैं।

राजा-रानी अट्टम: प्रतिरोध की जीवंत कला

यह संघर्ष केवल नौकरी का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का भी है। 'राजा-रानी अट्टम' दक्षिण भारत की लोक परंपरा है, जो नृत्य, नाटक, पौराणिक कथाओं और मौखिक इतिहास को जोड़ती है। यह ओग्गू कथा, बहुरुपिया और तमाशा जैसी अन्य जातिगत कलाओं से मिलती-जुलती है। ऐतिहासिक शोषण के बावजूद, प्रोफेसर सेनरायपेरुमल ने इसे दलित ज्ञान का जीवंत अभिलेख बनाया। दुनिया में इस कला के एकमात्र जीवंत विद्वान होने के नाते उनकी बर्खास्तगी उपेक्षित ज्ञान का विनाश है।

पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (परी) द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री 'पनिशिंग द प्रोफेसर' ने इस मुद्दे को उजागर किया है, जो दलित विद्वानों के संघर्ष की मार्मिक कहानी बयां करती है। परी की 28 मिनट की डॉक्यूमेंट्री से लोगों में आक्रोश फैला। यह डॉक्यूमेंट्री प्रोफेसर की कहानी को लोक कला के माध्यम से बयां करती है, जो संस्थागत जातिवाद को उजागर करती है। रिलीज के बाद 'द हिंदू', 'द न्यूज मिनट' जैसे अखबारों ने कवरेज किया।

विद्यार्थी समुदाय क्यों है एकजुट?

देशभर के विश्वविद्यालयों के छात्र और युवा शिक्षक प्रोफेसर सेनरायपेरुमल के समर्थन में सड़कों पर और सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। उनका मानना है कि यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की नौकरी का नहीं, बल्कि भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में गहराई तक पैठे जातिवाद के खिलाफ एक सामूहिक लड़ाई है। रोहित वेमुला से लेकर पायल ताडवी जैसे मामले इस बात के गवाह हैं कि दलित और आदिवासी छात्र-शिक्षकों के साथ शैक्षणिक संस्थानों में व्यवस्थित भेदभाव होता है। छात्र मांग कर रहे हैं कि विश्वविद्यालय "योग्यता" के नाम पर जातिवाद को नहीं छिपाए और हर पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए शिक्षा को समावेशी बनाए। अमेरिका के रटगर्स यूनिवर्सिटी के एंटी-कास्ट कलेक्टिव अपनी ऑनलाइन याचिका के जरिये दुनियाभर से प्रोफेसर सेनरायपेरुमल के लिए समर्थन जुटा रहे हैं और इनकी मांग हैं:

  1. तत्काल बहाली: मद्रास हाई कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए प्रोफेसर सेनरायपेरुमल को तुरंत बहाल किया जाए और उनका पिछला वेतन व सभी लाभ लौटाए जाएँ।

  2. कानूनी अपील वापस ली जाए: विश्वविद्यालय अपनी अपील वापस ले और सभी दंडात्मक कार्रवाइयाँ रोके।

  3. संस्थागत समर्थन: प्रोफेसर को उनके शोध और शिक्षण के लिए पूरा संस्थागत समर्थन (कार्यालय, पुस्तकालय की सुविधा) दिया जाए।

  4. जवाबदेही और माफी: विश्वविद्यालय प्रशासन जातिगत भेदभाव के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगे।

  5. राजा-रानी अट्टम को मिले विरासत का दर्जा: तमिल नाडु सरकार राजा-रानी अट्टम को एक विरासत कला के रूप में मान्यता दे और इसके कलाकारों को संरक्षण प्रदान करे।

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