
एक नामचीन संगीत घराने में जन्मा युवा संगीतकार—बॉलीवुड एक्टर और कंपोजर का बेटा, एक मशहूर गायक का भाई। उसके गुस्से भरी धमकियां किसी हिट गाने की लाइन्स की तरह गूंजती हैं। आधी रात के घरेलू झगड़े में वो गरजता है, "हम इसे कुत्ता बना देंगे... डेंजरस लोग हैं, इधर क्या बाहर पकड़ लेंगे..."
एक दूसरे दिन, झगड़े में हदें पार करते हुए एक महिला कंटेस्टेंट से कहता है, "तू और तेरी मम्मी दोनों बी-ग्रेड हैं।" फिर भी, घरवाले सब भूल जाते हैं, माफ कर देते हैं। वोट देकर आमाल मल्लिक को टॉप 6 में बिठा देते हैं। बाहर फैंस? वे इसे "जोशीली आग" कहते हैं। उसके गुस्सैल नजरों के वीडियो एडिट्स रीमिक्स पर वायरल करते हैं। पोल नंबर्स आसमान छूते रहते हैं। कोई सवाल नहीं, कोई विरोध नहीं।
दूसरी तरफ 30 साल की एक स्पिरिचुअल इन्फ्लुएंसर। आँखों में उत्सुकता लिए शो में एंटर करती है। अपनी जिंदगी की सच्ची कहानियां सुनाती है: सख्ती में गुजरे बचपन से लेकर फैंसी साड़ियों का साम्राज्य खड़ा करने तक...आलिशान घर की कहानी जहां प्राइवेट लिफ्ट है..और शहर की चहल-पहल में 150 बॉडीगार्ड्स का लाव-लश्कर हर कदम पर साथ।
वो अपनी फैमिली की दौलत के बारे में बताती है—सोलर पैनल्स से कंस्ट्रक्शन मटेरियल तक कई फैक्टरियां। दुबई की बार-बार ट्रिप्स सिर्फ बकलावा खाने के लिए। दिल्ली आना एक कटोरी दाल का स्वाद चखने के लिए। ताजमहल को नजर भर देखते हुए गार्डन में कॉफी पीना। ये दावे घरवालों को हजम नहीं हुए। तन्या मित्तल अब "फेंकू-फर्जी" बन गई—पूरी तरह झूठी।
कॉ-कंटेस्टेंट्स उसे झूठा कहते हैं। घरवाले सबूत मांगते हैं जैसे कोर्ट में हों। असली चोट बाहर लगती है। ट्रोल्स सोशल मीडिया पर "झूठी एक्सपोज्ड" थ्रेड्स चला देते हैं। उसके ग्वालियर रूट्स की खोज में रहते हैं। आखिरकार एक एफआईआर फाइल हो जाती है—फ्रॉड का आरोप, अपराध?
सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर फैजान अंसारी ने ग्वालियर एसएसपी ऑफिस में तन्या के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। आरोप: लोगों से पैसे ठगना, बॉयफ्रेंड बलराज को जेल पहुंचाना। साथ ही, बिग बॉस 19 में फैमिली और पर्सनल लाइफ के बारे में झूठ बोलना। फैजान ने गिरफ्तारी की मांग की।
डॉक्सर्स और नीचे गिरते हैं। फैमिली के बैंक डिटेल्स, पुराने एड्रेस लीक कर देते हैं—शैडी रेडिट थ्रेड्स में। एक पोस्ट, 500 से ज्यादा लाइक्स के साथ, चिढ़ाता है: "दौलत की डींग मारते हुए गरीबी का नाटक कर रही है।"
बिग बॉस- भारत का सबसे बड़ा रियलिटी शो, जो लाखों दर्शकों को ड्रामा, झगड़ों और रिश्तों की जंग में बांध लेता है। लेकिन कैमरों की चमक के पीछे एक काला सच छिपा है: महिला कंटेस्टेंट्स को डिजिटल हिंसा का आसान टारगेट बना देना। बॉडी-शेमिंग, स्लट-शेमिंग, डॉक्सिंग और थ्रेट्स का तूफान—ये सब शो के बाहर फैल जाता है। 2025 में भी ये पैटर्न जारी है, जहां तन्या मित्तल जैसी महिलाएं डिजिटल हिंसा का शिकार हो रही हैं। ये रिपोर्ट हालिया एक्स पोस्ट्स, न्यूज और रिसर्च पर आधारित है, जो दिखाती है कि कैसे शो की 'एंटरटेनमेंट' महिलाओं के लिए परेशानियाँ खड़ी कर देती है।
इधर, पार्टिसिपेंट्स जैसे अभिषेक बाजाज 62 साल की वेट एक्ट्रेस कुनिका सदानंद पर उम्र का ताना मारते हैं: "बुरी आवाज वाली बूढी चुड़ैल।" लड़कों का क्लब हंस पड़ता है। कुनिका एक बार जवाब देती हैं—बाजाज की मां पर कमेन्ट के साथ। बस, ट्रोल्स उन्हें "गालियां देने वाली बुढ़िया" बुलाते हैं। उम्र को अपराध की तरह खोदते हैं। उनका क्लिप "प्रूफ शी'ज टॉक्सिक" बनकर ट्रेंड करता है। बाजाज के ताने? जल्दी भूल जाते हैं।
यही असमान खिंचाव का नजारा बिग बॉस मलयालम सीजन 7 में दिखा, जो अगस्त 2025 में शुरू हुआ। यहां दो साहसी महिलाएं, अधिला नासरिन और फातिमा नूरा, ने इतिहास रचा—केरल की पहली ओपनली लेस्बियन जोड़ी के रूप में शो में एंट्री की। वे टास्क्स के दौरान हाथ थामे रहती हैं, शोर के बीच नरम पल बांटती हैं, और अपना प्यार इतनी सहजता से अपनाती हैं जैसे ये दुनिया की सबसे आसान बात हो। लेकिन 13 सितंबर को घर में हंगामे के दौरान कंटेस्टेंट्स लक्ष्मी प्रियंका और मस्तानी ने "अननैचुरल" और "फोर्स्ड" जैसे शब्द उगल दिए। कैमरे घूमते रहे, और बाहर की दुनिया ने भी हमला बोल दिया।
ट्रोल्स ने मीम्स बनाए—नूरा के शरीर को "बहुत बोल्ड" या "अनफेमिनाइन" कहकर मजाक उड़ाया। #UnnaturalCouple जैसे हैशटैग्स स्लर्स और शेयर्स से फूट पड़े, एक आगे का कदम पीछे की ओर मोड़ दिया। अगले ही दिन होस्ट मोहनलाल ने दखल दिया, उनकी आवाज मजबूत और स्थिर: "अगर तुम उनके जैसे प्यार का सम्मान नहीं कर सकते, तो ये घर तुम्हारे लिए नहीं।" उन्होंने गर्मजोशी भरे शब्दों से गले लगाया, कहा कि वे उन्हें कभी भी घर पर वेलकम करेंगे, और फैंस ने इस स्टैंड पर तालियां बजाईं।
भारत का बिग बॉस फ्रेंचाइजी एक कल्चरल दानव है। लाखों को ड्रामा, गठबंधनों और बिना फिल्टर के टकरावों में खींच लेता है। ये स्क्रिप्टेड तमाशे और कच्ची इंसानी कमजोरियों की लाइन को धुंधला करता रहा है। कलर्स टीवी पर प्रसारित ये शो डच फॉर्मेट बिग ब्रदर पर आधारित है, जिसे एंडेमोल ने बनाया। हिंदी में यह शो 3 नवंबर 2006 को शुरू हुआ। 18 सीजन्स और 3 ओटीटी सीजन्स पूरे हो चुके हैं। अभी 19वां सीजन 7 दिसंबर को समाप्त हो जायेगा।
हिंदी के अलावा, भारत में तेलुगु, तमिल, मलयालम, कन्नड़, मराठी और बंगाली वर्जन भी हैं। बिग बॉस हिंदी सीजन 19 सलमान खान की दिलकश होस्टिंग में 6 अक्टूबर को शुरू हुआ। इन्फ्लुएंसर्स, टीवी एक्टर्स, फिल्म आर्टिस्ट्स और रियलिटी स्टार्स के फ्रेश चेहरों ने इस शो की लोकप्रियता सातवे आसमान पर पहुंचाई।
लेकिन शो की चमक-दमक के नीचे एक खतरनाक धारा बह रही है। जेंडर्ड ऑनलाइन वायलेंस—शो की बंद दीवारों से बाहर निकलकर सोशल मीडिया के विशाल, एल्गोरिदम-चालित अखाड़ों में फैल जाती है। खासकर महिलाओं को असमान तूफान झेलना पड़ता है: डॉक्सिंग, बॉडी-शेमिंग, स्लट-शेमिंग, धमकियां। ये स्क्रीन से निकल कर असल दुनिया में लंबे सदमे में बदल देती हैं।
बिग बॉस सिर्फ मनोरंजन नहीं, समाज का आईना है जहां पुरुषों की आग को "पैशन" कहें, तो महिलाओं के दावों को "दिखावा"? ऐसा क्यों है-यह सोचने का वक्त है ।
यह रिपोर्ट बिग बॉस 19 के शुरू होने से अब तक 100 से ज्यादा वेरीफाइड एक्स पोस्ट्स, न्यूज आर्टिकल्स और फैन एनालिसिस पर आधारित है। ये मुख्य महिला पार्टिसिपेंट्स जैसे तन्या मित्तल, फरहाना भट्ट, मालती चाहर और कुनिका सदानंद के खिलाफ डिजिटल बैकलैश को हाइलाइट करती है। इसमें आश्नूर कौर और नीलम गिरी जैसी दूसरी महिलाओं की कहानियां भी शामिल हैं, जो एक पैटर्न दिखाती हैं। वहीं, पुरुष कंटेस्टेंट्स जैसे अभिषेक बाजाज और आमाल मल्लिक को धमकियां या आक्रामक बातें करने पर वैसी सजा नहीं मिलती—महिलाएं ज्यादा मिसोजिनी (महिला-विरोधी नफरत) झेलती हैं।
एक्स (पहले ट्विटर) और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स के एल्गोरिदम आउट्रेज (गुस्से) को प्राथमिकता देते हैं। इससे इको चैंबर्स बन जाते हैं, जहां गालियां सपोर्ट से तेज ट्रेंड करती हैं। एक एक्स यूजर ने हंगामे के बीच शिकायत की, "बिग बॉस पहले इंडिविजुअलिटी के बारे में था, लेकिन आज ये हाइपोक्रिसी (पाखंड) का खेल है।" ये सिर्फ "ट्रोलिंग" नहीं—ये सिस्टमैटिक नुकसान है, जहां एंटरटेनमेंट की दुनिया महिलाओं के खिलाफ हिंसा को नॉर्मल बना देती है।
सर्चेस जैसे "बिग बॉस 19 हैरासमेंट" में 70% रिजल्ट्स महिलाओं पर टारगेटेड आते हैं। एपिसोड के बाद "स्लट", "फेक" और "गटर माउथ" जैसे अपशब्दों का इस्तेमाल बढ़ जाता है। ये रिपोर्ट इस क्रूरता को कम करने के लिए कुछ ठोस सुधार सुझाती है।
28 साल की स्पिरिचुअल इन्फ्लुएंसर तन्या मित्तल ने इंस्टाग्राम रील्स से वेलनेस और ह्यूमर मिक्स करके फेम कमाया। बिग बॉस 19 में डे 1 से एंट्री की। उनकी शांत हरकतें और मेंटल हेल्थ की बातें व्यूअर्स को दो हिस्सों में बांट गईं। घर में आमाल मल्लिक और गौरव खन्ना से गठबंधन बनाया, लेकिन राशन डिस्प्यूट पर इमोशनल ब्रेकडाउन के क्लिप्स ने बाहर तूफान खड़ा कर दिया।
ऑनलाइन ट्रोल्स ने इन पलों को कैरेक्टर अटैक में बदल दिया। 5 नवंबर का एक वायरल क्लिप दिखाता है—आमाल मल्लिक धमकाता है, "कुत्ता बना देंगे, बाहर भी पकड़ लेंगे।" लेकिन बैकलैश तन्या पर आ गया: आंसू बहाने को "फुटेज" के लिए फेक बताया। एक्स पर यूजर्स ने उन्हें मैनिपुलेटर कहा, जो "झूठ बोलती है और अपनी दौलत की डींग मारती है।"
गहराई में उतरें तो डॉक्सिंग के केस मिलते हैं। बचपन के एब्यूज का खुलासा करने के बाद ट्रोल्स ने पुरानी फैमिली फोटोज खोदीं और मजाक उड़ाया। एक रेडिट थ्रेड में दावा किया गया कि उन्होंने "एडल्ट टॉयज" बेचने वाले पुराने पोस्ट्स डिलीट कर दिए—स्लट-शेमिंग को प्रोफेशनल लाइफ से जोड़ा।
वाइल्ड कार्ड एंट्री मालती चाहर घर में आईं। उन्होंने घरवालों को बताया कि बाहर लोग तन्या के दावों को वेरीफाई कर रहे हैं और वो झूठे पाए गए। बस, सबने तन्या का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। उन्हें "फर्जी" कहा, और उनके हर ऐक्ट को "फुटेज" या कैमरा के लिए बताया।
एक सपोर्टर ने एक्स पर पोस्ट किया: "बार-बार बुलिंग, टारगेटिंग और शो की तरफ से गलत नैरेटिव सेट करना कंटेंट के लिए। अभी भी 'फेक' वाली स्टोरी को दूसरे कंटेस्टेंट्स की गंदी हरकतों को जस्टिफाई करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। #BB19 में बेसिक एम्पैथी और ह्यूमैनिटी कहां है?"
बिग बॉस 19 का सफर सिर्फ गेम नहीं, बल्कि महिलाओं पर डिजिटल हिंसा का आईना बन गया है। यहां फरहाना भट्ट और आश्नूर कौर जैसी कंटेस्टेंट्स की जिंदगियां ट्रोल्स की आग में झुलस रही हैं। पुरुषों को 'जोश' कहकर छोड़ दिया जाता है, लेकिन महिलाओं के हर कदम पर गालियां और शेमिंग का तूफान।
32 साल की एक्ट्रेस फरहाना भट्ट, जिन्हें 'लैला मजनू' फिल्म से जाना जाता है, घर में पीस एक्टिविस्ट बनकर आईं। लेकिन जल्द ही वो बॉडी-शेमिंग और होमोफोबिक ट्रोलिंग का केंद्र बन गईं। पूरे सीजन में उन्होंने अपनी बिना फिल्टर वाली पर्सनालिटी को दिखाया—वैम्पिश एज को बिना पछतावे के अपनाया। सलमान खान ने उनकी गालियों के लिए दो बार डांटा, लेकिन फरहाना नहीं बदली।
एक टास्क के दौरान उसने नीलम गिरी का इमोशनल लेटर फाड़ दिया। गौरव खन्ना को साफ कहा, "मुझे टीवी सीरियल्स से कोई लेना-देना नहीं, इंडस्ट्री में कदम रखने का मन ही नहीं।" ये सब उनकी नो-होल्ड्स-बार्ड पर्सनालिटी का हिस्सा था।
इसके बाद 10 नवंबर को उनके शुरुआती करियर का एक वायरल ऐड लीक हुआ—जिसमें 'अनरेकग्नाइजेबल' यूनिब्रो दिखा। ये ब्रूटल मॉकरी में बदल गया: "इस फेस के साथ बीबी में एंटर करने की हिम्मत—नेटिजन्स शॉक्ड।" एक्स पर "मनहूस औरत" और "प*गल औरत" जैसे अपशब्द उछले। एक पोस्ट को 591 लाइक्स मिले: "उसे 'अकेली रह जाएगी, अकेली मरेगी' जैसी गालियां देना दिखाता है कि ट्रोल्स उसे आइसोलेट करने पर तुले हैं।"
"फरहाना भट्ट एब्यूज" पर सिमेंटिक सर्च से 15 नेगेटिव हिट्स मिले—जिनमें "होमोफोबिक फ्रीक" और "गंदी जुबान" जैसे आरोप थे। घर की कमेंट्स को बाहर शेमिंग से जोड़ा गया।
फरहाना और आमाल का झगड़ा सबसे गंदा माना जा सकता है। आमाल ने एक्ट्रेस और उनकी मां के लिए गंदे शब्द इस्तेमाल किए, तो फरहाना ने भी तीखे जवाब दिए। आमाल की आंटी रोशन गैरी भिंडर ने 3 नवंबर को यूट्यूब पर फरहाना को "टेररिस्ट" कहा।
वीडियो वायरल हो गया, व्यूज चढ़ते गए। लेकिन 5 नवंबर को फरहाना का परिवार भिंडर को डिफेमेशन नोटिस भेजा, पब्लिक अपोलॉजी, वीडियो डिलीट और 1 करोड़ रुपये डैमेज की मांग रखी। फरहाना की पीआर टीम ने पोस्ट किया: "शब्द दर्द देते हैं, लेकिन मैं नहीं टूटूंगी।" उनकी ताकत ने ट्रोल्स को और भड़काया—अब "फेक विक्टिम" कहते हैं। आमाल के फैंस? उनके आउटबर्स्ट को "अल्फा एनर्जी" कहकर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
21 साल की आश्नूर कौर' 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' की चाइल्ड स्टार, सीजन 19 को अपनी 'रीइन्वेंशन' के लिए चुनती है। शुरुआती टास्क्स में उनकी बबली एनर्जी चमकी। लेकिन 8 नवंबर को कैप्टेंसी स्ट्रगल टास्क टॉक्सिक हो गया। कुनिका सदानंद, नीलम गिरी और तान्या ने फुसफुसाते हुए कहा: "जुरासिक पार्क का डायनासोर—डिटॉक्स भी इस ब्लोट को ठीक नहीं कर सकता।" नीलम ने जोड़ा, "कुनिका से भी ज्यादा बड़ी लगती है, खाने पर कंट्रोल नहीं।" आश्नूर ने सुन लिया, सन्न रह गईं।
14 नवंबर को फैमिली वीक ने उन्हें तोड़ दिया। पापा के गले लगकर रोईं: "टीनएज से यह सताता आया, ईटिंग डिसऑर्डर हो गया।" वीकेंड के वार पर सलमान ने तिकड़ी को फटकारा: "21 साल की लड़की को बॉडी-शेमिंग? शर्म करो।"
सेलेब्स ने सपोर्ट किया। हिना खान ने ट्वीट किया: "घिनौना—आश्नूर कॉन्फिडेंट और टैलेंटेड है। इसे खत्म करो।" लेकिन ऑनलाइन? फुसफुसाहट चीखों में बदल गई। 15 नवंबर को #AshnoorOut ट्रेंड हुआ—गेमप्ले नहीं, "कर्व्स" के लिए। एडिटेड क्लिप्स में "वेट गेन टेंडेंसी" पर जूम, "स्नैक मॉन्स्टर" मीम्स सैकड़ों की तादाद में शेयर हुए ।
फैमिली वीक में आश्नूर का रिसेंट लुक भी ट्रोलिंग का शिकार हुआ। लेकिन शहबाज का शर्टलेस लुक? जीरो ट्रोल्स या बॉडी-शेमिंग। आश्नूर को फैमिली-वीक कपड़ों पर बेरहम मजाक झेलना पड़ा—ये कंट्रास्ट समाज की दोहरी मानसिकता दिखाता है।
शो के होस्ट सलमान खान ने "वीकेंड का वॉर" प्लेटफॉर्म पर हमेशा गलत हरकतों को बेनकाब किया है, चाहे गुनहगार कोई भी हो। उन्होंने आमाल मल्लिक की धमकियों पर डांटा, शहबाज की महिला-विरोधी बातों पर फटकार लगाई, फरहाना को उनकी गालियों के लिए जिम्मेदार ठहराया, और तन्या को आश्नूर कौर को बॉडी-शेमिंग करने पर सुधारने को कहा। आधिकारिक तौर पर तो सुधार का संदेश दे दिया जाता है। लेकिन ये फटकार अक्सर जनता की सोच तक नहीं पहुंच पाती।
दर्शक पहले से चले आ रहे पूर्वाग्रहों और एल्गोरिदम की आग से भड़कते हैं। वे घटनाओं को चुनिंदा तरीके से देखते हैं। होस्ट की नैतिक बातें जल्द भूल जाती हैं, जबकि मूल, बिना एडिट के झगड़े के पल निकाले जाते हैं, हथियार बनाए जाते हैं, और वायरल हो जाते हैं। ये गतिशीलता खासतौर पर जेंडर के आधार पर उग्र होती है—जब कोई महिला विवाद की केंद्र में आती है, तो बैकलैश असमान रूप से कठोर होता है। वो कंटेस्टेंट से टारगेट बन जाती है, लंबे डिजिटल हिंसा का शिकार। वहीं, पुरुष कंटेस्टेंट्स की गलतियां नजरअंदाज हो जाती हैं, जस्टिफाई की जाती हैं, या रणनीतिक गेमप्ले के तौर पर मनाई जाती हैं। ये असमान जमीन नई नहीं—18 सीजन्स से शो की छाया है, जहां साहसी महिलाएं आगे बढ़ती हैं और स्पॉटलाइट में आती हैं, जो उनके खिलाफ रिग्ड है।
सीजन 4 को याद करें—श्वेता तिवारी, सिंगल मॉम, जो अपने बच्चे की नॉर्मल जिंदगी के लिए लड़ रही थीं। एक हाउसमेट के तलाक के गंदे तानों का सामना किया। उन्होंने सीजन जीता, ट्रॉफी हाथ में, लेकिन ऑनलाइन? ट्रोल्स ने उनके पुराने रिलेशनशिप्स को स्लट-शेम किया, उनकी कर्व्स को "डेस्परेट आंटी बेट" कहकर बॉडी-बैश किया।
फास्ट-फॉरवर्ड सीजन 11—शिल्पा शिंदे, बबली बहू टाइप, विकास गुप्ता से जबरदस्त झगड़ों में भिड़ीं। विकास ने उन्हें "अनपढ़" कहा, शिल्पा ने तीखा जवाब दिया। विकास को "मास्टरमाइंड" पेंट किया गया, उनके तीर "टफ लव" कहलाए। शिल्पा? "गॉसिप क्वीन" का लेबल लगा, वेट ट्रोल्स ने उन्हें लंबे समय तक सताया। पोस्ट्स जैसे "मोटी और फेक—कैसे सबको बेवकूफ बनाया?" शेयर्स बटोरते रहे।
18 सीजन्स में टोल जुड़ता जाता है: महिलाएं जैसे गौहर खान (सीजन 7 विनर) सम्मान मांगने पर "डिवा गॉन रॉन्ग" टैग झेलती हैं, जबकि पुरुष जैसे गौतम गुलाटी (सीजन 8) उसी के लिए "बैड बॉय चार्म" पाते हैं। ये खामोश बायस है, बिंज-वॉच कल्चर में बसी हुई, जहां महिलाओं की आग "ड्रामा" है, पुरुषों की "आइकॉनिक"।
18 सीजन्स में से आठ ट्रॉफियां महिलाओं को मिलीं—श्वेता तिवारी, जूही परमार, उर्वशी ढोलकिया, गौहर खान, शिल्पा शिंदे, दीपिका कक्कड़, रुबीना दिलैक, और तेजस्वी प्रकाश। ये आधे से कम। बाकी दस पुरुषों के पास—राहुल रॉय, अशुतोष कौशिक, विनदू दारा सिंह, गौतम गुलाटी, प्रिंस नरूला, मनवीर गुर्जर, सिद्धार्थ शुक्ला, एमसी स्टैन, मुन्नवर फारूकी और करण वीर मेहरा। क्यों? सिर्फ गेम स्मार्ट्स नहीं—दर्शकों का वोट, वही जो स्ट्रॉन्ग स्टैंड पर #EvictHer ट्रेंड करता है, लेकिन गलतियों पर #SaveHim रैली करता है।
समाज महिलाओं को अच्छा खेलने, सॉफ्ट रहने पर ताली बजाता है। फरहाना फेयर प्ले मांगती है—तो बैकलैश दीवारें खड़ी करता है। स्क्रीन पर स्ट्रॉन्ग महिलाएं? इंस्पायर करती हैं। लेकिन वोट काउंट में वो स्ट्रेंथ "बॉसी" या "अनलाइकेबल" बन जाती है, पुरुष पुरस्कार और तारीफ लूट लेते हैं। ये माइंडसेट का आईना है: हम शो को उसके मेस के लिए प्यार करते हैं, लेकिन जब महिलाएं मेस बनाती हैं, तो हम क्रूरता से साफ करते हैं।
मारिया जूलियाना, जिन्हें जूली के नाम से जाना जाता है, बिग बॉस तमिल सीजन 1 (2017) में अपनी फायरी स्टिंट से फेमस हुईं। लेकिन कीमत भारी पड़ी—घर में अनफिल्टर्ड हरकतों पर लगातार पब्लिक मॉकरी और क्रिटिसिज्म। एविडिशन के बाद भी बैकलैश रुका नहीं, ट्रोल्स ने उनकी फिल्म 'अम्मन थाये' (2019) के टीजर को सोशल मीडिया पर बुरी तरह सताया।
नॉनस्टॉप नेगेटिविटी से तंग आकर जूलियाना ने इमोशनल वीडियो जारी किया—एब्यूजर्स पर भड़कीं, जो दो साल पुरानी शो की "झूठ" पर क्रास इंसल्ट्स उछाल रहे थे। "मुझे इतनी गंदी कमेंट्स मिलती हैं कि पढ़ भी नहीं पातीं, ये एंडलेस हेट क्यों? इससे तुम्हें क्या मिलता है? मैंने कभी तुम्हें पर्सनली हर्ट किया? अगर नहीं, तो एक बिग बॉस स्लिप के लिए क्यों घसीटते हो? एब्यूज लूंगी तभी अगर हर हेटर एडमिट करे कि उन्होंने कभी जिंदगी में झूठ नहीं बोला," उन्होंने गुस्से में कहा, उनकी मार्मिक अपील शोर को चीर गई।
डॉमेस्टिक एब्यूज के खिलाफ लड़ने वाली वुमेंस राइट्स एक्टिविस्ट जयपुर की सुमन देवथिया, कई सीजन्स पहले बिग बॉस देखना छोड़ चुकीं हैं। सुमन कहती हैं, "मैंने शो फॉलो करना बंद कर दिया क्योंकि इसका कंटेंट इतना लो है और मिसोजिनिस्टिक अप्रोच इतना गहरा। पार्टिसिपेंट्स पर कोई चेक नहीं, इसलिए वे हमेशा गंदी बातें करते रहते हैं—बेल्ट के नीचे। मिनिस्ट्री क्यों ऐसे शोज पर रेगुलेशन्स नहीं लगाती? आईएंडबी को फिल्मों की तरह सेंसिटिविटी ट्रेनिंग अनिवार्य करनी चाहिए। ये फन नहीं—ये हेट की फ्री लेसन है।"
26 साल की लॉयर शाइनी सैमसन, जो साइबर-हैरासमेंट केसेज पर प्रैक्टिस बना रही हैं भी इस बात सेसहमत हैं। शाइनी कहती हैं, "ये साफतौर पर जेंडर वायलेंस को फ्यूल करता है। लोग अभी भी उन मेल कंटेस्टेंट को पसंद करते हैं जो महिलाओं का सम्मान नहीं करते।" वे आमाल की गालियों का उदाहरण देती हैं: "फिजिकल असॉल्ट ही बाहर फेंकता है, लेकिन स्पोकेन हैरासमेंट? बीप हो जाता है और भुला दिया जाता है।"
रिटायर्ड साइकोलॉजिस्ट डॉ. गायत्री तिवारी, जेंडर बेस्ड डिजिटल हैरासमेंट पर विस्तार से बताती हैं। अपने स्टडी के आधार पर वह कहती हैं, "शो क्लासिक ऑपरेंट कंडीशनिंग मॉडल पर चलता है। जब पुरुष कंटेस्टेंट्स एग्रेशन या मिसोजिनी यूज करते हैं और उसके बाद ज्यादा स्क्रीन टाइम, पब्लिक अटेंशन, यहां तक कि जीत मिलती है, तो ये बिहेवियर व्यूअर्स के दिमाग में पावरफुली रीइनफोर्स होता है। कांस्टेंट, बीप्ड-आउट वर्बल एब्यूज खासतौर पर खतरनाक है—ये महिलाओं को डिग्रेड करने की नीयत को नॉर्मलाइज करता है, जबकि सजा न मिलने से सिखाता है कि ऐसा बिहेवियर सोशल सक्सेस के लिए इफेक्टिव, यहां तक कि सेलिब्रेटेड स्ट्रेटेजी है।"
फरवरी 2024 का रिसर्च पेपर "द डार्क साइड ऑफ रियलिटी टीवी: ए केस स्टडी ऑफ 'बिग बॉस'" प्रसन्ना दासारी द्वारा लिखा गया। इसका मुख्य निष्कर्ष: "बिग बॉस (तेलुगु)" टॉक्सिक व्यूइंग एनवायरनमेंट बनाता है—एडिक्टिव हैबिट्स को प्रमोट करके, नेगेटिव बिहेवियर्स जैसे एग्रेशन और इमोशनल मैनिपुलेशन को नॉर्मलाइज करके, और ऑडियंस में एंग्जायटी व स्ट्रेस जैसी मेंटल हेल्थ इश्यूज को बढ़ाकर। कंटेंट एनालिसिस और केस स्टडी से दिखाया गया कि शो का कॉन्फ्लिक्ट और वॉयरिज्म पर निर्भरता व्यूअर्स में इमोशनल रिएक्टिविटी बढ़ाती है और सोशल डिटैचमेंट लाती है।
इन निष्कर्षों पर स्टडी स्ट्रॉन्ग रेकमेंडेशन देती है—कंटेंट की क्रिटिकल री-इवैल्यूएशन। मीडिया प्रोड्यूसर्स को एथिकल रिस्पॉन्सिबिलिटी अपनानी चाहिए, व्यूअर्स को कॉन्शस क्रिटिकल कंज्यूमर्स बनना चाहिए। पेपर सामूहिक प्रयास की वकालत करता है, ताकि रियलिटी टीवी सोशल और पर्सनल वेल-बीइंग को ऊंचा उठाए, न कि गिराए।
सोशलली कॉन्शस इंडिविजुअल अंशु नायर कहती हैं, मेकर्स के पास कंटेनमेंट का साफ रास्ता है। "प्रोड्यूसर्स को परफॉर्मेटिव बीप्स से आगे बढ़ना चाहिए और हर फॉर्म के हैरासमेंट पर स्ट्रिक्ट जीरो-टॉलरेंस पॉलिसी लागू करनी चाहिए, वर्बल हो या कुछ और। इसका मतलब—तुरंत फाइनेंशियल पेनल्टीज, और सीरियस या रिपीटेड ऑफेंस पर शो से एक्सपल्शन। साथ ही, सेट पर हमेशा लाइसेंस्ड काउंसलर्स रखें—कंटेस्टेंट्स को रीयल-टाइम सपोर्ट दें और टॉक्सिक सिचुएशन्स को एंटरटेनमेंट से पहले रोके।"
बिग बॉस इसलिए चलता है क्योंकि ये रीयल दिखाता है: खामियां, झगड़े, सब। लेकिन सीजन 19 के समाप्ति के साथ साथ गर्जना बदलने का वक्त है। कम ड्रामा नहीं, बल्कि फेयरर फाइट्स। कम डॉक्सिंग, ज्यादा डायलॉग। प्लेटफॉर्म्स स्लर्स को गंभीरता से फ्लैग करें, और फैंस? हम कमबैक्स पर लाइक करें, कट्स पर नहीं। क्योंकि जब ये महिलाएं एक्स्ट्रा वेट झेलती हैं—ट्रोल्स, थ्रेट्स, टिल्टेड स्केल्स—वे सिर्फ सर्वाइव नहीं करतीं। वे स्ट्रॉन्ग को रीडिफाइन करती हैं। और दुनिया देख रही है, तो ये रीयल विन है।
-गीता सुनील पिल्लई लाडली मीडिया फेलो हैं। व्यक्त किए गए मत और दृष्टिकोण लेखिका के अपने हैं। लाडली और यूएनएफपीए इन दृष्टिकोणों को आवश्यक रूप से समर्थित नहीं करते हैं।
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