
नई दिल्ली- उत्तर भारत में बुर्का और हिजाब को लेकर विवाद ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। बुधवार को लखनऊ में विश्व हिंदू परिषद (VHP) का प्रदर्शन, हाल ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक मुस्लिम महिला डॉक्टर का हिजाब उतारना और उत्तर प्रदेश के शमली में बुर्का न पहनने पर पत्नी-बेटियों की हत्या जैसी घटनाओं ने पूरे देश को हिला दिया है। ये घटनाएं न केवल धार्मिक पहचान पर हमले को दर्शाती हैं, बल्कि महिलाओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद पर सवाल भी खड़े कर रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद हिंदू राष्ट्रवाद, सुरक्षा चिंताओं और लिंग असमानता के बीच उलझा हुआ है, जहां कुछ धार्मिक प्रतीक (जैसे पगड़ी) को सहन किया जाता है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं के बुर्का-हिजाब को 'अनुशासन' के नाम पर निशाना बनाया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त कहती हैं, " नीतीश कुमार द्वारा लड़की का हिजाब खींचना किसी घूंघट संबंधी बहस का विषय नहीं है। कोई पुरुष किसी महिला के चेहरे/शरीर को, चाहे वह उसे जानता ही न हो या उससे अधिक शक्तिशाली हो, उसकी सहमति के बिना नहीं छू सकता। सीधी सी बात है। यह पूरी तरह से अनुचित है।"
17 दिसंबर को लखनऊ में VHP और बजरंग दल के सदस्यों ने विश्वविद्यालयों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा बुर्का-हिजाब पहनने का विरोध किया। परिवर्तन चौराहा से शुरू होकर जिला कलेक्ट्रेट तक चली इस रैली में प्रदर्शनकारियों ने 'सख्त ड्रेस कोड' की मांग की, ताकि शैक्षणिक संस्थानों में 'अनुशासन' बना रहे। आश्चर्यजनक रूप से, मांग उठाने वाले एक प्रमुख व्यक्ति खुद पगड़ी पहने हुए थे - जो सिख धर्म का धार्मिक प्रतीक है। सोशल मीडिया पर 'मुस्लिम आईटी सेल' ने इसे हाइपोक्रिसी का प्रतीक बताते हुए ट्वीट किया: "पगड़ी Allowed? बुर्का/हिजाब Banned? क्यों?" यह पोस्ट वायरल हो गया, जिसमें कहा गया कि धार्मिक वेशभूषा कुछ के लिए स्वीकार्य है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए समस्या। पुलिस ने प्रदर्शन को शांतिपूर्ण रखा, लेकिन विपक्ष ने इसे 'धार्मिक भेदभाव' करार दिया।
यह घटना 2022 के कर्नाटक हिजाब विवाद की याद दिलाती है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब को 'आवश्यक धार्मिक प्रथा' नहीं माना था। लेकिन हाल के वर्षों में, यूनिफॉर्म कोड के नाम पर ऐसे प्रतिबंध बढ़े हैं।
15 दिसंबर को पटना में आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र बांटते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत परवीन का हिजाब जबरन उतार लिया। वीडियो में कुमार कहते सुनाई देते हैं, "ये क्या है?" और फिर हिजाब खींच लेते हैं। महिला स्तब्ध नजर आई, जबकि उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने रोकने की कोशिश की। इस घटना पर विपक्ष ने तीखा प्रहार किया - आरजेडी ने कुमार की 'मानसिक स्थिति' पर सवाल उठाए, जबकि कांग्रेस ने इस्तीफे की मांग की। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नीतीश घटना को 'महिलाओं की गरिमा पर हमला' कहा।
डॉ. परवीन ने अपमानित महसूस करते हुए सरकारी नौकरी जॉइन न करने का फैसला लिया। लखनऊ और हैदराबाद में कुमार के खिलाफ शिकायतें दर्ज हुईं। जेडीयू नेता ने इसे 'पिता जैसा प्रेमपूर्ण इशारा' बताया, लेकिन मुस्लिम महिला संगठनों ने इसे 'अपमान और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन' कहा। जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने इसे पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती के एक पुराने 'बुर्का हटाने' वाले घटना से जोड़ा, उन्होंने कहा पहले नीतीश को एक सेक्युलर नेता माना जाता था. लेकिन अब उनका असली चेहरा सामने आ रहा है. उन्होंने कहा कि अगर मुख्यमंत्री नीतीश को हिजाब लगाए महिला को जॉइनिंग लेटर नहीं देना था, तो वह उसे एक तरफ कर देते. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ने कहा कि इस तरह से सार्वजनिक मंच पर किसी को अपमानित करना ठीक नहीं है.
पत्रकार तरुशी अश्वनी कहती हैं, " अगर नीतीश कुमार के किए पर कोई जवाबदेही नहीं बनती और उन्हें सजा नहीं मिलती, तो मुझे डर है कि दक्षिणपंथी गुंडे फिर क्या करेंगे, जब भी वे किसी मुस्लिम महिला को सार्वजनिक रूप से नकाब पहने देखेंगे।"
पोलित ब्यूरो की सदस्य कामरेड सुभाषिनी अली के मुताबिक, " CM नितीश कुमार द्वारा एक मुस्लिम महिला डाक्टर को नियुक्ति पत्र देने के समय भरी सभा में उसका नकाब अपने हाथ से जबरन खींचना उनका मानसिक स्थिति पूर्ण रुपेण खराब हो चुका है या वो संघी हो चुके हैं। एडवा बिहार इस घटना का तीव्र निन्दा करती है। यह एक महिला के साथ CM द्वारा यौन हिंसा है।"
10 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के शमली जिले के गढ़ी दौलत गांव में फारूक नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी ताहिरा (35) और दो बेटियों आफरीन (14) व साहरीन (7) की हत्या कर दी। वजह? पत्नी ने मायके जाते समय बुर्का न पहना। आरोपी ने शवों को घर के आंगन में गड्ढा खोदकर दफना दिया और कई दिनों तक सामान्य जीवन जिया। पड़ोसियों की शिकायत पर पुलिस ने 17 दिसंबर को शव बरामद किए और फारूक को गिरफ्तार किया। एसएसपी एनपी सिंह ने इसे 'घरेलू हिंसा और ऑनर किलिंग' बताया।
यह घटना महिलाओं पर जबरन बुर्का थोपने की कट्टर मानसिकता को उजागर करती है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह न केवल लिंग हिंसा है, बल्कि धार्मिक अतिवाद का रूप भी। विपक्ष ने इसे 'महिलाओं की सुरक्षा' पर सवाल उठाने का मौका बनाया।
बुर्का-हिजाब विवाद की जड़ें धार्मिक स्वतंत्रता (संविधान के अनुच्छेद 25) और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच टकराव में हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट के 2022 फैसले के बाद से, कई संस्थानों ने 'यूनिफॉर्म कोड' लागू किया, लेकिन आलोचक इसे मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाने का हथकंडा बताते हैं। पगड़ी जैसे प्रतीकों को 'आवश्यक' मानने vs. हिजाब को 'गैर-आवश्यक' ठहराने की दोहरी नीति पर सवाल उठे हैं।
2025 में ये घटनाएं राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने नीतीश घटना को 'महिलाओं की गरिमा पर हमला' कहा। शमली मामले में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने वाली है, जबकि नीतीश पर शिकायतों की जांच शुरू। विशेषज्ञ चेताते हैं कि यह विवाद महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों को प्रभावित कर सकता है। सरकार को संतुलित नीति अपनाने की जरूरत है, जहां पसंद का सम्मान हो, लेकिन सुरक्षा सुनिश्चित हो।
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