MP: 26 साल बाद 'खून का कर्ज' चुकाने पहुँचे पुलिस अफसर, सफाई कर्मी 'संतू मास्टर' की बेटियों के भाई बने!

अब लिया संकल्प-बेटी का कन्यादान करेंगे
 वायरल वीडियो में दिखा कि कैसे डीवाईएसपी सतोष पटेल संतु मास्टर की बेटियों से आदर-सम्मान से मिले।
वायरल वीडियो में दिखा कि कैसे डीवाईएसपी सतोष पटेल संतु मास्टर की बेटियों से आदर-सम्मान से मिले।
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सतना- कभी-कभी जिंदगी की सबसे बड़ी कहानियाँ छोटे-छोटे नेक कामों से ही रची जाती हैं। 1999 का वो काला दौर, जब एक बच्चे को बाबाओं की झाड़-फूंक ने मौत के मुहाने पर ला खड़ा किया था। सतना के बिरला अस्पताल में भर्ती होने के बाद ऑपरेशन रुक गया क्योंकि खून नहीं मिल पा रहा था। तभी एक साफ-सफाई करने वाले कर्मचारी ने बिना सोचे-समझे अपना खून दान कर दिया। वो खून न सिर्फ एक जिंदगी बचाने वाला था, बल्कि आज भी एक अनमोल रिश्ते की नींव बना हुआ है।

26 साल बाद आज वह बालक डीवाईएसपी बन गया है, किसी काम से सतना आये तो संतु मास्टर के बारे में पूछने के लिए अस्पताल गया और उनके घर का पता लेकर पहुंच गये। लेकिन किस्मत का खेल देखिए – दो महीने पहले सर्पदंश से संतु मास्टर की मौत हो चुकी थी।

यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं बल्कि सच्ची घटना है जिसे स्वयं उसी पुलिस अधिकारी ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है। ग्वालियर के डिप्टी अधिकारी संतोष पटेल ने बताया कि 25-26 साल पहले जब बाबाओं के चक्कर में उनकी जिन्दगी दाव पर लगी थी उनके पिता उनका इलाज करवाने सतना होस्पिटल लेकर आये। संतोष पटेल ने बताया कि " मेरे पिता गुटखा खाते थे तो अस्पताल की उपर की बिल्डिंग से नीचे थूक दिया, तब सन्तु मास्टर ने उन्हें गंदगी फैलाने को लेकर डांटने के लिए उपर आये थे और इसी घटना से दोनों के बीच दोस्ती हो गयी।" आगे कहते हैं कि किसी ने खून नहीं दिया था लेकिन जब खानदान काम नहीं आता वहां खूनदान काम आता है"। 29 दिसंबर को पटेल किसी काम से सतना आये तो वे उस परिवार की तलाश में निकले और तीन घंटे की खोजबीन के बाद सन्तु मास्टर के घर पहुंचे और उनकी बेटियों से मुलाकात हुई। पटेल उनसे बेहद अपनेपन और प्यार से मिले और उन्हें उपहार देकर उनका पांव छूकर आशीर्वाद भी लिया।

उन्होंने भरोसा दिलाया कि आगे किसी भी जरूरत पर भाई की तरह मदद मिलेगी। ये भावुक पल देख सोशल मीडिया पर तहलका मच गया। यूजर्स कमेंट्स की बाढ़ ला रहे हैं– "अपने 26 साल पुराना धर्म निभाया है। भगवान आपको लंबी उम्र दे"।

एक अन्य यूजर ने लिखा, " यह सिर्फ़ अच्छा नहीं, बल्कि असाधारण और प्रेरणादायक विचार है। जिस व्यक्ति ने बिना किसी स्वार्थ के आपको जीवनदान दिया, उसकी स्मृति में उसकी बेटी का कन्यादान करना—यह मानवता, कृतज्ञता और संस्कारों की सबसे ऊँची मिसाल है। 26 साल बाद भी उस ऋण को याद रखना बताता है कि इंसानियत ज़िंदा है और रिश्ते सिर्फ़ खून से नहीं, कर्म और करुणा से बनते हैं। संतु मास्टर भले इस दुनिया में न हों, लेकिन आपका यह संकल्प उन्हें अमर कर देता है।"

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