Supreme Court's Landmark Ruling | राजस्थान क्लर्क ग्रेड-II परीक्षा विवाद: मेधावी SC/ST/OBC उम्मीदवारों को जनरल कैटेगरी में एंट्री की हरी झंडी!

जस्टिस दीपंकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने स्पष्ट किया कि मेरिट पर आधारित समानता के सिद्धांत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, और आरक्षित उम्मीदवारों को किसी विशेष छूट का लाभ न लेने पर ओपन कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा का मौका मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट  ने साफ किया कि आरक्षित वर्ग का मेधावी छात्र, बिना किसी रियायत के, सामान्य वर्ग के कटऑफ से ज्यादा अंक लाता है तो उसे खुले पद पर मेरिट से चुना जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि आरक्षित वर्ग का मेधावी छात्र, बिना किसी रियायत के, सामान्य वर्ग के कटऑफ से ज्यादा अंक लाता है तो उसे खुले पद पर मेरिट से चुना जा सकता है।
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नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने  राजस्थान उच्च न्यायालय की न्यायिक सहायक/क्लर्क ग्रेड-II की भर्ती प्रक्रिया से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में अपना निर्णय सुनाया है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने राजस्थान उच्च न्यायालय प्रशासन की अपील को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि आरक्षित वर्ग का कोई भी उम्मीदवार, जिसने लिखित परीक्षा में सामान्य वर्ग के कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए हैं, उसे सामान्य (खुले) श्रेणी का उम्मीदवार माना जाएगा और उसके साथ मेरिट के आधार पर समान व्यवहार किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इससे "दोहरे लाभ" का तर्क देना गलत है।

यह मामला राजस्थान हाईकोर्ट के जयपुर बेंच द्वारा 18 सितंबर 2023 को पारित आदेश से उपजा था, जिसमें डीबी सिविल रिट पिटीशन नंबर 7564/2023 और इससे जुड़े अन्य मामलों को निपटाया गया था। राजस्थान डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स मिनिस्टीरियल एस्टेब्लिशमेंट रूल्स, 1986 और राजस्थान हाईकोर्ट स्टाफ सर्विस रूल्स, 2002 के तहत जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट/क्लर्क ग्रेड-आईआई के 2756 पदों पर भर्ती के लिए 5 अगस्त 2022 को विज्ञापन जारी किया गया था। इस भर्ती में सामान्य, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), मोस्ट बैकवर्ड क्लास (एमबीसी), आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) और अन्य क्षैतिज आरक्षण श्रेणियों के लिए रिक्तियां निर्धारित की गई थीं। चयन प्रक्रिया में 300 अंकों का लिखित परीक्षा और 100 अंकों का कंप्यूटर आधारित टाइपराइटिंग टेस्ट शामिल था, जिसमें सामान्य श्रेणी के लिए 50%, ओबीसी के लिए 45% और एससी/एसटी/पीडब्ल्यूडी के लिए 40% न्यूनतम अंक निर्धारित थे। केवल पांच गुना उम्मीदवारों को ही टाइपराइटिंग टेस्ट के लिए शॉर्टलिस्ट किया जाना था।

लिखित परीक्षा 12 और 19 मार्च 2023 को आयोजित हुई, और परिणाम 1 मई 2023 को घोषित किए गए। लेकिन विवाद तब पैदा हुआ जब आरक्षित श्रेणी के कई उम्मीदवारों, जिन्होंने सामान्य श्रेणी के कट-ऑफ (196.3451 अंक) से अधिक अंक हासिल किए थे, उन्हें अपनी श्रेणी के उच्च कट-ऑफ के कारण टाइपराइटिंग टेस्ट से बाहर कर दिया गया। उदाहरण के लिए, ओबीसी-एनसीएल का कट-ऑफ 230.4431, ईडब्ल्यूएस का 224.5384, एससी का 202.4398 और एमबीसी-एनसीएल का 203.3569 था, जो सामान्य से कहीं अधिक था। इससे आरक्षित उम्मीदवारों की मेरिट को नजरअंदाज कर दिया गया, और उन्हें केवल अपनी श्रेणी तक सीमित रखा गया। रजत यादव जैसे उम्मीदवारों ने 10 मई 2023 को हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की, जिसमें परिणाम रद्द करने और ओपन कैटेगरी में शामिल करने की मांग की गई। हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं को स्वीकार करते हुए निर्देश दिए कि ओपन कैटेगरी की सूची पहले मेरिट के आधार पर तैयार की जाए, जिसमें आरक्षित उम्मीदवारों को भी शामिल किया जाए, यदि उन्होंने कोई विशेष लाभ न लिया हो।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि श्रेणीवार शॉर्टलिस्टिंग वैध है, लेकिन मेधावी आरक्षित उम्मीदवारों को ओपन कैटेगरी में जगह न देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा, "आरक्षित श्रेणी के एक उम्मीदवार को, भले ही वह सामान्य/ओपन श्रेणी के कट-ऑफ से अधिक अंक हासिल कर ले, केवल अपनी श्रेणी के कारण बाहर करना समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होगा।" हाईकोर्ट ने चतुर सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1996) 11 एससीसी 742 और धर्मवीर थोलिया बनाम राजस्थान राज्य (2000) 3 डब्ल्यूएलसी 399 जैसे मामलों का जिक्र करते हुए अंतर स्पष्ट किया कि प्रारंभिक परीक्षा के चरण में माइग्रेशन लागू नहीं होता, लेकिन मुख्य परीक्षा के बाद यह सिद्धांत लागू होता है। कोर्ट ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992 सप्लेमेंट्री (3) एससीसी 217) और आर.के. सभरवाल बनाम पंजाब राज्य (1995) 2 एससीसी 745 का हवाला देते हुए कहा कि ओपन कैटेगरी सभी के लिए खुली है, और मेरिटोरियस आरक्षित उम्मीदवार को अपनी श्रेणी में बांधना गलत है।

अपीलकर्ताओं (राजस्थान हाईकोर्ट और रजिस्ट्रार) के वकील निधेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि माइग्रेशन का लाभ केवल अंतिम मेरिट लिस्ट के चरण में मिलना चाहिए, न कि शॉर्टलिस्टिंग स्टेज पर। उन्होंने विकास संखला बनाम विकास कुमार अग्रवाल (2017) 1 एससीसी 350, प्रदीप सिंह देहल बनाम एचपी राज्य (2019) 9 एससीसी 276 और सौरभ यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2021) 4 एससीसी 542 जैसे मामलों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि आरक्षित उम्मीदवारों को दोहरी लाभ नहीं मिल सकता। गुप्ता ने चेतावनी दी कि यदि शॉर्टलिस्टिंग स्टेज पर माइग्रेशन की अनुमति दी गई, तो यह प्रक्रिया में दो बार लाभ दे देगा। उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता उम्मीदवारों ने भर्ती प्रक्रिया में भाग लिया था, इसलिए एस्ट्रोपल (निषेध) के सिद्धांत से वे चुनौती नहीं दे सकते।

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता उम्मीदवारों के वकील डॉ. के.एस. चौहान ने तर्क दिया कि ओपन कैटेगरी को केवल सामान्य उम्मीदवारों के लिए आरक्षित मानना साम्प्रदायिक आरक्षण जैसा है, जो संविधान द्वारा निषिद्ध है। उन्होंने सौरभ यादव मामले का विशेष जिक्र करते हुए कहा कि ओपन कैटेगरी मेरिट पर आधारित है, न कि जाति पर। चौहान ने जोर दिया कि लिखित परीक्षा मुख्य चरण है, जो कुल 75% वेटेज रखती है, इसलिए यहां मेरिट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि यदि मेधावी आरक्षित उम्मीदवार को बाहर किया जाता है, तो समानता का सिद्धांत कमजोर पड़ जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ताओं के एस्टोपेल के तर्क को खारिज करते हुए कहा, "याचिकाकर्ता उम्मीदवारों को विज्ञापन में श्रेणीवार सूची की जानकारी तो थी, लेकिन मेधावी आरक्षित उम्मीदवारों को ओपन कैटेगरी से बाहर करने का कोई संकेत नहीं था। इसलिए, एस्टोपेल लागू नहीं होता।" कोर्ट ने दोहरी लाभ के भय को भी गलत ठहराया और स्पष्ट किया कि यदि आरक्षित उम्मीदवार ने कोई छूट (जैसे आयु या शुल्क में छूट) न ली हो, तो वह पूरी तरह मेरिट पर ओपन कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा कर सकता है। जस्टिस दत्ता ने फैसले में कहा, "ओपन कैटेगरी का अर्थ है 'ओपन', यानी यह किसी जाति, जनजाति या वर्ग के लिए आरक्षित नहीं है। मेरिट ही एकमात्र मापदंड है।" कोर्ट ने चतुर सिंह मामले को अलग बताया, क्योंकि वहां प्रारंभिक परीक्षा के अंक अंतिम मेरिट में नहीं जोड़े जाते थे, जबकि यहां लिखित परीक्षा का वेटेज 75% है।

कोर्ट ने इंदिरा साहनी और सौरभ यादव मामलों से प्रेरणा लेते हुए 'माइग्रेशन' शब्द को भी स्पष्ट किया। जस्टिस दत्ता ने कहा, "आरक्षित उम्मीदवार का ओपन कैटेगरी में समायोजन 'माइग्रेशन' नहीं, बल्कि मेरिट आधारित समानता है। यदि वह लिखित परीक्षा में ओपन कट-ऑफ से अधिक अंक लाता है, तो उसे ओपन कैटेगरी का उम्मीदवार माना जाए।" कोर्ट ने सावधानी बरतते हुए चेतावनी दी कि यदि इससे आरक्षित उम्मीदवार को अपनी श्रेणी में पसंदीदा पद से वंचित होना पड़े, तो उसे आरक्षित कोटा में ही जगह दी जाए, ताकि मेरिट दोनों श्रेणियों में संरक्षित रहे। फैसले में कहा गया, "आरक्षण समावेश का साधन है, न कि वंचना का।"

Summary

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए अपीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता उम्मीदवारों को टाइपराइटिंग टेस्ट का मौका दिया जाए, मेरिट लिस्ट पुन: तैयार की जाए, और यदि आवश्यक हो तो कम मेरिट वाले नियुक्तियों को समायोजित किया जाए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में पद पर मौजूद कर्मचारियों को जितना संभव हो उतना न हटाया जाए। अनुपालन के लिए दो माह का अतिरिक्त समय दिया गया है। यह फैसला न केवल राजस्थान की इस भर्ती को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे देश में आरक्षण और मेरिट के संतुलन पर बहस को नई दिशा देगा।

सुप्रीम कोर्ट  ने साफ किया कि आरक्षित वर्ग का मेधावी छात्र, बिना किसी रियायत के, सामान्य वर्ग के कटऑफ से ज्यादा अंक लाता है तो उसे खुले पद पर मेरिट से चुना जा सकता है।
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