जादूगर गहलोत का मास्टर स्ट्रोक: क्या दब जाएगा 110 वर्ष पुराना 'भील प्रदेश' आंदोलन?

गवरी मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
गवरी मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।

राज्य सरकार द्वारा हाल में 19 नए जिलों और 3 नए संभागीय मुख्यालयों के गठन की घोषणा की गई है। नए जिलों के सीमांकन के बाद क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में कुल 50 जिले और 10 संभागीय मुख्यालय हो जाएंगे।

राजस्थान। प्रदेश में विधान सभा चुनाव में कुछ महीने शेष रहते प्रशासकीय ढांचे में इस प्रकार के व्यापक बदलाव को जहां एक ओर कांग्रेस समर्थक दिसंबर में आसन्न चुनावों में सत्ता विरोधी लहर (एन्टी इंकबेंसी) को दबाने के लिए जादूगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा खेला गया ट्रम्प कार्ड या 'मास्टर स्ट्रोक' के रूप में देखते हैं, वही राजनीतिक विश्लेषक इसे भील जनजाति बाहुल दक्षिणी राजस्थान में कई दशकों से किसी चिंगारी की तरह सुलग रही 'भील प्रदेश' की मांग को बुझाने की कवायद के तौर पर भी देख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो प्रशासकीय पुनर्गठन के बाद उदयपुर और बांसवाड़ा दो ऐसे जनजाति प्रधान सम्भागीय मुख्यालय होंगे जहां सभी विभागों के उच्चाधिकारियों की उपलब्धता और उपस्थिति होने से सरकारी योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन और निरीक्षण हो सकेगा। अनदेखी और अनसुनी की सभी शिकायतें भी समाप्त हो जाएंगी। इसके अलावा बीटीपी के आंतरिक कलह के मौजूदा दौर में विशेष रूप से दक्षिणी राजस्थान में नए जिले और संभागीय मुख्यालय की घोषणा को भील प्रदेश की मांग को दबाने के प्रकाश में देखा जा रहा है।

बीटीपी पर नकैल की कोशिश?

मुख्यमंत्री के इस कदम को, मेवाड़ वागड़ बेल्ट में तेजी से प्रभाव जमा रही भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) को सत्ता द्वारा नियंत्रित करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है क्यूंकि बीटीपी के एजेंडे में ना केवल भील प्रदेश सबसे प्रमुख है बल्कि राजस्थान की राजनीतिक बिसात में बीटीपी तीसरे मोर्चे के रूप में बहुत तेजी से अपनी जड़ें फैलाने लगी है। 2018 के चुनाव में बीटीपी को डूंगरपुर ज़िले से दो सीटें राजकुमार रोत (चौरासी) और रामप्रसाद डिंडोर (सागवाड़ा) के रूप में बड़ी सफलता प्राप्त हुई साथ ही 2020 के डूंगरपुर म्युनिसिपल चुनाव में बीटीपी ने बाजी दोनों प्रमुख पार्टियों को मात देते हुए 27 में से 13 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत पाया। डूंगरपुर के निकाय चुनावों में संभवतः पूरे देश में यह पहला मौका था जब धुर विरोधी कांग्रेस और भाजपा गठबंधन कर बीटीपी के विरुद्ध लामबंद हुए। मकसद और संदेश साफ था कि जनजाति बाहुल दक्षिणी राजस्थान में किसी जनजाति पार्टी को आगे बढ़ने नहीं देना है ताकि बरसों से यहां चल रहे पंजे और कमल का वर्चस्व ही बना रहे। इस घटना के बाद बीटीपी और कांग्रेस में अलगाव हो गया और बीटीपी ने राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन नहीं देने के लिए विह्प भी जारी किया।

सन 1993 से उदयपुर के सराड़ा और 2008 में सलूम्बर सीटों से कुल 4 बार विधायक और 2009 में लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए कद्दावर नेता, युवा एवं खेल मंत्री रह चुके रघुवीर सिंह मीणा कहते हैं, "कांग्रेस सरकार ने हर वर्ष जनता के लिए एक से बढ़कर एक हितकारी योजनाएं दी हैं और अब ये जिलों का पुर्नगठन तो गुड़ गवर्नेंस की दिशा में सार्थक कदम है। हमारे जनजाति भाई बहनों को इतना बड़ा तोहफा मिला है। सलूंबर को जिला बनाने से सघन ट्राइबल एरिया में स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तरों के साथ उच्च अधिकारियों की उपलब्धता हो जाएगी और क्षेत्र के विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।" इधर, सलूम्बर से भाजपा के विधायक अमृतलाल मीणा भी जिलों के पुनर्गठन में सलूम्बर के चयन से उल्लसित हैं। द मूकनायक से बात करते हुए मीणा ने बताया कि ये उनके बरसों के प्रयास का नतीजा है क्योंकि वे पिछले 40 वर्षों से ये मांग रखते आये हैं। अपने अटके कार्यों के लिए सलूम्बर से उदयपुर के बीच 70 किलोमीटर की दूरी तय करके गरीब जनजाति परिवारों को अधिकारियों के समक्ष गुहार लगानी पड़ती थी जिससे अब निजात मिल जाएगी और समस्याओं का जल्द निदान होगा। इसी तरह बांसवाड़ा को संभागीय मुख्यालय बना दिये जाने से डूंगरपुर और प्रतापगढ़ की जनजाति आबादी को उनकी समस्याओं के शीघ्र निस्तारण की सुविधा मिलना माना जा रहा है। उदयपुर के सुखाड़िया विवि से राजनीतिक विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ गिरधारी सिंह कुम्पावत भी administrative efficiency & better implementation of policies की दिशा में नए जिलों के गठन को कारगर प्रयास मानते हैं। "सरकार की योजना जब बेहतर रूप से क्रियान्वित होंगी, लोग अधिकारियों तक सहजता से पहुंच सकेंगे और प्रभावी मॉनिटरिंग होगी तो जनता की समस्याओं का स्वत: समाधान भी होगा। इससे क्षेत्र विशेष में व्याप्त असंतोष का अवसान होता है, ये राजनीति का एक बेसिक प्रिंसिपल है" डॉ. कुम्पावत ने कहा।

स्वयं सहायता समूह आदिवासी बस्तियों में महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में मदद कर रहे हैं।
स्वयं सहायता समूह आदिवासी बस्तियों में महिलाओं को आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में मदद कर रहे हैं।

प्रशासकीय पुर्नगठन नहीं दबा सकता भील प्रदेश आंदोलन: घोघरा

बीटीपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. वेलाराम घोघरा कहते हैं कितने भी प्रशासकीय सुधार या ढांचागत बदलाव हो, ये ना तो भील प्रदेश की मांग को दबा पाएगा, ना ही बीटीपी के बढ़ते कदमों को रोक सकेगा। द मूकनायक से हुई लंबी चर्चा में घोघरा ने बताया कि बीटीपी राजनीतिक पार्टी के गठन से भी पहले भील समुदाय अपने हक और अधिकार की मांग रखता आया है। कम शिक्षा दर और संसाधनों के अभाव में कभी भील लोग सशक्त रूप से अपनी मांगे सरकारों के समक्ष रख नही सके, ना ही कांग्रेस और भाजपा पार्टियों के जन प्रतिनिधियों ने कभी जनजाति समुदाय के सशक्तिकरण के कोई सार्थक प्रयास किये। "भील प्रदेश एक संवैधानिक मांग है, हम भील जनजाति इलाकों की अपनी संस्कृति, भाषा और भौगोलिकता के आधार पर अलग राज्य की मांग कर रहे हैं जो गाँधी जी के स्वराज और विनोबा भावे के 'गामड़िया गामड़िया' नारे के अनुकूल है लेकिन भाजपा और कांग्रेस सरकारें हमें अलगाववादी और नक्सलवादी कहकर दुष्प्रचारित कर रहे हैं जो एकदम गलत है।"

गवरी मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
राजस्थान: गांव के सरकारी स्कूल को प्राइवेट स्कूल की तरह चमकाने के लिए आदिवासी किसानों ने किया ये काम..

घोघरा कहते हैं कि स्वयं कांग्रेस और भाजपा के जनप्रतिनिधियों को भी पेसा कानून की जानकारी नही है, जिसमें ग्रामसभाओं को बहुत शक्तियां प्रदत्त है। अगर पेसा एक्ट लागू हो जाये तो कलेक्टर महज एक असिस्टेंट बनकर रह जाएगा और किसी भी काम के लिए ग्राम सभा की मंजूरी आवश्यक होगी। अफसोस की बात है कि कानून बनने के 25 साल बाद भी ये लागू नही हो सका है क्योंकि इसमें ना तो राजनीतिक इच्छाशक्ति है ना ही ब्यूरोक्रेसी इसे लागू करवाने की पक्षधर है। आदिवासी भील समुदाय जो वर्षों से वंचित और शोषित हुआ रहा है, अब ये खेल समझ चुका है और इसी वजह से भील प्रदेश की मांग और अधिक मुखरित होने लगी है।

बीटीपी विधायकों द्वारा बीते कुछ समय से भील मुक्ति प्रदेश मोर्चा के कार्यक्रमों में शिरकत पार्टी के मध्य आंतरिक विरोध के बाद पार्टी के कमजोर होने के सवाल पर घोघरा कहते हैं कि पार्टी कमजोर होना तो दूर, अब दक्षिणी राजस्थान से बाहर निकल कर पश्चिमी राजस्थान तक अपनी पैठ बना चुकी है । घोघरा कहते हैं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में बीटीपी का 10 से 15 सीटें लाने का टारगेट है और इसके लिए तीन अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सामाजिक लोकतांत्रिक गठबंधन भी निर्मित किया है । उन्होंने आगे कहा कि जहां तक विधायकों राजकुमार रोत और रामप्रसाद डिंडोर की बात है तो घरों में भी सदस्यों के बीच में मतभेद होना आम है। चुनाव के समय सभी के साथ साझे प्रयास से जीत हासिल करने का लक्ष्य रहेगा। इस मामले में विधायक रामप्रसाद डिंडोर ने द मूकनायक को बताया कि उनके लिए पार्टी हितों से भी ऊपर आदिवासी हित है। "हम अगले चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं और हमारा उद्देश्य भील प्रदेश की मांग को केंद्र तक मुखरित करना रहेगा। नए जिले या संभागीय मुख्यालय की स्थापना से आदिवासियों को कोई खास लाभ नहीं होने वाला है और इस बेल्ट के जनजाति वर्ग का कल्याण और विकास तभी पूर्ण रूप से होगा जब हम पृथक राज्य स्थापित करवा सकेंगे" विधायक ने जोर देते हुए कहा।

1913 में गोविंद गुरु ने उठाई थी भील प्रदेश की मांग

आदिवासियों के नेता गोविंद गुरु ने 1913 में बांसवाड़ा के मानगढ़ से भील प्रदेश की मांग के जरिये अंग्रेजों से स्वराज का अधिकार मांगा था। मानगढ़ में आजादी को लेकर जुटे रहे आदिवासियों का अंग्रेजों द्वारा किया गया नरसंहार जालियां वाला बाग प्रकरण की ही तरह मार्मिक है। आदिवासी भील समुदाय जिनकी वर्तमान संख्या सवा करोड़ से अधिक बताई जाती है, राजस्थान गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में फैला हुआ है। इन्हीं जनजाति बाहुल जिलों को चार राज्यों से निकाल कर एक पृथक भील प्रदेश की मांग की जा रही है। भील प्रदेश में चार राज्यों से लगभग 39 से 43 जिलों तक का समावेश किया जाना है।

गवरी मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
कोरबंग आदिवासी विलुप्ति के कगार पर!

दक्षिण राजस्थान का उदयपुर संभाग जिसमें उदयपुर , राजसमंद, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, डूंगरपुर भील बाहुल्य जिले हैं, को मारवाड़ इलाके से पाली, जालोर, सिरोही, बाड़मेर के आंशिक भाग सहित गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल जिलों के साथ समाहित करते हुए भील प्रदेश के गठन की मांग बरसों से की जा रही है। भील प्रदेश की मांग को लेकर 2013 में झारखंड में जाबूखंड पार्टी का गठन हुआ था वहीं 2017 में गुजरात मे भारतीय ट्राइबल पार्टी (बिटीपी) बनाई गई थी।

गुजरात के बनासकांठा-सावरकांठा-अरावली-महिदसागर-वडोदरा-भरूच-सूरत और पंचमहल का हिस्सा, दाहोद, छोटा उदयपुर, नर्मदा, तापी, नवसारी, वलसाड़, दमन दीव, दादर नागर हवेली मांग में शामिल हैं। महाराष्ट्र के जलगांव-नासिक और ठाणे का हिस्सा, नंदूरबाग, धुलिया और पालघर. वहीं मध्य प्रदेश के नीमच-मंदसौर-रतलाम और खंडवा का हिस्सा, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, धार, खरगोन और बुरहानपुर है.

हर भील पुरुष महिला की आंखों में भील प्रदेश का सपना : डॉ जितेंद्र मीणा

डीयू के इतिहास विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र मीणा बताते हैं कि भील समुदाय भारत के सबसे प्राचीन जनजाति समुदायों में एक है जिनकी तादाद भी सबसे ज्यादा है। "हमारे पूर्वजों ने हमेशा आक्रांताओं से संघर्ष किया है चाहे मुगल हो या अंग्रेज। लेकिन अब देश की आजादी के 75 सालों से हम अपने ही सरकारों से अपने अधिकारों की मांग करते आये हैं। आदिवासियों का घर जंगल है, ये पर्वत हमारे घर हैं जिनको सरकारें अनाधिकृत रूप से काट रही हैं और हमारी जमीनों से खनन किया जा रहा है।" जितेंद्र कहते हैं कि दक्षिणी राजस्थान जो प्राकृतिक संपदा का विपुल भंडार है, वही से, अपने ही घरों से आदिवासी बेदखल किये गए और सारा लाभ सरकार, मल्टीनेशनल कपनियां, बिल्डर और कॉन्ट्रैक्टर ले रहे हैं। जगंलों को कभी वनवासियों से नुकसान नही हुआ है क्योंकि हम उतना ही प्रकृति से लेते हैं जितनी हमारी आवश्यकता है। दोहन हमेशा गैर आदिवासी समूहों ने किया है। वे आगे कहते हैं कि भाषायी, संस्कृति और भौगोलिक आधार पर राज्य की स्थापना एक संवैधानिक मांग है। तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों का गठन भी इन्ही आधारों पर हुआ लेकिन जिस तरह मुसलमानों को उनकी जायज मांग पर आतंकी करार दिया जाता है, आंदोलन करने वाले किसानों को खालिस्तानी बुलाया जाता है उसी तरह आदिवासी आन्दोलन को नक्सलवाद का झूठा जामा सरकारें पहनाती हैं।

मीणा बताते हैं कि वर्ष 2020-21 में जब देश कोरोना की विकट परिस्थितियों में ऑक्सीजन सिलेण्डर्स के लिए जूझ रहा था तब गुजरात में सरकार केवडिया क्षेत्र जो संवैधानिक प्रावधानों के तहत अधिसूचित एरिया है, वहां से सैकड़ों आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करके सरदार पटेल की' स्टेच्यू ऑफ यूनिटी' के पार्किंग लोट के लिए ज़मीन अधिग्रहित किया गया। मीणा बताते हैं कि 1895 में अंग्रेजों ने भील कंट्री के रूप में मध्य भारत के भाग को रेखांकित करते हुए नक्शा जारी किया था जो यह दिखाता है कि भील समुदाय की उपस्थिति कितनी सशक्त थी। लेकिन आजादी के बाद केंद्र सरकार ने एक सुनियोजित षड्यंत्र से भील समुदाय को चार राज्यों में बांट दिया और उनकी शक्तियों को बिखेर दिया। ये एक लंबी लड़ाई है जिसे शिक्षा और जागरूकता के जरिये ही जीती जा सकती है। गरीबी,संसाधनों और एकजुटता की कमी के कारण यद्यपि इस आंदोलन की गति मंद है लेकिन यह तय है कि हर भील महिला पुरूष में अपने स्वतंत्र आस्तित्व और स्वशासन को लेकर दृढ़ इच्छाशक्ति है। ये आंदोलन आने वाले समय में शिक्षा और जागरूकता के साथ व्यापक रूप से फैलेगा और संविधान के प्रावधानों के अनुरूप एक भील प्रदेश के स्वप्न को साकार करेगा। भील प्रदेश की मांग प्रमुखता से उठाने वाले अग्रिम संगठनों में बीटीपी, भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा, भील प्रदेश युवा एवं विद्यार्थी मुक्ति मोर्चा आदि हैं।

गवरी मेवाड़ में भील समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक नृत्य उत्सव है।
ओडिशा के नियमगिरि आदिवासी आंदोलन से क्या प्रेरणा ले सकते हैं?

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