तमिलनाडु में दलित म्यूजिक स्टूडेंट पर जातिगत जुल्म: "सरकारी नौकरी चाहिए तो संगीत भूल जाओ, वो करो जो तुम्हारी जाति..."

छात्रा की शिकायत पर थिरुप्पारंकुंड्रम पुलिस स्टेशन में 2 अगस्त को अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर नंबर 407/2025 दर्ज की गई जिसे महज डेढ़ महीने बाद 30 सितंबर को "तथ्यात्मक भूल" का हवाला देकर बंद कर दिया गया।
प्राचार्य की शिकायत पर पीड़िता को गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया। छात्रा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी पक्ष के प्रभाव में आकर उसकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उल्टा उसके ही खिलाफ कारवाई में तेजी दिखाई।
प्राचार्य की शिकायत पर पीड़िता को गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया। छात्रा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी पक्ष के प्रभाव में आकर उसकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उल्टा उसके ही खिलाफ कारवाई में तेजी दिखाई।एआई निर्मित सांकेतिक चित्र
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मदुरै- तमिलनाडु में जातिगत भेदभाव की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि शिक्षा के मंदिरों तक इसका काला साया मंडरा रहा है। इसका एक सनसनीखेज मामला मदुरै के पासुमलाई स्थित तमिलनाडु सरकारी संगीत महाविद्यालय से सामने आया है, जहां एक दलित महिला छात्रा को न केवल कठोर जातिसूचक अपमान सहने पड़े, बल्कि संस्थागत साजिशों के जरिए उसकी पढ़ाई और नौकरी दोनों को ललकारा गया। छात्रा द्वारा जातिगत भेदभाव को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई लेकिन पुलिस ने एकतरफा कारवाई करते हुए मामले को बंद कर दिया और दूसरी तरफ कॉलेज प्रशासन की शिकायत के आधार पर महिला के विरुद्ध चालान कर दिया।

छात्रा ने अब राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) से न्याय की गुहार लगाई है, पीड़िता ने पुलिस की पक्षपाती जांच को चुनौती देते हुए नये सिरे से तहकीकात की मांग की है।

पीड़िता भरतनाट्यम की दीक्षा प्राप्त छात्रा होने के साथ कॉलेज में ही अंशकालिक शाम की कक्षाओं की शिक्षिका के रूप में कार्यरत थी। पति और मां के साथ रहने वाली इस महिला ने बताया कि वह बैचलर ऑफ आर्ट्स (भरतनाट्यम) की डिग्री हासिल करने के साथ-साथ अस्थायी शिक्षिका की भूमिका निभा रही थी, लेकिन जातिगत पूर्वाग्रहों ने उनकी जिंदगी को नर्क बना दिया। छात्रा ने अपनी याचिका में प्राचार्य संपूरनम और एक भरतनाट्यम शिक्षिका चित्रा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया है कि इन दोनों अधिकारियों ने लंबे समय से चली आ रही जातिगत हिंसा, अपमानजनक व्यवहार और संस्थागत उत्पीड़न की श्रृंखला का ताना-बाना बुन रखा था।

उत्पीड़न की शुरुआत छोटे-छोटे रूप में हुई जो धीरे-धीरे घातक रूप धारण करने लगी। प्राचार्य और शिक्षिका ने उन्हें कॉमन शौचालयों का उपयोग करने से रोका, परीक्षाओं के दौरान अलग-थलग कमरे में बिठाया और अन्य शिक्षकों के साथ खड़े होने या आईडी कार्ड पहनने जैसी बुनियादी आजादी तक छीन ली। चित्रा ने कथित तौर पर खुलेआम जातिसूचक टिप्पणी की, "यदि सरकारी नौकरी चाहिए तो अपनी जाति का पारंपरिक काम करो- सफाई।" यह टिप्पणी न केवल अपमानजनक थी, बल्कि पूरे समुदाय को नीचा दिखाने वाली थी।

उत्पीड़न तब चरम पर पहुंचा जब पीड़िता को प्रतिष्ठित कलाईचुदर मणि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्राचार्य संपूरनम ने कथित रूप से सवाल उठाया, "एक दलित महिला को इतनी ऊंचाई कैसे मिल गई?" इस पुरस्कार के बाद दोनों आरोपी स्टाफ सदस्यों ने साजिश रच डाली। उन्होंने परीक्षा शुल्क वसूल लिया, लेकिन द्वितीय वर्ष की परीक्षा देने से रोक दिया। साथ ही, उनकी अंशकालिक शिक्षण नौकरी को बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक समाप्त कर दिया गया जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और डगमगा गई और वह मानसिक रूप से टूट गई।

जनवरी 2025 में राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग की जांच के बाद पीड़िता को तृतीय वर्ष की पढ़ाई के लिए बहाल तो किया गया, लेकिन आरोपी पक्ष ने पुलिस के दबाव का सहारा लेते हुए उन्हें धमकियां दीं और जबरन माफी मांगने को मजबूर किया। 23 जुलाई उसके जीवन का सबसे अपमानजनक दिन रहा जब प्राचार्य ने उन्हें कक्षा के बाहर चार घंटे से अधिक समय तक खड़ा रखा और अन्य छात्रों को उसका सामाजिक बहिष्कार करने के लिए उकसाया। इस घटना ने न केवल उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई, बल्कि कॉलेज के माहौल को भी विषाक्त बना दिया।

प्राचार्य की शिकायत पर पीड़िता को गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया। छात्रा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी पक्ष के प्रभाव में आकर उसकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उल्टा उसके ही खिलाफ कारवाई में तेजी दिखाई।
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छात्रा की शिकायत पर थिरुप्पारंकुंड्रम पुलिस स्टेशन में 2 अगस्त को अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत एफआईआर नंबर 407/2025 दर्ज की गई जिसे महज डेढ़ महीने बाद 30 सितंबर को "तथ्यात्मक भूल" का हवाला देकर बंद कर दिया गया। पीड़िता के मुताबिक, डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) ने आरोपी पक्ष के झूठे और एकतरफा बयानों पर भरोसा करते हुए पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया। इतना ही नहीं, मामले के बंद होने की सूचना उसे दी ही नहीं गई, जिससे उन्हें गहरा मानसिक आघात पहुंचा।

यही नहीं उसकी मूल शिकायत को बंद करने के तुरंत बाद प्राचार्य संपूरनम की शिकायत पर एक्शन लेते हुए पीड़िता को तत्काल गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी पक्ष के प्रभाव में आकर उसकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उल्टा उसके ही खिलाफ कारवाई में तेजी दिखाई।

एनसीएससी को भेजी याचिका में पीड़िता ने स्पष्ट अनुरोध किया है कि उसकी एफआईआर की जांच के लिए एक नया और निष्पक्ष डीएसपी नियुक्त किया जाए, जो अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप पूरी ईमानदारी से तहकीकात करे। उन्होंने आरोपी स्टाफ सदस्यों प्राचार्य संपूरनम और शिक्षिका चित्रा के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की है। इसके अलावा, अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी, बिना किसी बाधा के अध्ययन जारी रखने और अंशकालिक सरकारी नौकरी बहाल करने की अपील की है।

प्राचार्य की शिकायत पर पीड़िता को गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया। छात्रा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी पक्ष के प्रभाव में आकर उसकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उल्टा उसके ही खिलाफ कारवाई में तेजी दिखाई।
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प्राचार्य की शिकायत पर पीड़िता को गिरफ्तार कर रिमांड पर लिया गया और बाद में जमानत पर रिहा किया गया। छात्रा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने आरोपी पक्ष के प्रभाव में आकर उसकी शिकायत पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, उल्टा उसके ही खिलाफ कारवाई में तेजी दिखाई।
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