
बोकारो- झारखंड के बोकारो जिले में आदिवासी सेंगेल अभियान के बैनर तले हासा-भाषा (मातृभूमि-मातृभाषा) विजय दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाया गया। जरीडीह प्रखंड के खुटरी फुटबॉल मैदान, गितीलटांड़ में आयोजित इस कार्यक्रम में आदिवासी समुदाय के सदस्यों ने महान वीर सिदो मुर्मू को श्रद्धांजलि दी। अध्यक्षता बोकारो जिला अध्यक्ष एवं बोकारो जोनल हेड सुखदेव मुर्मू ने की, जबकि संचालन झारखंड प्रदेश संयोजक जयराम सोरेन ने किया।
सुखदेव मुर्मू ने कहा, " 22 दिसंबर 1855 और 22 दिसंबर 2003 हासा (संताल परगना)-भाषा(संताली भाषा) जितकार माहा अर्थात हासा -भाषा विजय दिवस सर्वत्र मनाने का संकल्प लेता है क्योंकि महान वीर सिदो मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष एवं बलिदान का प्रतिफल 22 दिसंबर 1855 को संताल परगना और संताल परगना कानून स्थापित हुआ था।उसी तर्ज पर पूर्व सांसद और संताली भाषा मोर्चा के अध्यक्ष सालखन मुर्मू के नेतृत्व में लंबे संघर्ष और आंदोलन से 22 दिसंबर 2003 को संताली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हुआ है।"
मुख्य अतिथि सेंगेल के केंद्रीय संयोजक हराधन मार्डी ने जोरदार आवाज में कहा कि झारखंड में आदिवासी समृद्धि के लिए निम्न मांगें तत्काल लागू होनी चाहिए। उन्होंने सात प्रमुख बिंदु गिनाए:
संताली भाषा को प्रथम राजभाषा: राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संताली को अनुच्छेद -345 के तहत झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा, साथ ही मुंडा, कुड़ुख और खड़िया जैसी अन्य आदिवासी भाषाओं का विकास।
राष्ट्रीय अवकाश: 22 दिसंबर को हासा-भाषा विजय दिवस के रूप में राष्ट्रीय अवकाश घोषित करना।
मारंग बुरु की मुक्ति: जैन समुदाय के कब्जे से मारंग बुरु को मुक्त कराना।
कानूनों का सख्त क्रियान्वयन: CNT/SPT कानूनों को पूर्ण शक्ति से लागू करना।
माझी परगना में सुधार: आदिवासी माझी परगना व्यवस्था में लोकतांत्रिक और संवैधानिक बदलाव।
महिलाओं का सशक्तिकरण: आदिवासी महिलाओं को आर्थिक-सामाजिक रूप से मजबूत बनाना।
ट्रस्टों का गठन: सिदो मुर्मू और बिरसा मुंडा के वंशजों के लिए दो ट्रस्ट, प्रत्येक को सरकार से 100 करोड़ रुपये का अनुदान।
22 दिसंबर 1855 को महान वीर सिदो मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष एवं बलिदान का प्रतिफल संताल परगना और संताल परगना कानून स्थापित हुआ था।
मुख्य वक्ता एवं प्रदेश संयोजक करमचंद हांसदा ने कहा, "संताली भाषा को झारखंड में प्रथम राजभाषा बनाकर, आजादी देना है। हमें भाषाई गुलामी से भी आजादी चाहिए , 78 वर्षों में हमें दूसरी भाषाओं का गुलाम बनाकर रखा गया है। आजादी भाषाओं में एकमात्र बड़ी भाषा -संताली भाषा जो पूर्व सांसद सालखन के नेतृत्व में संताली भाषा मोर्चा( 92 वें में स्थापित) के तत्वावधान में में लंबे संघर्ष और कठिन के बाद आठवीं अनुसूची में 22.12.2003 शामिल होने के बावजूद अबतक तक बाकि 21 राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त भाषाओं की तरह दो दशकों के बावजूद पठन-पाठन, सरकारी कार्य , रोजगार और व्यापक संवाद का हिस्सा नहीं बन सका है।"
विशिष्ट अतिथियों में समाजसेवी वकील नरेश हांसदा, झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष विदेशी महतो, फूलचंद किस्कू और मोतीलाल सोरेन ने संबोधित किया। कार्यक्रम में भीम मुर्मू, गोपीनाथ मुर्मू, करण मुर्मू, कालीचरण किस्कू, संजय किस्कू, बासमती टुडू, सोनाराम मुर्मू, सुनिता मुर्मू, शोभा सोरेन, सावित्री मुर्मू, शांति सोरेन, रामलाल मुर्मू, संजय टुडू समेत सैकड़ों लोग शामिल हुए।
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