मुंबई- डॉ. भीमराव अंबेडकर की मृत्यु के 69 साल बाद भी उनकी प्रभावशाली विरासत लाखों लोगों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती है। भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के संघर्षरत योद्धा डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित है।
6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस पर जब एयर इंडिया की फ्लाइट AI 616 में बाबा साहबआंबेडकर को श्रद्धांजलि दी गई, जिसने एक यात्री को भावुक कर दिया।
स्वप्निल रामटेके, जो नागपुर के रहने वाले हैं ( दीक्षाभूमि, जहां बाबासाहेब ने 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया था), के लिए यह क्षण बहुत ही खास था। वह ऑफिस के काम से चंडीगढ़ गये हुए थे और देर शाम को मुंबई जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट में सवार थे और महापरिनिर्वाण दिवस पर दीक्षाभूमि की यादें उन्हें बहुत खल रही थीं। अचानक फ्लाइट में एक घोषणा सुनाई दी:
"एक सूचना: भारतीय संविधान के जनक और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहब को उनकी 69वीं डेथ एनिवर्सरी पर हम विनम्र अभिवादन करते हैं ।"
"The nation pays tribute to the Father of the Indian Constitution and the first law minister of Independent India, Dr. B. R. Ambedkar, on his 69th death anniversary today on 6th December."
यह घोषणा स्वप्निल के लिए एक भावुक पल था । “मैं फ्लाइट में बैठकर दीक्षाभूमि के माहौल को मिस कर रहा था, और अचानक ये घोषणा सुनकर मैं भावुक हो गया। यह अचानक से हुआ जब फ्लाइट लैंड करने वाली थी. यह पल इतना दिल छूने वाला था कि मैं अपनी भावनाओं को रोक नहीं सका,” स्वप्निल ने The Mooknayak से बातचीत में कहा।
फ्लाइट के पीछे की सीट पर बैठे स्वप्निल ने घोषणा का वीडियो रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर शेयर किया। उनका पोस्ट देखते ही देखते अंबेडकराइट्स द्वारा सराहा गया, और एयर इंडिया के इस कदम को लेकर कई लोगों ने अपनी सराहना व्यक्त की।
“यह सुनकर अच्छा लगा कि बाबासाहेब का नाम आसमानों में गूंज रहा था, लेकिन मुझे थोड़ा निराशा भी हुई कि फ्लाइट में जो कई प्रमुख लोग थे—वकील, अभिनेता, और नेता—उनमें से किसी ने भी इस घोषणा का कोई सम्मान नहीं दिखाया। काश, वे थोड़ा सा सम्मान व्यक्त करते,” स्वप्निल ने कहा।
मुम्बई निवासी 39 वर्षीय कॉर्पोरेट प्रोफेशनल स्वप्निल, जो मेडिकल और साइंटिफिक डिवाइसेस सेक्टर में काम करते हैं, अपनी परिवार की बाबासाहेब की विरासत पर बहुत गर्व महसूस करते हैं। उनके दादा-दादी 14 अक्टूबर 1956 को बाबासाहेब के साथ बौद्ध धर्म अपनाने वाले 5 लाख लोगों में से थे।
“मेरे नाना उस समय 21 साल के थे, और मेरे पिता सिर्फ पांच साल के थे। उस ऐतिहासिक दिन के बाद से हमारे परिवार ने बौद्धिक सिद्धांतों को अपनाया और हम बाबासाहेब के सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीते हैं" ।
स्वप्निल बताते हैं कि वे और उनकी टीम के सदस्य बाबासाहेब की विरासत को जीवित रखने के लिए कई प्रयासकर रहे हैं, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में। 2012 में उन्होंने अंबेडकर इंटरनेशनल मिशन द्वारा चलाए जा रहे करियर गाइडेंस प्रोग्राम से जुड़कर समाज के हाशिए पर रहने वाले समुदायों के छात्रों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “हमने फेसबुक ग्रुप ‘बुद्धिस्ट्स’ शुरू किया था, जहां समान विचारधारा वाले पेशेवर एक साथ आते थे ताकि हम सीमित संसाधनों के बावजूद छात्रों को प्रेरित कर सकें " ।
उनकी टीम की पहल से महत्वपूर्ण अंबेडकराइट स्थलों जैसे चैत्यभूमि, दीक्षाभूमि और भीमा कोरेगांव पर विशेष अवसरों पर बाबा साहब से जुडी किताबों के निशुल्क वितरण का काम किया जाता है। उन्होंने अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के साथ मिलकर हजारों प्रतियां मुक्ति कौन पथे (क्या है मुक्ति का रास्ता) वितरित कीं।
इस पहल में एक आधुनिक टच भी है: हर बुकलेट में एक QR कोड होता था, जो BAWS (बाबासाहेब आंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज़) के ऑनलाइन रिपॉजिटरी से जुड़ता था, जिससे लोग बाबासाहेब के कामों को आसानी से पढ़ सकें। जो लोग भाषा नहीं समझ सकते, उनके लिए यह प्लेटफार्म ऑडियो संस्करण भी प्रदान करता है, ताकि बाबासाहेब का संदेश सभी तक पहुंचे।
स्वप्निल एक खास पल को याद करते हैं, जब एक आदमी ने उन्हें कॉल किया और बताया कि उनकी छोटी बेटी ने जो किताब पढ़ी, उसके बाद वह रात भर सो नहीं पाई। “उसने मुझे फोन करने को कहा और बताया कि वह बाबासाहेब के शब्दों से इतनी प्रभावित हुई कि वह सारी रात सो नहीं पाई। यह अनुभव सच में बहुत खास था,” स्वप्निल ने कहा।
स्वप्निल के लिए एयर इंडिया की श्रद्धांजलि सिर्फ एक घोषणा नहीं थी; यह बाबासाहेब के सिद्धांतों की निरंतर प्रासंगिकता का प्रतीक थी। वे कहते हैं, “बाबासाहेब ने हमें समानता, न्याय और शिक्षा के लिए संघर्ष करना सिखाया। ऐसे पल हमें यह दिखाते हैं कि उनका दृष्टिकोण आज भी लोगों और संस्थाओं को प्रेरित करता है"।
महापरिनिर्वाण दिवस पर एयर इंडिया की दिल को छू लेने वाली उद्घोषणा यह साबित करती है कि डॉ. आंबेडकर की विरासत सिर्फ स्थलों और उत्सवों में नहीं, बल्कि उन दिलों और दिमागों में जीवित रहती है, जो उनके दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हैं।
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