यूपी: 79 साल की महिला ने पीएचडी में लिया दाखिला, IIT कानपुर में करेंगी शोधकार्य

तीन साल केजीएमयू में कुलपति रह चुकी हैं। 65 साल पुराने संस्थान में 79 साल की डॉ. सरोज पीएचडी छात्रा के रूप में शामिल होंगी।
पद्मश्री डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल
पद्मश्री डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल

कानपुर। यूपी के कानपुर शहर स्थित आईआईटी में पहली बार 79 साल की छात्रा ने दाखिला लिया है। यह महिला और कोई नहीं बल्कि पद्मश्री डॉ. सरोज चूड़ामणि गोपाल हैं। डाक्टर सरोज स्पाइनल कार्ड से जुड़े अपने 12 साल पुराने शोध को पूरा करेंगी। वहीं आईआईटी ने भी अपने नियमों में बदलाव कर उन्हें प्रवेश दिया है। वह तीन साल केजीएमयू में कुलपति रह चुकी हैं। 65 साल पुराने संस्थान में 79 साल की डॉ. सरोज पीएचडी छात्रा के रूप में शामिल होंगी।

डॉ. सरोज चूड़ामणि का मथुरा के एक गांव में जन्म 1944 में हुआ था। उन्होंने द मूकनायक को बताया कि उनके पिता प्लाटून कमांडर थे, जन्म के समय ताऊ ने उनके पिता को पत्र लिख कर बताया था कि मुझे बताते हुए दुख हो रहा है कि तुम्हारे ऊपर शिला(बोझ रूपी पत्थर) आ गई। ताऊ ने बेटी पैदा होने पर दुख जताया था, जबकि पिता ने भगवान की पूजा की और कहा कि मैं अपनी बेटी का स्वागत करता हूं।

प्रोफेसर बताती हैं उस दौर में किसी लड़की का मेडिकल क्षेत्र में करियर बनाने का निर्णय, वह भी जनरल सर्जरी के क्षेत्र में मुश्किल था। लड़कों के बीच अकेली छात्रा थी। प्रो. गोपाल बताती हैं कि डॉक्टर बनने का जुनून इस कदर था कि एमबीबीएस में एडमिशन के लिए पांच दिनों तक खाना-पीना छोड़ दिया था। फिर आगरा के मेडिकल कॉलेज में जनरल सर्जरी में दाखिला तो ले लिया लेकिन परेशानियां कदम-कदम पर थीं। लड़की होकर जनरल सर्जरी लेने पर प्रोफेसरों ने भी असहयोग ही किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपने अधिकार को पाने के लिए उन्होंने कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाना पड़ा। इसके बाद जब वे सर्जन बन गई तब उनके पति डॉ. सिद्ध गोपाल ने भी उनका बहुत साथ निभाया।

डॉ. सरोज स्पाइनल कार्ड से जुड़े अपने 12 साल पुराने शोध को पूरा करेंगी। आईआईटी के प्रोफेसरों का दावा है कि पीएचडी करने वाली डॉ. सरोज देश की सबसे अधिक उम्र वाली महिला हैं।

आईआईटी के बायोसाइंस एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग में डॉ. अशोक कुमार के अंडर में पीएचडी करने के लिए आठ जनवरी को दाखिला लेने वाली डॉ. सरोज के लिए संस्थान को अपने नियमों में परिवर्तन भी करना पड़ा। विशेष बैठक कर उनके दाखिले के नियम को पास किया गया। डॉ. सरोज को अब आईआईटी कानपुर में विजिटिंग प्रोफेसर का भी जिम्मा मिल गया है। डाॅ. सरोज मार्च 2008 से लेकर 2011 तक केजीएमयू लखनऊ में कुलपति के पद पर रह चुकी हैं।

पढ़ाई के खिलाफ था परिवार

डॉ. सरोज की पढ़ाई की राह बचपन में आसान नहीं रही। डॉ. सरोज कहती हैं कि पूरा परिवार पढ़ाई के खिलाफ था और सभी मेरी जल्द शादी करना चाहते थे, लेकिन पढ़ाई को लेकर मेरी जिद ने किसी की नहीं मानी। भूखी-प्यासी, घर से भागने तक की धमकी दे डाली। पिता का मन बदला, फिर परिवार के खिलाफ जाकर उन्होंने मेडिकल में दाखिले दिलाने में साथ दिया। उसके बाद जो सफर शुरू हुआ, अनवरत जारी रहा। शादी के बाद पति डॉ. सिद्धगोपाल और उनके परिवार का भी सहयोग मिलता रहा।

केजीएमयू से शुरू किया था शोध

डाॅ. सरोज बताती हैं कि वह जब केजीएमयू में कार्यरत थीं, तब उन्होंने स्पाइनल कार्ड इंजरी से पीड़ित मरीजों को दोबारा चलाना चाहती थीं। पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर उस पर काम किया तो 15 से 20 प्रतिशत तक सफल परिणाम मिले। डाॅ. सरोज अपने इस शोध कार्य को आगे करना चाहती थीं, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें यह शोध छोड़ना पड़ा। फिर 12 सालों तक वह वाराणसी में ही रह गईं और शोध आगे नहीं बढ़ पाया। कुछ माह पहले वे एक कॉन्फ्रेंस में कानपुर आईं थीं। जब उन्होंने अपने इस शोध विषय पर बोलना शुरू किया, तो कार्यक्रम में मौजूद आईआईटी कानपुर के प्रो. अशोक प्रभावित हुए और फिर उन्होंने डॉ. सरोज से संवाद किया। वहीं, तय हुआ कि अब डाॅ. सरोज आईआईटी कानपुर से पीएचडी करेंगी।

डॉ. सरोज का दाखिला छात्रों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। कई छात्रों ने इनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने का मन बनाया है। हर कोई उनके जज्बे की सराहना कर रहा है।

डॉक्टर ने हासिल की सर्वोच्च उपाधि

डॉक्टर सरोज ने देश की सर्वोच्च उपाधि 'एमसीएच' हासिल की है। इसके साथ ही वह देश की पहली महिला बाल चिकित्सक भी हैं। किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की पहली महिला कुलपति, आगरा मेडिकल कॉलेज की पहली छात्रा हैं डॉक्टर सरोज जिन्होंने जनरल सर्जरी में पढ़ाई की है।

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