पटना- पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में भागलपुर के एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपनी पत्नी को दी जाने वाली मासिक गुजारा भत्ता राशि 7000 रुपये को चुनौती दी थी। जस्टिस जितेंद्र कुमार ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अपने तलाक के दावे को साबित नहीं कर पाया और पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार है।
याचिकाकर्ता मुर्शिद आलम ने भागलपुर की पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पत्नी नाजिया शहीन को हर महीने 7000 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता का दावा था कि उसकी शादी 2010 में हुई थी, लेकिन कुछ हफ्तों बाद ही उसकी पत्नी अपने मायके चली गई। उसने आरोप लगाया कि पत्नी ने 2013 में एक समझौते के तहत 1 लाख रुपये लेकर तलाक (मुबारात) स्वीकार कर लिया था, इसलिए अब वह उसे कोई भत्ता देने को बाध्य नहीं है।
वहीं पत्नी नाजिया शहीन की ओर से दलील दी गई कि शादी अभी भी बरकरार है और उसके हस्ताक्षर धोखे से लिए गए थे। उसने आरोप लगाया कि उसके पति सिंगापुर में नौकरी करते हैं और अच्छी कमाई करते हैं, लेकिन उसे 2011 से कोई भत्ता नहीं दे रहे हैं।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि दोनों के बीच तलाक हुआ है। अदालत ने कहा, "यह मामला विवादित तथ्यों वाला है। विवाह की स्थिति का निर्धारण पारिवारिक अदालत द्वारा ही किया जा सकता है, न कि धारा 125 की सारांश प्रक्रिया में।" अदालत ने यह भी नोट किया कि समझौते की कॉपी को सबूत के तौर पर प्रदर्श (Exhibit) के रूप में दर्ज भी नहीं किया गया था, जिस पर पत्नी जांच कर पाती।
अदालत ने स्पष्ट किया कि भले ही तलाक मान लिया जाए, तब भी एक मुस्लिम पति की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दानिश लतीफी मामले का हवाला देते हुए कहा, "एक मुस्लिम पति की अपनी तलाकशुदा पत्नी को भत्ता देने की जिम्मेदारी केवल इद्दत अवधि तक सीमित नहीं है, अगर उसने इद्दत उचित और न्यायसंगत प्रावधान नहीं किया है और तलाकशुदा पत्नी ने दूसरी शादी नहीं की है और वह खुद का गुजारा करने में असमर्थ है।"
अदालत ने कहा कि 1 लाख रुपये की राशि में देन मोहर (Mehr) भी शामिल थी, जो पत्नी का पहले से ही अधिकार था। यह राशि भविष्य के लिए उचित प्रावधान नहीं मानी जा सकती।
इन सभी बातों को देखते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पारिवारिक अदालत के आदेश में कोई कानूनी त्रुटि या विसंगति नहीं है। अदालत ने कहा कि पति ने यह साबित नहीं किया कि पत्नी के पास अपना गुजारा चलाने के लिए आय का कोई स्रोत है, जबकि वह स्वयं विदेश में काम कर रहा है। इस प्रकार पटना हाईकोर्ट ने मुर्शिद आलम की अपील खारिज करते हुए पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा।
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