नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रोहित वेमुला और पायल ताडवी केस पर सुनवाई करते हुए यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (UGC) को निर्देश दिया कि वह उच्च शैक्षणिक संस्थानों में उत्पीड़न और भेदभाव रोकने के लिए नए विनियमों (regulations) को अंतिम रूप देते समय जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों पर विचार करे।
जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमल्या बागची की पीठ ने UGC को 8 सप्ताह (लगभग 2 महीने) के भीतर इन विनियमों को अंतिम रूप देने का आदेश दिया। शीर्ष अदालत 2019 में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो रोहित वेमुला और पायल ताडवी की माताओं ने दायर की थी। ये दोनों छात्र हाशिए के समुदायों से थे और जातिगत उत्पीड़न का सामना करने के बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। अपीलकर्ताओं की सहायक वकील दिशा वाडेकर ने 'द मूकनायक' को बताया कि "अदालत ने आज अपने आदेश में हमारे सभी सुझाव दर्ज किए हैं और यूजीसी को आठ सप्ताह के भीतर उन्हें शामिल करते हुए 'इक्विटी इन हायर एजुकेशन रेगुलेशंस, 2025' को अधिसूचित करने का निर्देश दिया है। मामले की पैरवी इंदिरा जयसिंह ने की।"
याचिका में 2012 के UGC विनियमों के सख्ती से क्रियान्वयन और कैंपस में जातिगत भेदभाव से निपटने के लिए विशिष्ट उपायों की मांग की गई थी। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि UGC ने ऐसे मुद्दों को हल करने के लिए पहले ही मसौदा विनियम प्रकाशित कर दिए हैं और उसे 391 सुझाव प्राप्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि इन सुझावों की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था और UGC द्वारा उसकी रिपोर्ट पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने अदालत से अनुरोध किया कि वह इस मामले को अनिश्चित काल तक टालने नहीं दे। उन्होंने कहा, "यह याचिका 2019 में दायर की गई थी। तब से बहुत पानी बह चुका है। कई लोगों ने आत्महत्या कर ली है।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जहां पहले के फैसलों में सामान्य रूप से भेदभाव से निपटा गया था, वहीं यह मामला विशेष रूप से जाति के बारे में है।
जस्टिस कांत ने कहा कि जयसिंह के लिखित नोट में उन दस मुख्य मुद्दों का सारांश दिया गया है, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। इनमें भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर स्पष्ट प्रतिबंध, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और सामाजिक ऑडिट शामिल हैं।
जयसिंह ने अदालत से एक समयसीमा तय करने का अनुरोध किया, जिसे पीठ ने स्वीकार करते हुए प्रक्रिया को खुला नहीं छोड़ने का आश्वासन दिया। जयसिंह ने यह भी अनुरोध किया कि अदालत जातिगत भेदभाव के मुद्दे को न्यायिक निर्धारण के लिए खुला रखे।
अदालत ने निर्देश दिया कि जयसिंह का नोट UGC को विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के साथ विचार के लिए भेजा जाए। इस नोट में दस सुझावों पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें अनुशासनात्मक परिणामों के साथ सभी ज्ञात भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर प्रतिबंध, छात्रावासों या कक्षाओं में अलगाव पर रोक, शिकायत समितियों में 50% सदस्य SC/ST/OBC समुदायों से होना, शिकायतकर्ताओं के लिए सुरक्षा तंत्र, लापरवाही के लिए स्टाफ की व्यक्तिगत जिम्मेदारी, और अनुपालन न करने वाले संस्थानों के लिए अनुदान वापस लेना जैसे सख्त प्रवर्तन उपाय शामिल हैं।
अदालत ने कहा कि उसे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि UGC अंतिम निर्णय लेने से पहले इन सुझावों और अन्य हितधारकों के सुझावों पर विचार करेगा। उसने UGC को यह विनियम यथाशीघ्र अधिसूचित करने का निर्देश दिया और इसके लिए आठ सप्ताह की समयसीमा निर्धारित की।
यह जनहित याचिका 2019 में रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं राधिका वेमुला और अबेदा सलीम तड़वी द्वारा दाखिल की गई थी। रोहित वेमुला, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र, ने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी। पायल तड़वी, जो एक आदिवासी छात्रा थीं और मुंबई के टीएन टोपिवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज में पढ़ती थीं, ने 22 मई 2019 को आत्महत्या कर ली थी। दोनों मामलों में जातीय भेदभाव के आरोप लगे थे।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के विद्यार्थियों और शिक्षकों के खिलाफ जातीय भेदभाव व्यापक रूप से फैला हुआ है, और संस्थाएं इस पर ध्यान नहीं देतीं। मौजूदा नियमों का पालन नहीं होता और उनमें स्वतंत्र व निष्पक्ष शिकायत निवारण तंत्र की कमी है। साथ ही, ऐसे संस्थानों पर दंडात्मक कार्रवाई का भी कोई प्रावधान नहीं है जो जातीय भेदभाव को रोकने में विफल रहते हैं।
याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में समान अवसर प्रकोष्ठ (Equal Opportunity Cells) गठित किए जाएं, जिनमें अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय के सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता या एनजीओ प्रतिनिधि शामिल हों ताकि प्रक्रिया निष्पक्ष और प्रभावी हो।
एक पूर्व सुनवाई में केंद्र सरकार ने सूचित किया था कि यूजीसी ने संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए मसौदा विनियम तैयार कर लिए हैं। कोर्ट ने तब कहा था कि वह इस दिशा में “मजबूत और प्रभावी व्यवस्था” सुनिश्चित करना चाहता है ताकि “वास्तव में” जातीय भेदभाव जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।
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