पहली बीवी के रहते की दूसरी शादी, अब तीसरी की धमकी: मुस्लिम भिखारी से गुज़ारा भत्ता की याचिका पर केरल हाईकोर्ट ने इमाम-मौलवियों से क्या कहा

अदालत ने मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह की प्रथा पर विशेष जोर दिया और कहा कि यह प्रथा गलतफहमियों का शिकार है। जस्टिस कुनहिकृष्णन ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि बहुविवाह केवल अपवाद है, न कि नियम।
अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सैदलावी को काउंसलिंग दे, जिसमें धार्मिक नेता भी शामिल हों, ताकि वह आगे शादी न करे और कोई अन्य महिला बेसहारा न बने।
अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सैदलावी को काउंसलिंग दे, जिसमें धार्मिक नेता भी शामिल हों, ताकि वह आगे शादी न करे और कोई अन्य महिला बेसहारा न बने।
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कोच्चि- केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अनोखे मामले में फैसला सुनाते हुए एक महिला की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने अपने अंधे भिखारी पति से गुजारा भत्ता मांगा था। यह मामला मलप्पुरम फैमिली कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर रिविजन पिटीशन पर सुनवाई के दौरान आया जहां अदालत ने गुजारा भत्ता देने से इनकार किया, लेकिन मुस्लिम पारंपरिक कानून में बहुविवाह की गलतफहमियों, भिखारियों की शादी करने की स्थिति और राज्य की जिम्मेदारी पर गहन टिप्पणियां कीं।

जस्टिस पी.वी. कुनहिकृष्णन ने 15 सितंबर को दिए गए इस फैसले में मानवीय पहलुओं को उजागर करते हुए कहा कि अदालतें रोबोट नहीं हैं, बल्कि इंसानों द्वारा संचालित होती हैं, और वे समाज की वास्तविकताओं से आंखें नहीं मूंद सकतीं।

मामले की पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता महिला ने अपने पति सैदलावी के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता मांगा था। सैदलावी एक अंधा व्यक्ति है, जो भिक्षावृत्ति से अपना गुजारा चलाता है। महिला ने दावा किया कि उसका पति मस्जिद के सामने शुक्रवार को भीख मांगकर और दूसरों के बिजली तथा पानी के बिल भरकर कमाई करता है, और उसकी मासिक आय लगभग 25,000 रुपये है। इसलिए, वह 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता मांग रही थी। महिला ने यह भी आरोप लगाया कि सैदलावी उसे मारपीट करता है और तलाक देकर तीसरी शादी करने की धमकी देता है। दिलचस्प बात यह है कि महिला सैदलावी की दूसरी पत्नी है, जबकि उसकी पहली पत्नी अभी भी जीवित है और वैवाहिक संबंध बरकरार है। महिला ने यह भी बताया कि यह उसकी भी दूसरी शादी है।

एक व्यक्ति जिसके पास दूसरी या तीसरी पत्नी को पालने की क्षमता नहीं है, वह मुस्लिम पारंपरिक कानून के अनुसार भी दोबारा शादी नहीं कर सकता।
केरल हाईकोर्ट

फैमिली कोर्ट ने नवंबर 2020 में महिला की याचिका को खारिज कर दिया था, क्योंकि एक भिखारी से गुजारा भत्ता वसूलने का कोई आधार नहीं बनता। अदालत ने कहा कि जब पत्नी खुद स्वीकार कर रही है कि उसका पति भिखारी है, तो उसे भरण-पोषण देने का आदेश नहीं दिया जा सकता। इस फैसले के खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में रिविजन पिटीशन दायर की, जहां जस्टिस कुनहिकृष्णन ने मामले की सुनवाई की।

अदालत ने रिकॉर्ड्स की जांच की और पाया कि महिला ने शादी के समय यह जानते हुए विवाह किया था कि सैदलावी अंधा है, उसकी कोई स्थिर आय नहीं है, और वह भिक्षावृत्ति पर निर्भर है। अदालत ने महिला के मारपीट के आरोप को भी संदेहास्पद माना, क्योंकि एक अंधा व्यक्ति सामान्य रूप से एक देखने वाली महिला पर हमला कैसे कर सकता है, जब तक कि वह खुद समर्पण न करे। अदालत ने कहा, "एक अंधा व्यक्ति एक गैर-अंधी महिला पर हमला कर रहा है, यह विचारोत्तेजक है। क्रूरता विभिन्न रूपों में हो सकती है, जैसे मानसिक या शारीरिक, लेकिन याचिकाकर्ता का दावा कि प्रतिवादी उसे मारता है, स्वीकार्य नहीं लगता।"

अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सैदलावी को काउंसलिंग दे, जिसमें धार्मिक नेता भी शामिल हों, ताकि वह आगे शादी न करे और कोई अन्य महिला बेसहारा न बने।
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हालांकि, अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया, लेकिन मामले की अनोखी परिस्थितियों पर गौर करते हुए आगे की टिप्पणियां कीं। अदालत ने मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह की प्रथा पर विशेष जोर दिया और कहा कि यह प्रथा गलतफहमियों का शिकार है। जस्टिस कुनहिकृष्णन ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि बहुविवाह केवल अपवाद है, न कि नियम।

उन्होंने कुरान के अध्याय 4, आयत 3 का उद्धरण दिया: "और यदि तुम्हें डर है कि तुम अनाथ लड़कियों के साथ न्याय नहीं कर पाओगे, तो उन (अन्य) स्त्रियों से विवाह करो जो तुम्हें पसंद हों, दो या तीन या चार। लेकिन यदि तुम्हें डर है कि तुम न्याय नहीं कर पाओगे, तो केवल एक से विवाह करो या उनसे जो तुम्हारे दाहिने हाथ के पास हैं। यह अधिक उपयुक्त है ताकि तुम अन्याय की ओर न झुको।"

साथ ही, आयत 129 का जिक्र किया: "और तुम कभी भी अपनी पत्नियों के बीच (भावनाओं में) समानता न कर सकोगे, भले ही तुम इसके लिए कितना भी प्रयास कर लो। इसलिए किसी एक की ओर पूरी तरह झुका हुआ न हो जाना और उसे (दूसरी को) लटकाए न रहना। और यदि तुम सुधार कर लो और अल्लाह से डरो, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयालु है।"

अदालत ने इन आयतों की व्याख्या करते हुए कहा, "इन आयतों की भावना और मंशा एकपत्नीत्व है, और बहुविवाह केवल अपवाद है। पवित्र कुरान 'न्याय' पर बहुत जोर देता है। अगर एक मुस्लिम पुरुष अपनी पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी पत्नी के साथ न्याय कर सकता है, तभी एक से अधिक विवाह की अनुमति है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि मुस्लिम समुदाय में बहुमत एकपत्नीत्व का पालन करता है, भले ही उनके पास कई पत्नियों को पालने की क्षमता हो। लेकिन एक छोटा अल्पसंख्यक कुरान की आयतों को भूलकर बहुविवाह करता है, जिसे धार्मिक नेताओं और समाज द्वारा शिक्षित करने की जरूरत है। विशेष रूप से इस मामले में, अदालत ने टिप्पणी की कि सैदलावी, जो अंधा और भिखारी है, ने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी की और अब तीसरी करने की धमकी दे रहा है।

अदालत ने कहा, "एक व्यक्ति जिसके पास दूसरी या तीसरी पत्नी को पालने की क्षमता नहीं है, वह मुस्लिम पारंपरिक कानून के अनुसार भी दोबारा शादी नहीं कर सकता।" कोर्ट ने जोर दिया कि ऐसे विवाह शिक्षा की कमी, मुस्लिम कानून की जानकारी न होने के कारण होते हैं, और अदालत ऐसे विवाहों को मान्यता नहीं दे सकती, खासकर जब एक पत्नी गुजारा भत्ता मांगने अदालत पहुंचती है।

अदालत ने राज्य की जिम्मेदारी पर भी प्रकाश डाला। उसने कहा कि केरल में भिक्षावृत्ति को मान्यता नहीं है, और राज्य, समाज तथा अदालत की जिम्मेदारी है कि कोई व्यक्ति भिक्षा मांगकर जीवन न गुजारे। अदालत ने कहा, "राज्य की जिम्मेदारी है कि कम से कम ऐसे व्यक्ति को भोजन और कपड़े उपलब्ध कराए। ऐसे व्यक्ति की बेसहारा पत्नी को भी राज्य द्वारा उचित उपायों से संरक्षित किया जाना चाहिए।" अदालत ने श्री नारायण गुरु के 'दैवदशकम' का हवाला देते हुए कहा कि हर मलयाली, चाहे वह ईश्वर में विश्वास रखे या नहीं, इस प्रार्थना को मानता है:

"अन्न, वस्त्र और हमारी सभी जरूरतों को बिना रुकावट प्रदान कर, हमें बचाने वाला, हमारी हर आवश्यकता को पूरा करने वाला, ऐसा एकमात्र तू ही हमारा स्वामी है।"

कोर्ट ने आगे कहा कि अगर एक अंधा भिखारी, जो मस्जिद के सामने भीख मांगता है और मुस्लिम समुदाय से है, मुस्लिम पारंपरिक कानून के मूल सिद्धांतों की जानकारी के बिना एक के बाद एक शादी करता है, तो राज्य की जिम्मेदारी है कि उसे उचित काउंसलिंग दी जाए। अदालत ने निर्देश दिया, "ऐसे व्यक्ति को राज्य के अधिकारियों द्वारा उचित काउंसलिंग दी जानी चाहिए। मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह के शिकार बेसहारा पत्नियों को राज्य द्वारा संरक्षित किया जाना राज्य की जिम्मेदारी है।"

अदालत ने कहा कि लोकतांत्रिक देश में चुनी हुई सरकार की जिम्मेदारी है कि उसके नागरिक भिक्षा न मांगें। हालांकि, सरकार को हर मामले की जानकारी नहीं होती, इसलिए अदालत सरकार को दोष नहीं दे सकती, लेकिन जब ऐसा मामला अदालत के सामने आता है, तो अदालत की जिम्मेदारी है कि वह संबंधित विभाग को सूचित करे।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन सामाजिक कल्याण विभाग के सचिव को इस आदेश की प्रति भेजने का निर्देश दिया, ताकि उचित कार्रवाई की जा सके। अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सैदलावी को काउंसलिंग दे, जिसमें धार्मिक नेता भी शामिल हों, ताकि वह आगे शादी न करे और कोई अन्य महिला बेसहारा न बने।

साथ ही, अगर संभव हो तो याचिकाकर्ता और सैदलावी को फिर से एकजुट करने का प्रयास किया जाए, जो लोकतांत्रिक सरकार के लिए एक उपलब्धि होगी। अदालत ने सैदलावी की पहली पत्नी के हितों की भी रक्षा करने पर जोर दिया। अंत में, अदालत ने कहा कि हालांकि एक भिखारी को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश नहीं दिया जा सकता, लेकिन सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि याचिकाकर्ता की पत्नियों को भी भोजन और कपड़े उपलब्ध हों।

अदालत ने सुझाव दिया कि राज्य सैदलावी को काउंसलिंग दे, जिसमें धार्मिक नेता भी शामिल हों, ताकि वह आगे शादी न करे और कोई अन्य महिला बेसहारा न बने।
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