इलाहाबाद HC ने UP पुलिस को कहा- FIR और पुलिस दस्तावेजों से 'जाति' हटाओ, अदालत ने कहा- "जाति गौरव दिखाना राष्ट्रविरोधी"

जस्टिस विनोद दिवाकर ने पुलिस की 'जाति लिखने' की प्रथा पर जमकर की फटकार, यूपी सरकार और पुलिस प्रमुख को दिए ठोस निर्देश; जाति आधारित पहचान को दिया 'संवैधानिक नैतिकता के विरुद्ध' करार
कोर्ट का ध्यान इस बात पर गया कि पुलिस ने एफआईआर और जब्ती मेमो में सभी आरोपियों की जाति - 'माली', 'पहाड़ी राजपूत', 'ठाकुर', 'पंजाबी पराशर' और 'ब्राह्मण' - विस्तार से लिखी थी।
कोर्ट का ध्यान इस बात पर गया कि पुलिस ने एफआईआर और जब्ती मेमो में सभी आरोपियों की जाति - 'माली', 'पहाड़ी राजपूत', 'ठाकुर', 'पंजाबी पराशर' और 'ब्राह्मण' - विस्तार से लिखी थी।इंटरनेट
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इलाहाबाद - उत्तर प्रदेश पुलिस अब एफआईआर या किसी भी तरह के पुलिस दस्तावेज में आरोपियों की जाति दर्ज नहीं करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह ऐतिहासिक और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेशों के अनुरूप फैसला सुनाते हुए जाति आधारित पहचान को 'संवैधानिक नैतिकता के विरुद्ध' करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि जाति का बढ़ावा देना या जाति के नाम पर गौरव महसूस करना राष्ट्रविरोधी है।

यह फैसला जस्टिस विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुनाया। मामला एतवा में मद्यनिषेध (Excise) कानून के एक केस (क्राइम नंबर-108/2023) का था, जिसमें आवेदक प्रवीण छेत्री ने आरोपों को खारिज करने की मांग की थी। हालांकि कोर्ट का ध्यान इस बात पर गया कि पुलिस ने एफआईआर और जब्ती मेमो में सभी आरोपियों की जाति - 'माली', 'पहाड़ी राजपूत', 'ठाकुर', 'पंजाबी पराशर' और 'ब्राह्मण' - विस्तार से लिखी थी।

21वीं सदी की पहली तिमाही में, पुलिस अभी भी पहचान के साधन के रूप में जाति पर निर्भर है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
जस्टिस विनोद दिवाकर, इलाहाबाद हाईकोर्ट

ये है मामला

यह मामला एतवा जिले के जसवंतनगर पुलिस थाने में दर्ज एक मद्यनिषेध (Excise Act) के केस (क्राइम नंबर-108/2023) से शुरू हुआ। आवेदक प्रवीण छेत्री समेत पांच लोगों पर आरोप था कि वे हरियाणा से तस्करी करके लाई गई नकली नंबर प्लेट लगी कारों में शराब की बोतलें ले जा रहे थे। पुलिस ने एक स्कॉर्पियो और एक एक्सेंट कार से कुल 360 बोतलें बरामद की थीं।

पुलिस ने गिरफ्तारी के दौरान तैयार किए गए सभी दस्तावेजों (एफआईआर, जब्ती मेमो आदि) में हर आरोपी का नाम, पिता का नाम और उसकी जाति (जैसे माली, पहाड़ी राजपूत, ठाकुर, पंजाबी पराशर, ब्राह्मण) विस्तार से दर्ज किया था। प्रवीण छेत्री ने अपने खिलाफ चल रही इस आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट की नजर इस 'जाति दर्ज करने' की प्रथा पर पड़ी और उसने इसे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए ऐतिहासिक टिप्पणियाँ कीं।

हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों, गांव-कस्बों में लगे वो साइनबोर्ड, जो किसी खास जाति का गौरव दिखाते हैं या इलाके को किसी जाति विशेष का एलान करते हैं, उन्हें तुरंत हटाने को कहा।

हाईकोर्ट ने पुलिस प्रमुख के तर्कों को ठुकराया

हाईकोर्ट ने इस प्रथा पर सवाल उठाते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) से जवाब मांगा था। DGP ने हलफनामे में कहा था कि आरोपियों की पहचान में 'भ्रम' से बचने के लिए और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए फॉर्मेट में यह प्रावधान होने के कारण जाति लिखी जाती है।

हाईकोर्ट ने इन तर्कों को पूरी तरह खारिज कर दिया। जस्टिस दिवाकर ने कहा, "21वीं सदी की पहली तिमाही में, पुलिस अभी भी पहचान के साधन के रूप में जाति पर निर्भर है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।" कोर्ट ने कहा कि आधार, फिंगरप्रिंट, मोबाइल नंबर जैसे आधुनिक साधन मौजूद हैं, इसलिए जाति के नाम पर पहचान करना बिल्कुल अनावश्यक है।

कोर्ट ने दिए ये निर्देश

जाति का कॉलम हटेगा: यूपी सरकार और पुलिस प्रमुख को सभी पुलिस फॉर्मेट्स (एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, चार्जशीट आदि) से आरोपी, शिकायतकर्ता या गवाह की जाति लिखने का कॉलम हटाना होगा। सिर्फ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के मामलों में ही यह छूट रहेगी।

मां का नाम जोड़ना अनिवार्य: अब सभी पुलिस दस्तावेजों में आरोपी या शिकायतकर्ता के पिता के नाम के साथ-साथ उसकी मां का नाम भी लिखना अनिवार्य होगा।

थानों के नोटिस बोर्ड बदले जाएं: कोर्ट ने देखा कि थानों में लगे नोटिस बोर्ड पर भी आरोपियों की जाति लिखी होती है। कोर्ट ने इसे तुरंत हटाने का आदेश दिया है।

सार्वजनिक स्थानों के जातिवादी बोर्ड हटें: कोर्ट ने निर्देश दिया कि गांव-कस्बों में लगे वो साइनबोर्ड, जो किसी खास जाति का गौरव दिखाते हैं या इलाके को किसी जाति विशेष का एलान करते हैं, उन्हें तुरंत हटाया जाए और भविष्य में लगाने पर रोक लगाई जाए।

कोर्ट का ध्यान इस बात पर गया कि पुलिस ने एफआईआर और जब्ती मेमो में सभी आरोपियों की जाति - 'माली', 'पहाड़ी राजपूत', 'ठाकुर', 'पंजाबी पराशर' और 'ब्राह्मण' - विस्तार से लिखी थी।
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जाति का गौरव दिखाना अहंकार, राष्ट्रविरोधी है

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जाति आधारित गौरव पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि यह "सांस्कृतिक अहंकार और समूहीय अहंकार का प्रतिबिंब है... जहां गर्व व्यक्तिगत योग्यता पर नहीं, बल्कि झूठे पैतृक वीरत्व या काल्पनिक पौराणिक श्रेष्ठता पर आधारित है।"

कोर्ट ने डॉ. भीमराव आंबेडकर का हवाला देते हुए कहा, "भारत में जातियां हैं। जातियां राष्ट्रविरोधी हैं... वे सामाजिक जीवन में अलगाव लाती हैं... जाति और जाति के बीच ईर्ष्या और द्वेष पैदा करती हैं।"

हाईकोर्ट ने कहा कि 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब समाज से जाति की गहरी जड़ों को उखाड़ फेंका जाए। एक राष्ट्र का विकास दो आधारों पर मापा जाता है: "कानून के शासन का प्रभावी कार्यान्वयन और एक समतामूलक समाज की प्राप्ति।"

हालांकि, इस ऐतिहासिक टिप्पणी के बाद, कोर्ट ने मद्यनिषेध केस में याचिकाकर्ता प्रवीण छेत्री की याचिका को खारिज कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ prima facie सबूत मजबूत पाए गए। इस फैसले को भारत की न्यायपालिका द्वारा जातिविहीन समाज की दिशा में एक सशक्त और प्रगतिशील कदम माना जा रहा है।

कोर्ट का ध्यान इस बात पर गया कि पुलिस ने एफआईआर और जब्ती मेमो में सभी आरोपियों की जाति - 'माली', 'पहाड़ी राजपूत', 'ठाकुर', 'पंजाबी पराशर' और 'ब्राह्मण' - विस्तार से लिखी थी।
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कोर्ट का ध्यान इस बात पर गया कि पुलिस ने एफआईआर और जब्ती मेमो में सभी आरोपियों की जाति - 'माली', 'पहाड़ी राजपूत', 'ठाकुर', 'पंजाबी पराशर' और 'ब्राह्मण' - विस्तार से लिखी थी।
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