नई दिल्ली- गुजरात विधानसभा ने फैक्ट्री के काम के घंटे 9 से 12 घंटे बढ़ाने वाला बिल पास किया है. महिलाओं को रात की शिफ्ट करने की भी अनुमति दी गई है. कारखाना अधिनियम 1948 में संशोधन करके औद्योगिक मज़दूरों के लिए दैनिक कार्य समय को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया। यह कदम दुनिया भर के मज़दूरों द्वारा सदियों के संघर्ष के माध्यम से स्थापित एक वैश्विक मानक का सीधा उल्लंघन करता है।
यह सिद्धांत कि मज़दूरों को कारखानों में प्रतिदिन आठ घंटे से ज़्यादा और हफ़्ते में छह दिन 48 घंटे से ज़्यादा काम नहीं करना चाहिए, दुनिया भर के क़ानूनों में शामिल है।
भीम आर्मी चीफ और नगीना सांसद चन्द्र शेखर आज़ाद ने अपने x पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पूछा- क्या गुजरात में मजदूरों और महिलाओं पर थोपा गया यह 12 घंटे का काला कानून अब पूरे देश में लागू करने की तैयारी है? हम स्पष्ट चेतावनी देते हैं कि मजदूरों और महिलाओं की पीठ पर उद्योगपतियों का मुनाफ़ा लादना बंद कीजिए। भारत संविधान से चलेगा किसी उद्योगपति की गुलामी से नहीं।
आज़ाद ने अपने पोस्ट में लिखा," गुजरात सरकार द्वारा मजदूरों से 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम कराने का कानून न सिर्फ़ अमानवीय है बल्कि भारत के संविधान और परम पूज्य बाबा साहेब की श्रम सुधार विरासत का भी खुला अपमान है। याद रखना होगा कि 1942 में बाबा साहेब ने अंग्रेज़ों की 12 घंटे की मजदूरी समाप्त कर भारत में 8 घंटे कार्यदिवस का कानून लागू किया था। गुजरात सरकार का यह कदम उसी अंग्रेज़ी हुकूमत के काले कानून की पुनरावृत्ति है।
2020 में ही गुजरात सरकार ने एक अध्यादेश लाकर अस्थायी रूप से कारखानों में 8 घंटे की जगह 12 घंटे कार्यदिवस की अनुमति दी थी। तब इसे महामारी और श्रम संकट के बहाने लागू किया गया। अब उसी औपनिवेशिक सोच को स्थायी बनाने की कोशिश की जा रही है। यह कदम पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाओं और परिवार पर भी गंभीर असर डालता है, क्योंकि लंबे कार्य घंटे महिलाओं के रोजगार, सुरक्षा और घरेलू जीवन को प्रभावित करते हैं। यह कानून केवल ऐतिहासिक और संवैधानिक विरासत का उल्लंघन नहीं है, बल्कि मजदूरों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा हमला है।
लंबे कार्य घंटे थोपना जन-स्वास्थ्य और जीवन स्तर को बेहतर बनाने की राज्य की जिम्मेदारी (अनुच्छेद 43 और 47, DPSP) के खिलाफ है। साथ ही, यह कदम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के 1919 के Hours of Work (Industry) Convention और अन्य वैश्विक श्रम मानकों का भी उल्लंघन है, जिनमें कार्यदिवस 8 घंटे और कार्यसप्ताह 48 घंटे से अधिक नहीं होना तय है। भारत इन मानकों का सदस्य होने के नाते उनका पालन करने के लिए बाध्य है। गुजरात मॉडल पहले ही मजदूरों को आउटसोर्सिंग और संविदा व्यवस्था के ज़रिए सस्ता श्रम बना चुका है। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट भी गुजरात के उद्योगपतियों को सौंप दिए गए। अब 12 घंटे का कार्यदिवस थोपकर मजदूरों को अंग्रेज़ों जैसी गुलामी में धकेला जा रहा है। "
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