
भोपाल। माउंट एवरेस्ट फतह कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्य प्रदेश का नाम रोशन करने वाली पर्वतारोही भावना डेहरिया को विक्रम अवार्ड दिए जाने का रास्ता सोमवार को हाई कोर्ट के फैसले के बाद पूरी तरह साफ हो गया। न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा की एकलपीठ ने राज्य सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका को निरस्त करते हुए स्पष्ट कहा कि वर्ष 2023 की एडवेंचर स्पोर्ट्स कैटेगरी में पुरस्कार चयन प्रक्रिया पूरी तरह नियमों के अनुरूप है।
कोर्ट ने यह भी माना कि चयन समिति ने उपलब्धियों, पात्रता अवधि और नियमों की शर्तों का संतुलित मूल्यांकन करते हुए निर्णय लिया है और इसमें किसी प्रकार की मनमानी या त्रुटि दिखाई नहीं देती। इस प्रकरण को लेकर पिछले कुछ समय से विवाद बना हुआ था, लेकिन अदालत के आदेश ने सरकार के निर्णय को वैधानिक पुष्टि दे दी है।
हाईकोर्ट ने दिया था स्टे
याचिका दायर करने वाले पर्वतारोही मधुसूदन पाटीदार का तर्क था कि वे भावना डेहरिया से वरिष्ठ हैं और पर्वतारोहण के क्षेत्र में उनका अनुभव अधिक है। पाटीदार ने दावा किया कि उनका एवरेस्ट आरोहण भावना से पहले हुआ था, इसलिए पुरस्कार उन्हें मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पुरस्कार चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं थी और उन्हें आवेदन करने या दावेदारी पेश करने का उचित अवसर नहीं दिया गया। हालांकि कोर्ट ने इन दलीलों को तथ्यों और नियमों के आधार पर कमजोर पाया और माना कि वरिष्ठता पुरस्कार के लिए एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती।
कोर्ट ने दस्तावेजों की जांच के बाद यह पाया कि मधुसूदन पाटीदार का एवरेस्ट आरोहण वर्ष 2017 में हुआ था। मध्यप्रदेश पुरस्कार नियम 2021 के अनुसार एडवेंचर स्पोर्ट्स कैटेगरी में केवल पिछले पाँच वर्षों की उपलब्धियों को मान्य माना जाता है। वर्ष 2023 के लिए पात्रता अवधि 2018 से 2023 तक निर्धारित है। इस प्रकार 2017 की उपलब्धि इस दायरे से स्पष्ट रूप से बाहर थी। कोर्ट ने कहा कि जब उपलब्धि ही पात्रता अवधि में शामिल नहीं है, तो पाटीदार का दावा स्वाभाविक रूप से अस्वीकार्य था और चयन समिति का उन्हें बाहर करना नियमों के पूरी तरह अनुरूप है।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार द्वारा पुरस्कारों के लिए आवेदन आमंत्रित करने की प्रक्रिया वर्ष 2021, 2022 और 2023 के नियमों के अनुसार सही तरीके से संचालित हुई थी। आवेदन से संबंधित सूचना, पात्रता शर्तें और चयन मापदंड सार्वजनिक रूप से जारी किए गए थे। ऐसे में यह दावा कि याचिकाकर्ता को आवेदन के संबंध में पर्याप्त नोटिस या जानकारी नहीं दी गई, तथ्यहीन पाया गया। कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध जानकारी सार्वजनिक थी और इसे किसी विशेष व्यक्ति को निजी रूप से भेजने की कोई बाध्यता नहीं थी।
अदालत के इस फैसले के बाद भावना डेहरिया के लिए सम्मान का मार्ग पूरी तरह प्रशस्त हो गया है। भावना लंबे समय से पर्वतारोहण में सक्रिय हैं और माउंट एवरेस्ट के अलावा विश्व की कई ऊँची चोटियों पर सफलता से तिरंगा फहरा चुकी हैं। उनके साहस, प्रतिबद्धता और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों को देखते हुए राज्य सरकार ने उन्हें विक्रम अवार्ड के लिए चयनित किया था। खेल जगत में माना जा रहा है कि हाई कोर्ट का यह निर्णय खिलाड़ियों के मनोबल को बढ़ाने वाला है और इससे खेल पुरस्कारों की चयन प्रक्रियाओं पर विश्वास भी मजबूत होगा।
विवाद क्या था?
विवाद की शुरुआत तब हुई जब पर्वतारोही मधुसूदन पाटीदार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया कि उन्हें भावना डेहरिया से वरिष्ठ होने के कारण विक्रम अवार्ड मिलना चाहिए था। पाटीदार ने तर्क दिया कि उन्होंने वर्ष 2017 में माउंट एवरेस्ट फतह किया है और इसलिए पुरस्कार के लिए वे अधिक योग्य हैं। साथ ही उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि राज्य सरकार ने उन्हें आवेदन करने का सही अवसर या पर्याप्त जानकारी नहीं दी, जिसके चलते उनका नाम चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सका। यहीं से विवाद बढ़ा और मामला अदालत तक पहुँचा।
लेकिन कोर्ट ने रिकॉर्ड और नियमों की जांच के बाद पाया कि पाटीदार का एवरेस्ट आरोहण पात्रता अवधि से बाहर है। मध्यप्रदेश पुरस्कार नियम 2021 के अनुसार एडवेंचर स्पोर्ट्स कैटेगरी में केवल पिछले पाँच वर्षों की उपलब्धियों को ही मान्य माना जाता है। चूंकि पुरस्कार वर्ष 2023 के लिए था और पात्रता अवधि 2018–2023 तक की थी, इसलिए 2017 की उपलब्धि पर विचार नहीं किया जा सकता था। इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि पाटीदार पुरस्कार के लिए पात्र ही नहीं थे, इसलिए भावना डेहरिया का चयन पूर्णतः सही और नियमों के अनुरूप है। इस तरह विवाद खत्म हो गया।
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