31 मार्च तक सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं दी तो समुदाय उठाएगा बड़ा कदम, जानिये आदिवासी नेता ने राष्ट्रपति मुर्मू को दिया क्या अल्टीमेटम?

31 मार्च तक सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं दी तो समुदाय उठाएगा बड़ा कदम, जानिये आदिवासी नेता ने राष्ट्रपति मुर्मू को दिया क्या अल्टीमेटम?

समुदाय का एलान - जो सरना धर्म कोड देगा आदिवासी उसको वोट देगा

रांची- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे एक पत्र में, पूर्व सांसद और आदिवासी सेनेगल अभियान (एएसए) के राष्ट्रीय प्रमुख सालखन मुर्मू ने भारत के आदिवासी समुदाय के लिए अलग सरना धर्म कोड की तत्काल घोषणा की मांग की है। मुर्मू ने 31 मार्च से पहले केंद्र सरकार से ठोस सकारात्मक प्रतिक्रिया की तात्कालिकता पर जोर दिया और निर्धारित मांगों पर ध्यान नहीं दिए जाने पर 7 अप्रैल को अनिश्चितकालीन भारत बंद और रेल-रोड चक्का जाम की चेतावनी दी।

गौरतलब है कि पिछले तीन वर्षों में आदिवासी सेनेगल अभियान (एएसए) ने विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला आयोजित की है, जिससे पांच राज्यों में रेल और सड़क संचार बाधित हुआ है। साल 2020 से अब तक कुल पांच भारत बंद का आयोजन किया जा चुका है, जो 6 दिसंबर, 2020 , 31 जनवरी 2021; फ़रवरी 11, 2023; 15 जून, 2023; और 30 दिसंबर, 2023 को हुए.

द मूकनायक से बात करते हुए एएसए के राष्ट्रीय प्रमुख ने कहा कि सरना धर्म कोड भारत के प्रकृति पूजक लगभग 15 करोड़ आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी की जीवन रेखा है। मगर आदिवासियों को उनकी धार्मिक आजादी से वंचित करने के लिए कांग्रेस- बीजेपी दोषी हैं। 1951 की जनगणना तक यह प्रावधान था जिसे बाद में कांग्रेस ने हटा दिया और अब भाजपा जबरन आदिवासियों को हिंदू बनाना चाहती है। 2011 की जनगणना में 50 लाख आदिवासियों ने सरना धर्म लिखाया था जबकि जैन की संख्या 44 लाख थी। अतः आदिवासियों को मौलिक अधिकार से वंचित करना संवैधानिक अपराध जैसा है। सरना धर्म कोड के बगैर आदिवासियों को जबरन हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि बनाना धार्मिक गुलामी को मजबूर करना एवं धार्मिक नरसंहार जैसा है। सरना धर्म कोड की मान्यता मानवता और प्रकृति- पर्यावरण की सुरक्षार्थ भी अनिवार्य है। सरना हेतु प्रधानमंत्री का उलिहातू दौरा (15.11.23) और महामहिम राष्ट्रपति का बारीपदा दौरा (20.11.23) भी बेकार साबित हुआ है।

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38 से घटकर 26 प्रतिशत रह गई आदिवासी जनसंख्या, सरना धर्म कोड जरूरी !

पत्र में मुर्मू ने लिखा कि आदिवासी सेंगेल अभियान अन्य आदिवासी संगठनों के सहयोग से 30 दिसंबर 2023 को सांकेतिक भारत बंद और रेल- रोड चक्का जाम को बाध्य हुआ था। इस बंद और रेल- रोड चक्का जाम का जोरदार असर अनेक प्रदेशों में हुआ। जिसपर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए रेल-रोड चक्का जाम के बदले उचित मंच पर संवाद सही है और अमर उजाला के अनुसार राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, दिल्ली ने प्रकृति पूजक आदिवासियों को सरना धर्म कोड देने की सिफारिश किया है। आदिवासी समाज उपरोक्त तथ्यों को सही दिशा में सकारात्मक पहल मानती है एवं इसका स्वागत करती है।

आदिवासी  सेंगेल अभियान व् अन्य आदिवासी संगठनों ने  30 दिसंबर को सांकेतिक भारत बंद और रेल- रोड चक्का जाम किया था.
आदिवासी सेंगेल अभियान व् अन्य आदिवासी संगठनों ने 30 दिसंबर को सांकेतिक भारत बंद और रेल- रोड चक्का जाम किया था.

आगे पत्र में लिखा कि हम आदिवासियों के लिए यह कैसी विडंबना है कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक महामहिम राष्ट्रपति के पद पर भी एक आदिवासी है। भारत के संविधान में धार्मिक आजादी की व्यवस्था मौलिक अधिकार है। हमारी संख्या मान्यता प्राप्त जैनों से ज्यादा है तब भी हमें धार्मिक आजादी से वंचित करना अन्याय, अत्याचार और शोषण नहीं तो क्या है ? आखिर हम जाएं तो कहां जाएं ? अतएव फिर 7 अप्रैल को भारत बंद, रेल- रोड चक्का जाम को हम मजबूर हैं, यदि 31 मार्च 2024 तक सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए सभी संबंधित पक्ष कोई सकारात्मक घोषणा नहीं करते हैं। यह भारत बंद अनिश्चितकालीन भी हो सकता है। भारत के आदिवासियों को धार्मिक आजादी मिले इसके लिए आदिवासी सेंगेल अभियान सभी राजनीतिक दलों और सभी धर्म यथा हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि के प्रमुखों से आग्रह करती है कि वे भी मानवता और प्रकृति- पर्यावरण की रक्षार्थ सहयोग करें। सरना धर्म कोड देना ही होगा।

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मुर्मू ने 7 अप्रैल, 2024 से आहूत भारत बंद में सरना धर्म लिखाने वाले 50 लाख आदिवासी एवं अन्य सभी सरना धर्म संगठनों और समर्थकों से अपने-अपने गांव के पास एकजुट प्रदर्शन करने का आग्रह किया है। उन्होने लिखा झारखण्ड विधानसभा में नवंबर 2020 को धर्म कोड बिल पारित करने वाली सभी पार्टियों यथा जेएमएम, बीजेपी, कांग्रेस, आजसू आदि के कार्यकर्ताओं को तथा बंगाल से टीएमसी को भी सामने आना होगा वर्ना वे केवल वोट के लिए कार्यरत आदिवासी विरोधी और ठगबाज ही प्रमाणित होंगे।

मुर्मू ने पत्र में लिखा सरना धर्म स्थलों यथा मरांग बुरु (पारसनाथ, गिरिडीह), लुगु बुरु (बोकारो), अयोध्या बुरु (पुरुलिया) आदि को बचाने के लिए भी सेंगेल दृढ़ संकल्पित है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 5 जनवरी 2023 को पत्र लिखकर मरांग बुरु को जैनों को सौंप दिया है। अतः सेंगेल ने 10 दिसंबर 2023 को मधुबन,गिरिडीह में मरांग बुरु बचाओ सेंगेल यात्रा- सभा और 22 दिसंबर 2023 को दुमका के गांधी मैदान में हासा- भाषा विजय दिवस का सफल आयोजन किया और संबंधित प्रस्ताव भी पारित किया।

सेंगेल किसी पार्टी और उसके वोट बैंक को बचाने के बदले आदिवासी समाज को बचाने के लिए चिंतित है। चुनाव कोई भी जीते आदिवासी समाज की हार निश्चित है। आजादी के बाद से अब तक आदिवासी समाज हार रहा है, लुट मिट रहा है। विकास आदिवासियों के लिए विनाश ही साबित हो रहा है। क्योंकि अधिकांश पार्टी और नेता के पास आदिवासी एजेंडा और एक्शन प्लान नहीं है। अंततः अभी तक हम धार्मिक आजादी से भी वंचित है। अतः फिलवक्त सरना धर्म कोड आंदोलन हमारी धार्मिक आज़ादी के साथ बृहद आदिवासी एकता और भारत के भीतर आदिवासी राष्ट्र के निर्माण का आंदोलन भी है। सेंगेल का नारा है- " आदिवासी समाज को बचाना है तो पार्टियों की गुलामी मत करो, समाज की बात करो और काम करो। आदिवासी हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि की रक्षा करो। मगर जो सरना धर्म कोड देगा आदिवासी उसको वोट देगा।

सरना धर्म क्या है?

सरना धर्म को उसके अनुयायी एक अलग धार्मिक समूह के रूप में स्वीकार करते हैं, जो मुख्य रूप से प्रकृति के उपासकों से बना है। सरना आस्था के मूल सिद्धांत "जल (जल), जंगल (जंगल), ज़मीन (जमीन)" के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिसमें अनुयायी वन क्षेत्रों के संरक्षण पर जोर देते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं। पारंपरिक प्रथाओं के विपरीत, सरना विश्वासी मूर्ति पूजा में शामिल नहीं होते हैं और वर्ण व्यवस्था या स्वर्ग- नरक की अवधारणाओं में विश्वास नहीं करते हैं। सरना के अधिकांश अनुयायी ओडिशा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे आदिवासी बेल्ट में केंद्रित हैं।

विशेषज्ञों का तर्क है कि प्रदूषण को दूर करने और वनों के संरक्षण पर वैश्विक फोकस के साथ, मूल समुदायों को सबसे आगे रखा जाना चाहिए। सरनावाद को एक धार्मिक संहिता के रूप में मान्यता देना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस धर्म का सार प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में निहित है।

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