अयोध्या: राम की नगरी में बेबसी का जीवन जी रही माईवाड़ा की महिलाएं! - ग्राउंड रिपोर्ट

वृद्धा आश्रमों के संचालन में नहीं मिलती सरकार की मदद, राज्य की कल्याणकारी योजनाओं से नही है जुड़ाव।
एक बुजुर्ग महिला खाना पका रही है, जबकि दूसरी बुजुर्ग महिला बंदरों को रोकने के लिए डंडा लेकर बैठी है.
एक बुजुर्ग महिला खाना पका रही है, जबकि दूसरी बुजुर्ग महिला बंदरों को रोकने के लिए डंडा लेकर बैठी है.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

अयोध्या। "हमको वृद्धावस्था पेंशन का लाभ नहीं मिलता, न ही मुफत [मुफ्त] राशन, बीमार होते हैं तो दस दस दस रुपए चंदा कर डॉक्टर की फीस इकट्ठी करते हैं फिर इलाज कराते हैं। दो जून की रोटी के लिए भीख मांग कर गुजारा करते हैं," यह जीवन संघर्ष अयोध्या शहर के माई वाड़ा (वृद्धाश्रम) में रहने वाली वृद्ध व परित्याक्ता महिलाओं का है। द मूकनायक इन माईवाड़ों का आंखों देखा हाल इस रिपोर्ट में आप तक लेकर आया है।

अयोध्या में मौजूद तीन आश्रम ऐसी महिलाओं के आश्रय स्थल के रूप में चल रहे हैं। एक तरफ करोड़ों रुपए खर्च कर भव्य राम मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ सैकड़ों की संख्या में घरेलू हिंसा की शिकार हुई महिलाएं आश्रमों में रहकर जीवन जीने पर मजबूर हैं। हालांकि, 10 साल पहले सरकार ने अयोध्या में एक वृद्धा आश्रम भी खोला, लेकिन महिलाओं का कहना है कि सरकारी आश्रम में विभिन्न पाबंदियों के कारण उनकी आजादी छिन जाती है। इस कारण वह सरकारी आश्रम के स्थान पर इस आश्रम में रहना पसंद करती हैं।

अयोध्या शहर पहुँचते ही हाईवे से बाईं ओर का मार्ग राम कार्यशाला की तरफ जाता है। यह वही कार्यशाला है, जहां राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की कटाई, नक्काशी और विभिन्न कार्य हो रहे हैं। इसी कार्यशाला के ठीक पीछे जानकी बाग में यह तीन माई बाड़ा बने हुए हैं। इनके नाम जानकी दासी माई बाड़ा, महंत श्री ललिता दासी माई बाड़ा और श्री राम जानकी मंदिर माई बाड़ा आश्रम हैं।

रामकार्यशाला के पास जानकी बाग में मौजूद माई बाड़ा.
रामकार्यशाला के पास जानकी बाग में मौजूद माई बाड़ा.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

द मूकनायक की टीम सबसे पहले राम जानकी मंदिर माई बाड़ा आश्रम पहुंची। इस माई बाड़ा के बाहर एक गेट पर मंदिर मौजूद है, जबकि दूसरा गेट आवास स्थल की ओर ले जाता है। इस माई बाड़ा में दाखिल हुए तो देखा एक बुजुर्ग महिला जमीन में बैठकर चूल्हे पर कुछ पका रही थीं। जबकि एक अन्य महिला पास में लगे हुए ईटों के ढेर पर बैठकर हाथ में डंडा लिए बैठी थी। पास की छत पर कुछ बंदर भी बैठे हुए थे। डंडा लिए हुए महिला उन बंदरों से खाने को बचाने के लिए बैठी थीं। इन दोनों महिलाओं की वेशभूषा एक साध्वी के जैसी थी।

दोनों की अवस्था देखकर लग रहा था। इस उम्र में दोनों एक-दूसरे का सहारा बनी हुई हैं। माई बाड़ा की मुखिया के विषय में पूछने पर महिलाओं ने ऊँगली से एक अन्य महिला की तरफ इशारा किया। छोटी कद-काठी, सफेद बालों वाली एक महिला सफेद साड़ी पहने हुए कुर्सी पर बैठी हुई थी। उनकी उम्र लगभग 70 साल की लग रही थी। उनका नाम महंत कृष्णा दासी है। उन्होंने बताया कि माईवाड़ा में 112 महिलाएं निवास करती हैं।

माई बाड़ा की जर्जर हालत.
माई बाड़ा की जर्जर हालत.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

माईवाड़ा संचालक ने बताया कि मेरे माई बाड़ा में यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों की महिलाएं हैं। यह सभी महिलाएं किसी न किसी कारण से अपना सब कुछ त्याग कर यहां आई हैं। कृष्णा दासी कहती हैं, "मैं भी मध्य प्रदेश के रीवा जिले की रहने वाली हूँ। मेरे पिता कानूनगो थे। मेरे भी जिंदगी कभी आप लोगों जैसी ही हुआ करती थी। मेरी शादी 17 साल की उम्र में सन 1982 में हुई थी। एक साल बाद मेरे पति की मौत हो गई। मैं अपने पिता के साथ माघ मेले में घूमने गई थी, जिसके बाद मैं यहां आ गई। मेरी तरह ही अन्य महिलाएं भी हैं। किसी के पति की मौत हो गई तो किसी की बहू और बेटों ने दर-दर की ठोकरें खाने के लिए उन्हें छोड़ दिया है।"

इसी प्रकार साध्वी राधा दासी (75) बिहार के गया जिले की रहने वाली हैं। इनकी शादी नौ साल की उम्र में हो गई थी। इनका गौना नहीं हुआ था और पति की पहले ही मौत हो गई, जिसके बाद वह विधवा हो गईं। इनके पिता यहां के माई बाड़ा आश्रम के पूर्व महंत के भक्त थे और अपनी बेटी को इस आश्रम में छोड़कर चले गए।

महंत कृष्णा दासी के पास में ही एक कोने में सफेद साड़ी पहने हुए बहुत ही बूढी महिला बैठी हुई थीं। महिलाओं ने बताया कि अम्मा माई बाड़ा में सबसे वृद्ध महिला हैं। अम्मा ने धीमी आवाज में अपना नाम बताया रामसनेही दासी। उन्होंने कहा, "साठ साल से ज्यादा हो गए, कितने तो मेरे सामने मर गए... मेरे सामने आश्रम में कभी 60 लोग रहे हैं, कभी 40 लोग रहे हैं। अब इस समय 100 से ज्यादा लोग रह रहे हैं।" आस-पास बैठी महिलाओं ने बताया कि अम्मा सौ साल से ऊपर की हैं। इनके पोते के लड़के की भी शादी हो चुकी है। वह लोग इनसे मिलने आते रहते हैं। आश्रम की महंत कृष्णा दासी ने बताया कि अम्मा कि बहू से इनकी पटरी नहीं खाती थी। इस कारण वह सब कुछ छोड़कर चली आई हैं।

सरकार मदद नहीं करती

अम्मा माई बिफरते हुए कहती हैं कि सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती है। हम इधर-उधर मांगकर खा लेते हैं। हमारे चेले लोग हमारी मदद करते हैं। भगवान का तो मंदिर बन गया है। वह बहुत कष्ट में थे। "हम तो उनसे (भगवान) कहते हैं, हमारे भी कष्ट देखिए। वहां कोई घूसखोर नहीं है। सरकार में घूसखोर लोग रहते हैं", अम्मा माई ने आगे बताया कि अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो दस -दस रुपए चंदा कर इलाज करवा लेते हैं।

ललिता दासी माई बाड़ा में मौजूद कमरे.
ललिता दासी माई बाड़ा में मौजूद कमरे.फोटो- सत्य प्रकाश भारती, द मूकनायक

जर्जर मकान में रहने के लिए मजबूर महिलाएं

द मूकनायक टीम ने बारी-बारी तीनों माई बाड़ा की महिलाओं से बातचीत की। श्री ललिता दासी माई बाड़ा की हालत जर्जर थी। अंदर प्रवेश करते ही दोनों और छोटे-छोटे कमरे बने हुए थे। वहीं इन कमरों के बाहर ईंट और मिट्टी से जोड़ी हुई फर्श थी। कमरों पर प्लास्टर तक नहीं था। पास में ही एक मंदिर बना हुआ था, यह पूरी तरह जर्जर हो चुका था। इसके छत से प्लास्टर टपक रहा था। जर्जर मकान में प्लास्टर गिरना आम है। इससे एक बार महिला चोटिल भी हो गई थीं।

सरकारी योजनाओं का नहीं मिलता लाभ

माईवाड़ा में रहने वाली वृद्ध, परित्याक्ता व विधवा महिलाएं दूसरे राज्यों से है। इसके चलते इनके आधारकार्ड व अन्य पहचान पत्र स्थानीय नहीं होने से अधिकांश महिलाओं को मुफ्त राशन, चिकित्सा व वृद्ध पेंशन का लाभ नहीं मिल पा रहा है।

समाज कल्याण विभाग का लाखों का बजट?

योगी सरकार हर साल राज्य के वृद्ध लोगों के लिए लाखों रुपए का बजट तैयार करती है। इसके साथ ही सीएम योगी ने सभी समाज कल्याण अधिकारी और कर्मचारियों को घर-घर जाकर वृद्धा पेंशन के लिए जागरूक करने के आदेश दिए हैं। इसके बावजूद भी यह स्थिति देखने को मिल रही है। वृद्धा पेंशन योजना के तहत 60 साल से ऊपर के 56 लाख वृद्धों को लाभ देने का लक्ष्य सरकार ने रखा है। इस योजना के तहत पेंशन के रूप में 1000 रुपए दिए जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान समय में 52.77 लाख वृद्धों को पेंशन दी जा रही है। इस योजना में गरीबी रेखा से नीचे जो वृद्धि जीवनयापन कर रहे हैं।

एक बुजुर्ग महिला खाना पका रही है, जबकि दूसरी बुजुर्ग महिला बंदरों को रोकने के लिए डंडा लेकर बैठी है.
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