7वें धर्म का आह्वान: क्या सरना धर्म होगा भारत के स्वदेशी समुदायों का नया आध्यात्मिक मार्ग?

50 लाख आदिवासी व्यक्तियों ने 2011 की जनगणना में अपना धर्म ' सरना' दर्ज करवाया था। केंद्र सरकार मान्यता की पहल नहीं करेगी तो सेंगेल का अनिश्चितकालीन रेल/रोड चक्का जाम का ऐलान
7वें धर्म का आह्वान: क्या सरना धर्म होगा भारत के स्वदेशी समुदायों का नया आध्यात्मिक मार्ग?

भारत में हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिख, जैन और बौद्घ छह प्रमुख धर्मों में शामिल हैं। कम संख्या में पारसी समुदाय भी हैं जो ज़ोरोएसट्रियानिस्म को मानता है। देश मे मूलनिवासियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए कार्यरत संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान [एएसए] सरना धर्म संहिता की प्रतीक्षित मान्यता के लिए लंबे समय से आंदोलन कर रहा है।

सरना धर्म कोड की मांग को पुरजोर तरीके से रखने के लिए गुरुवार को भारत बंद का आह्वान किया है, जिसका असर मुख्य रूप से सात राज्यों में रहने की आशंका है। ओडिशा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और अरूणाचल प्रदेश के 350 से अधिक ब्लॉक्स में आदिवासी सेंगेल अभियान के समर्थक सक्रिय हैं । भारत बंद के आह्वान के चलते रेलवे द्वारा 29 ट्रेनों की फेरियां निरस्त की गई और 10 ट्रेनों के मार्ग बदल दिए गए। ट्रेनों के निरस्त होने एव रुट बदले जाने से 10 हजार यात्रियों को परेशानी उठानी पड़ी है। इन राज्यों व जगह-जगह हाइवे बंद किये गए जिससे आवागमन घंटों बाधित रहा।

संगठन का कहना है कि एक निर्दिष्ट कोड के अभाव में भी जब 2011 कि जनगणना में 50 लाख से अधिक आदिवासी लोगों ने सरना को अपने धर्म के रूप में दर्ज करवाया तो केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से सरना धर्म कोड की मान्यता क्यों नहीं प्रदान कर रही है जबकि 2011 में जैन धर्मावलंबियों की संख्या 44 लाख ही थी और जैन दर्शन को धर्म के रूप में मान्यता है।

भारत बंद के अलावा एएसए द्वारा 30 जून को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में विश्व सरना धर्म जन सभा नामक एक भव्य जनसभा के आयोजन की युद्ध स्तर पर तैयारियां चल रही है। इस कार्यक्रम में 3 लाख से अधिक लोगों के आने की उम्मीद है।

सात सूत्रीय मांगपत्र

सरना धर्म के प्रति अटूट प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए, एएसए ने सात मांगों पर एक बयान जारी किया है, जिसमें 2023 में सरना धर्म संहिता के तत्काल कार्यान्वयन, जैन समुदाय से मारंग बुरु की बहाली, अबुआ दिशोम अबुआ राज की स्थापना, कुर्मी को एसटी सूची में शामिल करने की मांग को पूरा नहीं करना, असम-अंडमान में रहने वाले झारखंड के आदिवासी समुदायों को एसटी स्टेटस दिलवाना, झारखंड में प्राथमिक आधिकारिक भाषा के रूप में संथाली को मान्यता देने और आदिवासी स्व-शासन प्रणालियों को बढ़ाने के लिए संवैधानिक सुधार आदि शामिल हैं।

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एएसए के राष्ट्रीय प्रमुख सालखन मुर्मू पूर्ण विश्वास के साथ आजाद भारत में आदिवासियों की अधीनता के बारे में मार्मिक सवाल उठाते हैं। अधिकारों की गारंटी देने वाले संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद वे आदिवासी आबादी की वर्तमान में दयनीय सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक दशा पर दुख व्यक्त करते हैं।

मुर्मू कहते हैं कि ये एक विसंगति है कि 2011 की जनगणना में प्रकृति-उन्मुख सरना धर्म के लगभग 50 लाख भक्तों ने अपनी आस्था घोषित की फिर भी सरना धर्म संहिता आधिकारिक स्वीकृति का इंतजार कर रही है।

जैनियों की संख्या 44 लाख है, जिन्हें पहले से ही एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता दी जा चुकी है। सरना धर्म कोड की मांग पर सेंगल अभियान ने कई जनजातीय संगठनों के साथ पिछले नवंबर में जंतर मंतर पर धरना दिया था। कोलकाता और रांची में भी सरना धर्म संहिता की मान्यता की वकालत करते हुए प्रदर्शनों की एक श्रृंखला चलाई गई।

सरना धर्म क्या है?

सरना धर्म को उसके अनुयायी एक अलग धार्मिक समूह के रूप में स्वीकार करते हैं, जो मुख्य रूप से प्रकृति के उपासकों से बना है। सरना आस्था के मूल सिद्धांत "जल (जल), जंगल (जंगल), ज़मीन (जमीन)" के इर्द-गिर्द घूमते हैं, जिसमें अनुयायी वन क्षेत्रों के संरक्षण पर जोर देते हुए पेड़ों और पहाड़ियों की पूजा करते हैं। पारंपरिक प्रथाओं के विपरीत, सरना विश्वासी मूर्ति पूजा में शामिल नहीं होते हैं और वर्ण व्यवस्था या स्वर्ग- नरक की अवधारणाओं में विश्वास नहीं करते हैं। सरना के अधिकांश अनुयायी ओडिशा, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम जैसे आदिवासी बेल्ट में केंद्रित हैं।

मान्यता और संरक्षण की मांग

सरना धर्म के पैरोकार कई बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को संबोधित पत्रों में अपने विचार व्यक्त करते हुए आदिवासियों के लिए एक अलग धार्मिक संहिता की स्थापना की मांग करते रहे हैं। वे दावा करते हैं कि स्वदेशी लोग प्रकृति के उपासक हैं और उन्हें एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। सालखन मुर्मू कहते हैं कि एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में मान्यता जनजातियों को उनकी भाषा और इतिहास के संवर्द्धन के लिए बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगी। इस तरह की मान्यता के अभाव में ही कुछ समुदाय के सदस्यों ने अल्पसंख्यक स्थिति और आरक्षण का लाभ उठाने के लिए हाल ही में ईसाई धर्म अपनाया।

प्रकृति संरक्षण के लिए सरनावाद का महत्व

विशेषज्ञों का तर्क है कि प्रदूषण को दूर करने और वनों के संरक्षण पर वैश्विक फोकस के साथ, मूल समुदायों को सबसे आगे रखा जाना चाहिए। सरनावाद को एक धार्मिक संहिता के रूप में मान्यता देना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस धर्म का सार प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण में निहित है।

प्रगति और चुनौतियां

नवंबर 2020 में, झारखंड सरकार ने सरना धर्म को मान्यता देने और इसे 2021 की जनगणना में एक अलग कोड के रूप में शामिल करने के लिए एक प्रस्ताव पारित करने के लिए एक विशेष विधानसभा सत्र आयोजित किया। हालांकि, केंद्र सरकार ने अभी तक इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया और कार्रवाई नहीं की है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने भी भारत की जनगणना के लिए धर्म कोड के भीतर एक स्वतंत्र श्रेणी के रूप में सरना धर्म की सिफारिश की है।

संथाली भाषा उपेक्षित

एएसए के बोकारो जिले के युवा मोर्चा के कालीचरण किस्कू द मूकनायक को बताते हैं कि झारखंड जो कि 100 फीसदी जनजाति आबादी वाला राज्य है और संथाली भाषा सर्वाधिक बोली जाती है लेकिन इसके बावजूद संथाली को ऑफिशियल भाषा का दर्जा नही दिया गया है जिससे गरीब कम पढ़े लिखे लोगों को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किस्कू बताते हैं कि संथाली को राजकीय कामकाज में शामिल किया जाए तो इस वर्ग को अस्पतालों में इलाज सहजता से सुलभ होगी और इनके सरकारी कार्य भी आसानी से हो सकेंगे जो वतर्मान में नही हो पाते हैं। संताली भाषा एकमात्र राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त बड़ी आदिवासी भाषा है। जबकि महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन,विरोधी दल के नेता बाबूलाल मरांडी सभी संताल हैं और लगभग 100 लाख संताली भाषी होने के बावजूद यह झारखंड की प्रथम राजभाषा नही है।

मारंग बुरु पुनः जनजाति को हस्तांतरण

सात सूत्रीय मांगपत्र में सालखन मुर्मू कहते हैं कि झारखंड के गिरिडीह में पारसनाथ पहाड़ के ऊपर स्थित आदिवासी देवता के रूप में पूजे जाने वाले मारंग बुरु जैन समुदाय के कब्जे में आ गए हैं। मुर्मू सवाल करते हैं कि हेमंत सोरेन ने 5 जनवरी, 2023 को एक पत्र के माध्यम से मारंग बुरु को जैनियों के लिए क्यों दे दिया ? आदिवासियों के लिए मारंग बुरु को तत्काल पुनः प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण मांग है।

कुर्मी समुदाय के एसटी दर्जे की मांग का विरोध

मुर्मू कुर्मी - महतो का एसटी सूची में शामिल करने की मांग का भी घोर विरोध करते हैं। उनका तर्क है कि आसाम -अंडमान की चाय बागानों में लगभग 50 लाख असली झारखंडी आदिवासी संताल मुंडा हो खड़िया भूमिज उरांव पहाड़िया आदि को अब तक एसटी का दर्जा नहीं मिला है। कुर्मी महतो को वोट की लोभ लालच के लिए जेएमएम, टीएमसी, कांग्रेस और बीजू जनता दल एसटी बनाकर क्यों असली आदिवासियों का सर्वनाश करना चाहते हैं।

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जनजाति की मांग है स्वशासन

कालीचरण ने द मूकनायक को बताया कि अलग राज्य के रूप में झारखंड की स्थापना के बाद से, अबुआ दिशोम अबुआ राज (हमारी भूमि हमारा शासन) का आह्वान कई बार दोहराया गया है, लेकिन आदिवासियों के बीच माझी परगना, डायन प्रथा और शराब की लत जैसी निंदनीय परंपराओं और कुरीतियों के कारण समुदाय के लोग खुद को मुक्त करने, उच्च शिक्षा प्राप्त करने और प्रगति करने में सक्षम नहीं हैं।

भारत बंद: रोड जाम, प्रदर्शन और नारेबाजी

आदिवासी सेंगेल अभियान के तत्वावधान में बोकारो जिला अध्यक्ष सुखदेव मुर्मू की नेतृत्व में सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के आह्वान पर सात प्रदेशों झारखंड, बंगाल बिहार बंगाल असम ओडिशा अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में बंद का आयोजन हुआ।

सुखदेव मुर्मू ने कहा कि आजाद भारत में संविधान प्रदत्त सभी अधिकारों के बावजूद आदिवासी गुलाम जैसा क्यों बना हुआ है? क्यों आदिवासी को सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आजादी अबतक नहीं मिली है?

प्रदेश संयोजक करमचंद ने कहा कि शिबू - हेमंत : - झारखंड और बृहद झारखंड के आदिवासियों का दुर्भाग्य है कि शिबू सोरेन- हेमंत सोरेन और उनके सहयोगियों ने अबतक उपरोक्त सभी 5 मुद्दों पर आदिवासी समाज के साथ धोखा किया है। केवल सत्ता सुख की राजनीति किया है अन्यथा अबतक उपरोक्त सभी मामलों का सकारात्मक हल निकल जाता। सेंगेल शिबू- हेमंत के आदिवासी विरोधी रवैया की घोर निंदा करता है।

मौके पर बोकारो ज़ोनल संयोजक जयराम सोरेन ने कहा कि भारत सरकार सरना धर्म कोड के मामले यदि सकारात्मक पहल नहीं करती है, बातचीत नहीं करती है तो आगामी विश्व सरना धर्म कोड जनसभा कोलकाता ब्रिगेड परेड मैदान में 30 जून 2023 को होने के बाद सेंगेल अनिश्चितकालीन रेल/रोड चक्का जाम के लिए बाध्य होंगे।

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भारत बंद में सेंगेल के ‌नेतागण बोकारो जिला संयोजक भीम मुर्मू, बोकारो जिला सेंगेल छात्र मोर्चा अध्यक्ष कोमल किस्कू,सेंगेल युवा मोर्चा चास प्रखंड अध्यक्ष कालीचरण किस्कू,जरीडीह प्रखंड सेंगेल अध्यक्ष संतोष मुर्मू, रामसुंदर बेसरा, पूर्व जिला परिषद गुलाबी पावरिया,अमर सोरेन, फुलेश्वर मुर्मू, करण मुर्मू, सोमरी बेसरा, विमल बेसरा, पार्वती बेसरा, बिरेंद्र हेम्बरम, धनीलाल मुर्मू, गुलांची मुर्मू, रानी मुर्मू, लक्ष्मी मुर्मू, महेश बेसरा, सावित्री मुर्मू, सुशीला हांसदा, अनिता टुडू, लीलावती किस्कू, सीता मुर्मू,रतनी हेम्बरम, गंगा मुनी किस्कू, अम्बोती बेसरा, पार्वती किस्कू, रोशोमुनी मरांडी, शांति मुर्मू, संजोती किस्कू, रामेश मुर्मू, रंजीत मुर्मू, दिलीप किस्कू आदि महिला पुरुष थे।

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