राजस्थान ग्राउंड रिपोर्ट: रैन बसेरे का रहबर आदिवासी युवा बेघरों का मददगार

नगर निगम द्वारा संचालित रैन बसेरे के रख रखाव के साथ पढ़ाई कर संवरना चाहता है भविष्य.
अमराराम गरासिया 2021 से यहां नाइट केयरटेकर के रूप में सेवा दे रहे हैं, और उन्हें 5,500 रुपये का मामूली मासिक वेतन मिलता है।
अमराराम गरासिया 2021 से यहां नाइट केयरटेकर के रूप में सेवा दे रहे हैं, और उन्हें 5,500 रुपये का मामूली मासिक वेतन मिलता है।फोटो- गीता सुनील, द मूकनायक

उदयपुर। नगर निकायों द्वारा संचालित किए जाने वाले आश्रय स्थल यानी रैन बसेरों का नाम लेते ही ठंड में ठिठुरते बेघर जरूरतमंद लोगों की तस्वीर बरबस जेहन में आ जाती है जो रात भर सिर छुपाने के लिए इन रैन बसेरों को अपना ठिकाना बनाते हैं।

लेकिन उदयपुर के चेतक सर्किल स्थित रैन बसेरे की यह कहानी सोने वालों की नहीं, यहां जागने वाले की है। ये दास्तां एक आदिवासी युवा की है, जिसका अपनापन और स्नेह कड़कड़ाती ठंड में यहां आश्रय लेने वालों को रजाई कंबल से भी ज्यादा गर्माहट प्रदान करता है।

द मूकनायक की टीम ने गुरुवार को जब आश्रय स्थल का यकायक विजिट किया तो अपनी टेबल कुर्सी पर बैठे पढ़ाई करते एक युवक को देखकर ऐसा लगा जैसे कोई स्टूडेंट एग्जाम की तैयारी के लिए यहां रुका हो। जब उससे केयर टेकर के लिए पूछा गया तो 20 वर्षीय इस युवा अमराराम गरासिया ने अपना परिचय दिया और बताया कि वही नाइट शिफ्ट का प्रभारी है। तत्परता से उसने यहां कमरों को खोलकर दिखाया जहां एक रूम में करीब दर्जन भर लोग चैन से सो रहे थे। कमरे में हीटर चालू था, सभी साफ सुथरे बिस्तर में रजाई ओढ़ कर गहरी नींद में थे। पास में महिलाओं के लिए बना अलग रूम खाली था जहां तीन बिस्तर लगे हुए थे।

उदयपुर शहर में रैनबसेरा, चेतक सर्कल
उदयपुर शहर में रैनबसेरा, चेतक सर्कलफोटो- गीता सुनील, द मूकनायक

सभी चीजें व्यवस्थित पाने पर जब द मूकनायक ने केयरटेकर अमराराम से जब बात की तो इस होनहार युवा की लगन के साथ ही वर्तमान में आदिवासी समुदाय की नौजवान पीढ़ी के समक्ष व्याप्त रोजगार के संकट, पैसों की तंगी के बीच शिक्षा हासिल करने की चुनौतियों का एक दुखद पक्ष भी उभर कर सामने आया।

आदिवासी बाहुल कोटड़ा ब्लॉक के मालवा का चौरा गांव के निवासी अमराराम ने बताया, "मैं 2021 से यहां रात की पारी में काम करता हूं, शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक ड्यूटी होती है, सुबह की शिफ्ट में शबाना नाम की एक महिला काम संभालती हैं।"

अपनी पढ़ाई को लेकर सवाल के जवाब में अमराराम ने बताया वह स्नातक है, हिंदी साहित्य, भूगोल और इतिहास में डिग्री हासिल की है। "मैं बी.एड करना चाहता था, लेकिन फीस, लगभग 28 हजार रुपये थी जिसका प्रबंध नहीं कर सका। इसलिए, मैंने अब 13,500 की फीस के साथ एसटीसी पाठ्यक्रम में सीकर के एक कॉलेज में दाखिला लिया है।"

अमराराम वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और सरकारी नौकरी की उम्मीद में हैं.
अमराराम वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और सरकारी नौकरी की उम्मीद में हैं.फोटो- गीता सुनील, द मूकनायक

कॉलेज में पढ़ाई शुरू हो चुकी है लेकिन अमराराम कहते हैं, "मुझे क्लासेज अटेंड करने सीकर जाना होगा, लेकिन मैं नहीं जाना चाहता क्योंकि यह नौकरी मैं नहीं छोड़ना चाहता हूं।"

"मुझे केवल 5,500 रुपए मिलते हैं, कुछ भी हाथ में नहीं बचता भले ही कुछ भी नहीं बचाया, कम से कम मुझे अपने पिता से पैसे नहीं मांगने पड़ते हैं, जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है और वह गांव में परिवार गुजारे के लिए छोटा मोटा काम करते हैं। घर में दो छोटे भाई और दो बहनें और हैं."

वह आगे बताते हैं, "कॉलेज वालों ने कहा है अगर दो साल के 30 हजार रुपए डोनेशन दे दूं तो मुझे सीकर आकर क्लास अटेंड करने की जरूरत नहीं होगी, केवल परीक्षा देने जाना होगा। कोशिश कर रहा हूं कहीं से कोई डोनेशन दे सके ताकि मुझे नौकरी नही छोड़नी पड़े। वहां जाऊंगा तो कम से कम 2 हजार का कमरा किराए लेना पड़ेगा और खाने-पीने के पैसे अलग लगेंगे, बिना नौकरी अपना खर्चा नहीं उठा सकूंगा। मैं पढ़ाई करना चाहता हूं, प्रतियोगी परीक्षा पास करके सरकारी नौकरी पाना मेरा लक्ष्य है", धीमी लेकिन दृढ़ आवाज में अमराराम कहते हैं।

उदयपुर शहर के चेतक सर्कल स्थित रेनबसेरा में सोते हुए लोग।
उदयपुर शहर के चेतक सर्कल स्थित रेनबसेरा में सोते हुए लोग।फोटो- गीता सुनील, द मूकनायक

लोग काम करके अपने घर लौटते हैं, लेकिन ये रैन बसेरा अमराराम के लिए उसका ऑफिस और घर दोनों ही हैं, "मैं यहीं रैन बसेरे में रहता हूं, खाना पास के होटल में दो वक्त खाता हूं। एक थाली 60 रुपए की पड़ती है, दो वक्त का खाना खाने में 120 रुपए रोज के लगते हैं। किताबों के लिए पैसा चाहिए होता है इसलिए नाश्ता और चाय कॉफी पर पैसा नही खर्च कर सकता," अमराराम सकुचाते हुए कहते है।

एक आम माध्यम वर्गीय परिवार में जहां बीस इक्कीस साल के कॉलेज जाने वाले युवा बच्चे महीने चार पांच हजार रुपए अपने माता पिता से पॉकेट मनी के रूप में लेते हैं, वहीं अमरराम बिना अवकाश के रोजाना 12 घंटे काम करके महज साढ़े पांच हजार रुपए महीना कमाता है ताकि उसे अपने पिता से खर्चा ना लेना पढ़े। अमराराम ने बताया कि दिल्ली की एक एनजीओ के जरिए वो यहां नौकरी पा सका था।

ड्यूटी के अलावा वह पंद्रह बीस दिनों में एक बार यहां चादर तकिए के गिलाफ आदि की धुलाई भी करता है जिसके कुछ एक्स्ट्रा पैसे मिल जाते हैं। छुट्टी नहीं मिलती तो घर कैसे जाते हैं, इस सवाल पर अमराराम ने बताया कि कोई आवश्यकता पड़ने पर ही घर जा पाता हूं, यहीं मजदूरी करने वाले अपने मित्र विनोद को अपना काम सौंपकर जाता हूं। इसके लिए कोई अलग मानदेय नहीं मिलता लेकिन दोस्ती में यह एडजस्टमेंट कर लेते हैं। विनोद गर्ग राजसमन्द के मोलेला गांव के हैं लेकिन मजदूरी के लिए उदयपुर रहते हैं।

उदयपुर में नगर निगम द्वारा संचालित 7 ऐसे आश्रय स्थल हैं। अमराराम बताते हैं कि रात को 11 बजे तक गेट खुला रहता है लेकिन देर रात को भी कोई दस्तक देता है तो उसे प्रवेश दिया जाता है। नियमानुसार किसी भी आश्रय स्थल में कोई लगातार 7 दिन से ज्यादा रुक नही सकता है, उसे जगह खाली करनी पड़ती है, लेकिन ऐसे अनेक लोग हैं जिनके पास रहने को शहर में कोई जगह नहीं, ऐसे में वे एक सप्ताह में जगह खाली करने के बाद दूसरे रैन बसेरे में ठहर जाते हैं और यही क्रम चलता है। इन आश्रय स्थलों में आने वालों में ग्रामीण इलाकों से शहर में प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए आने वाले अभ्यर्थियों की तादाद भी काफी होती है।

अमराराम कहते हैं रैन बसेरे में किसी भी चीज की जरूरत होने पर वो नगर निगम के परियोजना अधिकारी को सूचित कर देते हैं और आम तौर पर डिमांड जल्दी पूरी कर दी जाती है। कई बार न्यायिक और प्रशासनिक अधिकारी आकस्मिक दौरों पर भी आते हैं और व्यवस्थाओं का जायजा लेते हैं। गर्मियों के मुकाबले सर्दी के मौसम में रैन बसेरे फुल रहते हैं।

इस रैन बसेरे में 18 बिस्तरों की क्षमता है जिसमें 3 महिलाओं के लिए है, लेकिन गुरुवार को 19 लोग यहां आश्रय लिए हुए थे जो ऐसे रैन बसेरों की उपयोगिता को जाहिर करते हैं। रात के गहराने के साथ इस रैन बसेरे के अंदर वातावरण में गर्माहट और घुलती जाती है। यह हीटर से निकलने वाली गर्म हवा की गर्माहट नहीं बल्कि अमराराम सरीखे सेवाभावी युवा की मेहनत और अपनेपन की गर्माहट है जो यहां रहने वालों को अपनों से दूर होने के बावजूद घर जैसे अपनत्व और सुरक्षा का आभास देता है।

अमराराम गरासिया 2021 से यहां नाइट केयरटेकर के रूप में सेवा दे रहे हैं, और उन्हें 5,500 रुपये का मामूली मासिक वेतन मिलता है।
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