
कोलकाता: ये वो लोग हैं जिन्हें अक्सर समाज के हाशिये पर देखा जाता है, लेकिन क्या अब ये सिर्फ 'मतदाता' बनकर रह पाएंगी? मंगलवार को उत्तरी कोलकाता के सोनागाछी में कुछ ऐसा ही मंजर देखने को मिला। चेहरे को दुपट्टे या शॉल से ढके हुए, सेक्स वर्कर्स की लंबी कतारें तीन विशेष कैंपों के बाहर नजर आईं। इन कैंपों को फूलों से सजाया गया था, लेकिन वहां खड़ी महिलाओं के चेहरों पर सजावट नहीं, बल्कि चिंता साफ़ दिखाई दे रही थी। उन्हें डर है कि पश्चिम बंगाल में चल रहे 'स्पेशल इंटेंसिव रिविजन' (SIR) अभियान के दौरान कहीं उनका नाम वोटर लिस्ट से काट न दिया जाए।
इन महिलाओं के लिए वोटर कार्ड महज एक कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि एक कीमती पहचान है। ऐसा इसलिए क्योंकि एशिया के सबसे बड़े रेड-लाइट इलाकों में से एक में रहने वाली इन महिलाओं के पते को सरकारी रिकॉर्ड में शायद ही कभी गंभीरता से लिया जाता है।
18 साल पुरानी जीत पर संकट
करीब 18 साल पहले, 2007 में इन महिलाओं को पहली बार एक स्थानीय को-ऑपरेटिव बैंक के पासबुक के आधार पर मतदाता के रूप में पंजीकृत किया गया था। लेकिन मौजूदा SIR प्रक्रिया में इन दस्तावेजों को मान्यता नहीं मिल रही है। यही कारण है कि कैंपों में अपने मताधिकार को खोने का डर साफ़ महसूस किया जा सकता है।
हालात ये हैं कि 'नेपाली बाड़ी' और 'बांग्लादेशी बाड़ी' जैसे रेड-लाइट इलाकों से कई महिलाएं डर के मारे इलाका छोड़कर जा चुकी हैं। उन्हें यह खौफ है कि उन्हें अलग-थलग कर दिया जाएगा या 'डिपोर्ट' कर दिया जाएगा।
मंगलवार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) मनोज अग्रवाल ने इन विशेष कैंपों का दौरा किया। गौरतलब है कि सत्तारूढ़ टीएमसी द्वारा SIR को लेकर लगाए गए आरोपों के बीच वे बचाव की मुद्रा में हैं। इन कैंपों को आधिकारिक तौर पर "हाशिए पर रहने वाले मतदाताओं" के लिए बनाया गया है। पश्चिम बंगाल की महिला एवं बाल विकास और समाज कल्याण मंत्री शशि पांजा ने भी हालात का जायजा लेने के लिए यहाँ का दौरा किया।
परिवार ने ठुकराया, अब वोट का अधिकार भी छिनने का डर
Indin Express की रिपोर्ट के अनुसार, कैंप की कतार में खड़ी एक 35 वर्षीय महिला ने अपनी बेबसी जाहिर की। SIR को क्लियर करने का एक तरीका है 'पारिवारिक लिंक' स्थापित करना, लेकिन इन महिलाओं के लिए यह दरवाजा बंद है। उसने बताया, "जब मैं 16 साल की थी, तब मुझे तस्करी करके यहाँ लाया गया था। जब मैंने वापस जाने की कोशिश की, तो मेरे परिवार ने मुझे अपनाने से इनकार कर दिया... वे मेरी मदद नहीं करेंगे।"
एक एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे बोर्डिंग हाउस में रहने वाली एक बेटी की माँ होने के नाते, यह महिला अपने वोटिंग अधिकार को खोने से डरी हुई है। हालांकि, उसने कहा, "अधिकारियों ने मुझे भरोसा दिलाया है कि वे कुछ न कुछ करेंगे।"
एक और 30 वर्षीय सेक्स वर्कर ने बताया कि उसका वोटर कार्ड कुछ साल पहले रद्द हो गया था। "मैंने 2016 में वोट दिया था। लेकिन 2021 में मुझे बताया गया कि मेरा कार्ड किसी तरह कैंसिल हो गया है... जैसे ही मैंने सुना कि कैंप खुला है, मैं तुरंत यहाँ आ गई।"
'सोनागाछी लेन की बिल्डिंग नंबर 3' की एक निवासी ने अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए कहा, "मेरी बिल्डिंग की कई लड़कियाँ SIR शुरू होते ही डर के मारे भाग गईं।"
पते का कोई पक्का सबूत नहीं
कदमताला क्लब में लगाए गए कैंप में खड़ी एक 25 वर्षीय युवती फॉर्म में पते (एड्रेस) की जगह को लेकर चिंतित थी। उसने कहा, "हम छोटे कमरों में किराए पर रहते हैं और मकान मालिक के साथ सिर्फ जुबानी समझौता होता है। हम अक्सर जगह बदलते रहते हैं। पते का कोई रिकॉर्ड नहीं है... क्या मेरा वोटर कार्ड कैंसिल हो जाएगा?"
उसने बताया कि इसी डर की वजह से उसने पहले फॉर्म नहीं लिया था। "लेकिन अब मैं यहाँ चीजें साफ करने आई हूँ। यहाँ की ज्यादातर लड़कियों की तरह मेरे पास भी आधार कार्ड, पैन कार्ड और बैंक अकाउंट है।"
'हाउस नंबर 9' में रहने वाली 50 वर्षीय महिला, जो अब सेक्स ट्रेड में नहीं हैं, ने उन दिनों को याद किया जब सोनागाछी की महिलाओं को वोटर कार्ड दिलाने के लिए रैलियां निकाली जाती थीं। उन्होंने कहा, "अब वे कह रहे हैं कि ये सब रद्द हो जाएंगे। मैं बस यह चेक करने आई हूँ कि क्या वाकई ऐसा है।"
कई सवाल करते हुए उन्होंने कहा. "मेरे पास मेरे माता-पिता के दस्तावेज नहीं हैं। मुझे बहुत कम उम्र में यहाँ लाया गया था और तब से मेरा परिवार से कोई संपर्क नहीं है। मेरे माता-पिता मर चुके हैं और मेरे भाई मुझे पसंद नहीं करते। लेकिन मेरे बेटे के पास वोटर कार्ड है। क्या वह भी रद्द हो जाएगा?"
अधिकारियों का आश्वासन और जमीनी हकीकत
CEO मनोज अग्रवाल ने कहा कि वे सभी को शामिल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। "सोनागाछी के 14 बूथों पर लगभग 11,400 मतदाता हैं। लगभग 70% फॉर्म जमा हो चुके हैं। करीब 3,600 लोगों ने कहा है कि उन्हें फॉर्म नहीं मिले। इसीलिए हम यहाँ हैं, उन तक पहुँचने के लिए।"
अग्रवाल ने माना कि समस्याएं हैं, लेकिन उन्होंने समाधान का भरोसा भी दिया। "कई आवेदकों के पास उचित दस्तावेज नहीं हैं, कई को परिवारों से रिकॉर्ड मिलान करने में कठिनाई हो रही है... हमारे पास विशेष अधिकार हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है। ये कैंप इसलिए हैं ताकि नए मतदाता आसानी से आवेदन कर सकें।"
मंत्री शशि पांजा ने अपने दौरे के बाद संवाददाताओं से कहा, "यहाँ की महिलाओं के पास 2002 के SIR दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन आधार कार्ड और बैंक खाते जैसे अन्य दस्तावेज मौजूद हैं। यहाँ की महिलाओं की निजता को ध्यान में रखते हुए ऐसे विशेष कैंपों की जरूरत थी।"
कोलकाता उत्तर के जिला निर्वाचन अधिकारी विजय भारती ने भी कैंपों में हिस्सा लिया और कहा कि वे अनाथों और वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्गों जैसे अन्य "हाशिए के समूहों" तक भी पहुँचेंगे।
संघर्ष का लंबा इतिहास
एक कम्युनिटी बेस्ड ऑर्गेनाइजेशन की एडवोकेसी ऑफिसर महाश्वेता मुखर्जी ने चुनाव आयोग (EC) के सामने सेक्स वर्कर्स की चिंताओं को उठाया था, जिसके बाद ये विशेष कैंप लगाए गए। उन्होंने बताया, "SIR के बाद कम से कम 10% लड़कियाँ इस इलाके से भाग गई हैं।"
सेक्स वर्कर्स को पहली बार वोटर कार्ड 2007 में 'उषा मल्टीपर्पज को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड' की बदौलत मिले थे, जिसकी स्थापना उन्होंने 1995 में की थी। शुरुआत में यह संस्था रेड-लाइट इलाकों में कंडोम और सेनेटरी नैपकिन बांटती थी और आसान ब्याज पर लोन देती थी। बाद में, सोसाइटी द्वारा दिए गए पासबुकों ने सेक्स वर्कर्स को मतदाता बनने में मदद की।
उषा मल्टीपर्पज को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड की मेंटर भारती डे ने वोटिंग अधिकारों के लिए अपने संघर्ष को याद करते हुए कहा: "हमने रैलियां निकालीं और धरने दिए। आखिरकार, चुनाव आयोग ने उनके को-ऑपरेटिव बैंक खातों के विवरण के आधार पर सेक्स वर्कर्स को मतदाता सूची में शामिल करने पर सहमति जताई।"
उषा के मैनेजर और मुख्य कार्यकारी शांतनु चटर्जी ने बताया: "जिस दिन चुनाव आयोग के अधिकारियों ने विवरण जांचने के लिए सोनागाछी और को-ऑपरेटिव बैंक का दौरा किया, 270 सेक्स वर्कर्स को वोटर कार्ड मिले... धीरे-धीरे न केवल सोनागाछी में बल्कि राज्य के अन्य रेड-लाइट क्षेत्रों में भी हजारों महिलाओं को वोटर आईडी कार्ड मिले। उसके बाद आधार और पैन कार्ड भी आए।"
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