
भोपाल। बीजेपी विधायक संजय पाठक के लिए आदिवासी जमीन खरीद का मामला लगातार गहराता जा रहा है। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने उनके खिलाफ की गई शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मध्य प्रदेश के पाँच जिलों जिनमें कटनी, जबलपुर, उमरिया, डिंडौरी और सिवनी के कलेक्टरों को जांच के निर्देश भेजे हैं। आयोग ने स्पष्ट कहा है कि कलेक्टरों को पत्र प्राप्त होने के एक माह के भीतर पूरी रिपोर्ट आयोग के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी, अन्यथा आयोग संविधान के अनुच्छेद 338(क) के तहत सिविल न्यायालय जैसी शक्तियों का उपयोग करते हुए कलेक्टरों या उनके प्रतिनिधियों को समन जारी कर तलब कर सकता है। यह कार्रवाई बताती है कि आयोग इस प्रकरण को केवल एक शिकायत के रूप में नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों और संवैधानिक सुरक्षा के उल्लंघन के रूप में देख रहा है।
कटनी निवासी दिव्यांशु मिश्रा अंशु की शिकायत के आधार पर आयोग ने यह जांच शुरू कराई है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि संजय पाठक ने अपने अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों- रघुराज सिंह गौड़, नत्थू कोल, राकेश सिंह गौड़ और प्रहलाद कोल- के नाम पर डिंडौरी जिले के बैगा बहुल क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी है।
शिकायतकर्ता के अनुसार बैगा आदिवासियों को धोखे में रखकर लगभग 795 एकड़ जमीन खरीदी गई और इस भूमि का उपयोग आगे चलकर बॉक्साइट खदानों के लिए किया जाना प्रस्तावित है। शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि इन कर्मचारियों के खातों में हुए लेन-देन और वित्तीय गतिविधियों की भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि इतनी बड़ी मात्रा में भूमि खरीद उनकी वास्तविक आर्थिक क्षमता से मेल नहीं खाती। यह संदेह पैदा करता है कि जमीन वास्तव में बेनामी तरीके से खरीदी गई हो सकती है।
आयोग को सितंबर में की गई इस शिकायत पर केवल डिंडौरी कलेक्टर ने ही अपनी रिपोर्ट भेजी है, जबकि सिवनी, जबलपुर, कटनी और उमरिया के कलेक्टरों ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। आयोग ने इसे अत्यंत गंभीर माना है और चारों जिलों के कलेक्टरों को अंतिम चेतावनी जारी की है। आयोग की इस कड़ी प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि आदिवासी जमीन से संबंधित मामलों में लापरवाही को वह किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं करेगा, खासकर तब जब मामला बैगा जैसे विशेष पिछड़ी जनजाति की जमीन से जुड़ा हो, जिनकी सुरक्षा के लिए कानून में विशेष प्रावधान मौजूद हैं।
इस प्रकरण को लेकर राजनीतिक हलचल भी तेज है। कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा पहले ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को इस मामले की लिखित शिकायत कर चुके हैं। उनकी शिकायत के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय ने जनजातीय कार्य विभाग को जांच के निर्देश दिए, जिसके बाद विभाग ने डिंडौरी कलेक्टर को पत्र जारी कर आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा है। डॉ. अलावा ने अपनी शिकायत में उल्लेख किया है कि डिंडौरी जिले के बजाग तहसील में बैगा बहुल क्षेत्र की लगभग 1200 एकड़ जमीन बेनामी तरीके से गरीब आदिवासियों के नाम पर खरीदी गई है। यह आरोप न केवल भूमि अधिग्रहण के कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि विशेष जनजातियों के संरक्षण को लेकर बनाए गए संवैधानिक दायित्वों की भी अवहेलना है।
मामले की जड़ में आदिवासी जमीन के संरक्षण से जुड़े वे कानून हैं, जो बैगा जैसी जनजातियों की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं। इन कानूनों के तहत ऐसे क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों को जमीन खरीदने पर प्रतिबंध है, और किसी भी प्रकार का हस्तांतरण अत्यंत सख्त प्रक्रिया के बाद ही संभव होता है। लेकिन शिकायत में जिन तरीकों का उल्लेख है, वे संकेत देते हैं कि कानून को चकमा देकर बड़ी मात्रा में भूमि का हस्तांतरण किया गया हो सकता है। स्थानीय समुदायों के लिए यह जमीन न केवल आजीविका का आधार है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान से भी गहराई से जुड़ी है, इसलिए इस प्रकार के विवाद सामाजिक तनाव को भी जन्म दे सकते हैं।
शिकायतकर्ता दिव्यांशु मिश्रा अंशु ने बताया कि आदिवासी जमीन खरीद का यह मामला किसी सामान्य लेन-देन का नहीं, बल्कि बैगा समुदाय के साथ हुई सुनियोजित धोखाधड़ी का है। उन्होंने कहा कि उन्होंने 15 सितंबर को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें विस्तार से बताया गया है कि किस तरह संजय पाठक ने अपने अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों के नाम पर डिंडौरी जिले के बैगा बहुल इलाकों में करीब 795 एकड़ जमीन खरीदवाई है। उनके अनुसार यह जमीन असल में गरीब बैगा परिवारों से कम दाम पर छलपूर्वक ली गई है और इसका उपयोग आगे चलकर बॉक्साइट खदानों में किया जाने की तैयारी है।
दिव्यांशु का कहना है कि उनके पास वे सभी दस्तावेज, रजिस्ट्री की प्रतियां और जमीन से जुड़े प्रमाण हैं जिनसे साबित होता है कि ये सौदे सीधे-सीधे बेनामी खरीद का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि आयोग के निर्देश के बाद केवल डिंडौरी कलेक्टर ने ही जांच रिपोर्ट भेजी है, जबकि सिवनी, जबलपुर, कटनी और उमरिया के कलेक्टरों ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया। यह लापरवाही न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासी समुदाय की आवाज़ को अनसुना करने जैसा है। दिव्यांशु ने कहा कि आयोग द्वारा चारों कलेक्टरों को अंतिम चेतावनी देना इस बात का संकेत है कि मामला बेहद गंभीर है। उन्होंने भरोसा जताया कि यदि निष्पक्ष जांच हो जाए तो पूरा बेनामी नेटवर्क और जमीन हस्तांतरण की प्रक्रिया साफ-साफ उजागर हो जाएगी।
यह प्रकरण मूल रूप से आदिवासी जमीन की कथित बेनामी खरीद से जुड़ा है, जिसमें आरोप है कि बीजेपी विधायक संजय पाठक ने अपने ही अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों के नाम पर डिंडौरी जिले के बैगा आदिवासियों से लगभग 795 एकड़ जमीन खरीदवाई है। शिकायतकर्ता दिव्यांशु मिश्रा अंशु का कहना है कि बैगा समुदाय को धोखे में रखकर जमीन हस्तांतरित कराई गई, जबकि कानून ऐसे क्षेत्रों में गैर-आदिवासियों को जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देता। आरोप यह भी है कि इन जमीनों का उपयोग आगे चलकर बॉक्साइट खनन के लिए किया जाना है और पूरी प्रक्रिया बेनामी लेन-देन का हिस्सा हो सकती है।
शिकायत मिलने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कटनी, जबलपुर, उमरिया, डिंडौरी और सिवनी के कलेक्टरों को जांच का आदेश दिया है और एक माह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। केवल डिंडौरी कलेक्टर ने जवाब भेजा है, जबकि बाकी चार जिलों ने कोई जानकारी नहीं दी, जिसके बाद आयोग ने उन्हें अंतिम चेतावनी जारी की है। इधर कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने भी मामले को मुख्यमंत्री तक पहुंचाया है, जिसके बाद जनजातीय कार्य विभाग ने उच्च स्तरीय जांच के निर्देश दिए हैं। पूरा मामला अब प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर गंभीर रूप ले चुका है।
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