
आंध्र प्रदेश: राज्य में दलित परिवारों के खिलाफ हो रहे अपराधों और कानूनी प्रक्रियाओं में देरी को लेकर दलित बहुजन श्रमिक यूनियन ने चिंता जाहिर की है। यूनियन के प्रदेश महासचिव पी. चिट्टीबाबू ने शुक्रवार (21 नवंबर) को राज्य सरकार से अपील की है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को सख्ती से लागू किया जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि पीड़ितों को समय पर न्याय दिलाने के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
सिटीजन्स ऑडिट रिपोर्ट का खुलासा
एक मीडिया कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए पी. चिट्टीबाबू ने 'सिटीजन्स ऑडिट एनुअल रिपोर्ट' जारी की। इस रिपोर्ट में राज्य के भीतर साल 2019 से 2024 के बीच अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के लोगों के खिलाफ हुए अत्याचारों का विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।
आंकड़ों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा दलित परिवारों के खिलाफ अपराध रोकने की तमाम पहलों के बावजूद, जमीनी हकीकत चिंताजनक है। राज्य में हर साल आधिकारिक तौर पर लगभग 2,800 अत्याचार के मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
त्वरित न्याय के लिए सुझाव
मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए श्री चिट्टीबाबू ने सरकार के सामने कुछ महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखे हैं:
वरिष्ठ अधिकारियों की तैनाती: उन्होंने सुझाव दिया कि वरिष्ठ आईपीएस (IPS) अधिकारियों को विशेष अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाए।
निगरानी समितियां: राजस्व उप-मंडलों (Revenue sub-divisions) के स्तर पर निगरानी समितियों का गठन किया जाए ताकि न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता और गति बनी रहे।
सजा की कम दर पर सवाल
इसके अलावा, उन्होंने सरकार से लोक अभियोजकों (Public Prosecutors) के कामकाज और प्रदर्शन का आकलन करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में सजा की दर (conviction ratio) काफी कम है, जो कि चिंता का विषय है और इस दिशा में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.