जोरहाट: असम के जोरहाट में शुक्रवार (21 नवंबर) का दिन एक बड़े जन-आंदोलन का गवाह बना। आदिवासी समुदायों के लिए संवैधानिक सुरक्षा की मांग को लेकर संताल समुदाय के हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। यह प्रदर्शन केवल भीड़ नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक पहचान और अधिकारों की हुंकार थी। प्रदर्शनकारियों ने साफ शब्दों में भाजपा नीत सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो 2026 के विधानसभा चुनावों में वे सत्ताधारी पार्टी का पूर्ण बहिष्कार करेंगे।
सांस्कृतिक विरोध और आक्रोश का संगम
शुक्रवार को आयोजित यह रैली पारंपरिक विरोध प्रदर्शनों से काफी अलग थी। इसमें आक्रोश के साथ-साथ संस्कृति की झलक भी देखने को मिली। प्रदर्शनकारी अपने हाथों में पारंपरिक वाद्ययंत्र, बैनर और तख्तियां थामे हुए थे। लोकगीतों और पारंपरिक संगीत की गूंज के बीच लगाए गए जोरदार नारों ने इस रैली को प्रतिरोध और अस्मिता के प्रतीक में बदल दिया।
जोरहाट की सड़कों पर अनुशासित मार्च
संताल समुदाय का यह विशाल जुलूस जोरहाट स्टेडियम से शुरू हुआ। एक अनुशासित कतार में चलते हुए प्रदर्शनकारी बोरपात्रा अली, के.बी. रोड और बाल्य भवन के सामने से गुजरे। शहर के मुख्य मार्गों से होता हुआ यह मार्च अंत में जोरहाट जिला आयुक्त (District Commissioner) के कार्यालय पर जाकर समाप्त हुआ।
इस विशाल रैली का आयोजन ‘ऑल संताल स्टूडेंट्स एसोसिएशन’ (All Santal Students’ Association) की जोरहाट जिला समिति द्वारा किया गया था, जिसे ‘ऑल संताल ऑर्गनाइजेशन’ और समुदाय के आम सदस्यों का भी भरपूर समर्थन मिला।
मुख्यमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन: ये हैं प्रमुख मांगें
जिला प्रशासन कार्यालय पहुंचने के बाद, प्रदर्शनकारियों ने जिला आयुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में संताल समुदाय ने अपनी लंबे समय से चली आ रही शिकायतों और मांगों को विस्तार से रखा है। उनकी प्रमुख मांगें इस प्रकार हैं:
एसटी का दर्जा: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत संताल समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिया जाए।
भूमि अधिकार: असम में रहने वाले पहाड़ी संताल लोगों के लिए भूमि अधिकार सुनिश्चित किए जाएं।
जाति प्रमाण पत्र: बिना किसी देरी के जाति प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया सरल की जाए।
शांति समझौता: त्रिपक्षीय आदिवासी शांति समझौता 2022 (Tripartite Tribal Peace Agreement 2022) की सभी धाराओं को तत्काल लागू किया जाए।
शिक्षा और पहचान: स्कूलों में संताली भाषा पढ़ाने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति हो और सरकारी रिकॉर्ड में उन्हें औपचारिक रूप से 'संताल' के रूप में मान्यता मिले।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राज्य में उनकी ऐतिहासिक उपस्थिति के बावजूद, इन मांगों को पूरा करने में हो रही लगातार देरी ने उन्हें हाशिए पर ढकेल दिया है, जिससे समुदाय में गहरी नाराजगी है।
"अस्तित्व की लड़ाई है, अब और इंतजार नहीं"
assamtribune.com की रिपोर्ट के अनुसार, रैली को संबोधित करते हुए संताल स्टूडेंट्स यूनियन के एक प्रतिनिधि ने सरकार को कड़े शब्दों में संदेश दिया। उन्होंने कहा, "हम यह रैली सम्मान और संवैधानिक सुरक्षा की मांग के लिए कर रहे हैं। अगर भाजपा सरकार चुनाव से पहले संताल लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने में विफल रहती है, तो हमारे पास 2026 में उनका बहिष्कार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। हमारी पहचान और अधिकारों को अब और टाला नहीं जा सकता।"
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस आंदोलन का उद्देश्य अशांति फैलाना नहीं, बल्कि समुदाय के लिए गरिमा और कानूनी मान्यता हासिल करना है।
प्रतिनिधि ने आगे कहा, "यह हमारे अस्तित्व और हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की लड़ाई है। असम सरकार को संताल लोगों को स्वीकार करना होगा और हमें हमारे वाजिब हक देने होंगे। जब तक न्याय नहीं मिलता, हमारा शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रहेगा।"
लोकगीतों के जरिए न्याय की गुहार
इस विरोध प्रदर्शन की सबसे खास बात इसका सांस्कृतिक स्वरूप था। गीतों और पारंपरिक वाद्ययंत्रों का उपयोग केवल विरासत के प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि न्याय के लिए एक सामूहिक पुकार के रूप में किया गया।
समुदाय के नेताओं ने अंत में यह भी कहा कि यदि सरकार का रवैया उदासीन रहा, तो उनका आंदोलन और तेज होगा। साथ ही, उन्होंने अन्य आदिवासी समूहों से भी एकजुटता दिखाने की अपील की है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.