
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने देश के श्रम सुधारों की दिशा में शुक्रवार को एक ऐतिहासिक और बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने पांच साल पहले बनाए गए चार नए लेबर कोड (Labour Codes) को लागू करने की घोषणा कर दी है। यह फैसला देश में 29 पुराने और जटिल श्रम कानूनों की जगह लेगा।
सरकार का यह निर्णय राजनीतिक रूप से काफी अहम समय पर आया है। हाल ही में बिहार, महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में एनडीए (NDA) को मिली शानदार चुनावी जीत के बाद सरकार ने इन सुधारों को लागू करने का रास्ता साफ किया है।
कर्मचारियों और गिग वर्कर्स के लिए क्या बदलेगा?
दशकों बाद हो रहे इस सबसे बड़े बदलाव का मुख्य उद्देश्य देश के वर्कफोर्स, विशेषकर महिलाओं की रोजगार क्षमता को बढ़ाना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। नए नियमों के तहत:
गिग वर्कर्स (Gig Workers): अब उन्हें भी सोशल सिक्योरिटी (सामाजिक सुरक्षा) के दायरे में लाया जाएगा।
वेतन और सुरक्षा: कर्मचारियों को समय पर वेतन मिलने और न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wage) की गारंटी सुनिश्चित की जाएगी।
ग्रेच्युटी (Gratuity): एक बड़ा बदलाव यह है कि अब फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को ग्रेच्युटी का हकदार बनने के लिए 5 साल का इंतजार नहीं करना होगा, वे एक साल की सेवा के बाद ही इसके पात्र होंगे।
स्वास्थ्य जांच: कई सेक्टरों में 40 वर्ष से अधिक आयु के कर्मचारियों के लिए वार्षिक हेल्थ चेकअप अनिवार्य किया जाएगा। सभी को पीएफ (PF), ईएसआईसी (ESIC) और बीमा का लाभ मिलेगा।
व्यापार और निवेश को मिलेगा बढ़ावा
यह बदलाव ऐसे समय में किया गया है जब अर्थव्यवस्था वैश्विक चुनौतियों का सामना कर रही है। पुराने और पेचीदा श्रम कानूनों को निवेशक अक्सर भारत में फैक्ट्री लगाने की राह में एक बड़ा रोड़ा मानते थे। इसी वजह से कई कंपनियां वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों का रुख कर रही थीं। नए कानून व्यवसायों को लचीलापन और निश्चितता प्रदान करेंगे, जिससे भारत में निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
पीएम मोदी ने बताया 'ऐतिहासिक सुधार'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन सुधारों को "आजादी के बाद का सबसे व्यापक और प्रगतिशील श्रम-उन्मुख सुधार" करार दिया है। अधिकारियों के मुताबिक, वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा से जुड़े इन चार कोड्स के नियमों को 45 दिनों के भीतर नोटिफाई कर दिया जाएगा, ताकि इन्हें जल्द से जल्द जमीन पर उतारा जा सके।
पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्य तैयार
हालांकि केंद्र ने ये कानून कोविड संकट के दौरान बनाए थे, लेकिन विपक्षी शासित राज्यों की हिचकिचाहट के कारण इसमें देरी हुई। अब दो दर्जन से अधिक राज्यों ने इन बदलावों के साथ आगे बढ़ने की इच्छा जताई है। अधिकारियों ने बताया कि पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने इन चार कोड्स के प्रावधानों पर अपने ड्राफ्ट नियम प्रकाशित कर दिए हैं।
चूंकि 'श्रम' (Labour) संविधान की समवर्ती सूची (Concurrent List) का विषय है, इसलिए नियम यह है कि जो राज्य अपने नियम नोटिफाई करने में विफल रहेंगे, उन्हें केंद्र द्वारा तैयार किए गए नियमों का ही पालन करना होगा।
सैलरी स्ट्रक्चर में होगा बदलाव
नए कोड्स के तहत कर्मचारियों के वेतन पैकेज में भत्तों (Allowances) की हिस्सेदारी को सीमित (Cap) किया गया है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियां वेतन को इस तरह से डिजाइन न करें जिससे कर्मचारी की सोशल सिक्योरिटी में कम योगदान जाए। इसके अलावा, श्रमिकों के लिए एक 'नेशनल फ्लोर वेज' तय होगा, हालांकि राज्य चाहें तो इससे अधिक वेतन भी निर्धारित कर सकते हैं।
आईएलओ (ILO) के महानिदेशक गिल्बर्ट एफ. होंगबो ने भी भारत के इस कदम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "हम भारत में आज घोषित किए गए नए श्रम कोड के घटनाक्रम पर दिलचस्पी के साथ नजर रख रहे हैं।"
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