
हैदराबाद/नई दिल्ली: शिक्षा और समाज सेवा की आड़ में एक बड़े वित्तीय घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हैदराबाद स्थित 'ऑपरेशन मोबिलाइजेशन' (ओएम इंडिया) नामक चैरिटी समूह के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। जांच में सामने आया है कि इस समूह ने दलित छात्राओं को 'जोगिनी' (देवदासी प्रथा की शिकार) बताकर विदेशों से भारी धन जुटाया और करीब 296 करोड़ रुपये का गबन किया।
इस फर्जीवाड़े में संस्था ने न केवल विदेशी डोनेशन दाताओं को गुमराह किया, बल्कि छात्रों के अभिभावकों और सरकार को भी चूना लगाया।
क्या है पूरा मामला?
ईडी की जांच में खुलासा हुआ है कि ओएम इंडिया द्वारा संचालित 'गुड शेफर्ड स्कूलों' में पढ़ने वाले सामान्य बच्चों की प्रोफाइल का इस्तेमाल गलत तरीके से किया गया। विदेशी दाताओं से ज्यादा फंड हासिल करने के लिए स्कूल की छात्राओं को 'जोगिनी' बताया गया, जबकि हकीकत में उन बच्चियों का इस प्रथा से कोई लेना-देना नहीं था और न ही उनके लिए कोई पुनर्वास कार्यक्रम चलाया जा रहा था।
जांच में पाया गया कि सामान्य छात्र के नाम पर विदेश से 20-28 डॉलर मिलते थे, जबकि 'जोगिनी' के नाम पर यह राशि 60-68 डॉलर प्रति माह थी। इसी लालच में संस्था ने झूठी कहानियां गढ़कर विदेशी मुद्रा हासिल की।
फीस को बताया 'दान', सरकारी खजाने में भी सेंध
घोटाले की परतें यहीं नहीं रुकीं। ओएम इंडिया ने छात्रों के डेटा के साथ बड़े पैमाने पर हेरफेर किया। एक ही छात्र को कई आईडी कोड दिए गए और अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग पहचान बताकर फंड लिया गया। संस्था ने छात्रों के अभिभावकों से ट्यूशन, बस और किताबों की पूरी फीस वसूली, लेकिन कागजों में इसे 'स्थानीय दान' (Local Donation) के रूप में दिखाया।
स्कूलों ने गरीब छात्रों के नाम पर सरकार से आरटीई (RTE) और छात्रवृत्ति का पैसा भी लिया, लेकिन इसका लाभ छात्रों को नहीं दिया गया। जांच के अनुसार, सिर्फ फीस और सरकारी सब्सिडी के हेरफेर से ही संस्था ने 15.37 करोड़ रुपये अवैध रूप से कमाए।
ईडी की कार्रवाई: संपत्तियां कुर्क
सीआईडी और ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज एफआईआर के आधार पर ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत जांच शुरू की थी। अब तक की कार्रवाई में ईडी ने संस्था की 12 अचल संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क किया है। कागजों पर इन संपत्तियों की कीमत 3.58 करोड़ रुपये है, लेकिन इनका बाजार मूल्य करीब 15 करोड़ रुपये बताया जा रहा है।
लक्जरी जीवन और विदेश यात्राओं पर खर्च
जांच में मुख्य आरोपी के तौर पर डॉ. जोसेफ डिसूजा और उनके बेटे जोश लॉरेंस डिसूजा का नाम सामने आया है। जोसेफ डिसूजा ने खुद को आर्कबिशप घोषित कर रखा था और पूरे नेटवर्क को नियंत्रित करते थे, जबकि बेटा वित्तीय कामकाज संभालता था।
आरोप है कि गबन की गई राशि का उपयोग चर्च से संबंधित गतिविधियों और संपत्तियों को खरीदने में किया गया। आरोपियों ने 'ऑपरेशन मर्सी इंडिया फाउंडेशन' के फंड से महंगी विदेशी यात्राएं (बिजनेस क्लास) कीं। फंड को फर्जी खर्चों के जरिए डायवर्ट कर निजी संपत्तियां बनाई गईं।
प्रतिबंध के बावजूद विदेशी फंडिंग का खेल
गृह मंत्रालय ने नियमों के उल्लंघन के चलते इस समूह के कई एफसीआरए (FCRA) लाइसेंस रद्द कर दिए थे और खाते फ्रीज कर दिए थे। इसके बावजूद, आरोपियों ने 'ओएम बुक्स फाउंडेशन' के जरिए किताबों के व्यापारिक चालान (Commercial Invoices) की आड़ में विदेशी धन मंगवाना जारी रखा। फिलहाल ईडी ने आरोपियों के ठिकानों से कई डिजिटल सबूत और दस्तावेज जब्त किए हैं और जांच जारी है।
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.