नई दिल्ली: हरियाणा कैडर के एक वरिष्ठ दलित आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या ने प्रशासनिक और पुलिस महकमे को झकझोर कर रख दिया है। इस दुखद घटना के चार दिन बाद, 2008 बैच की आईएएस अधिकारी सोनल गोयल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर एक मार्मिक और तीखी पोस्ट लिखकर उस दर्द और दबाव को उजागर किया है, जो अक्सर व्यवस्था के भीतर दफन हो जाता है। उनकी इस पोस्ट ने अधिकारियों के मानसिक स्वास्थ्य, संस्थागत कार्य-संस्कृति और कथित जातिगत भेदभाव पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है।
7 अक्टूबर को, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार ने चंडीगढ़ के सेक्टर-11 स्थित अपने सरकारी आवास पर अपनी सर्विस रिवॉल्वर से खुद को गोली मारकर अपनी जान दे दी। उनके पीछे मिले एक सुसाइड नोट ने पूरे सिस्टम पर गंभीर आरोप लगाए हैं। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, कुमार ने अपने नोट में लिखा, "अब कोई ऑप्शन नहीं, मैं पिछले पांच साल से..."। उन्होंने कथित तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा गंभीर जातिगत उत्पीड़न और मानसिक प्रताड़ना का उल्लेख किया, जिससे तंग आकर उन्हें यह कड़ा कदम उठाना पड़ा।
शनिवार, 11 अक्टूबर 2025 को शाम 5:30 बजे, आईएएस अधिकारी सोनल गोयल ने इस घटना पर अपनी पीड़ा और आक्रोश व्यक्त करते हुए एक पोस्ट किया, जो तेजी से वायरल हो गया। उन्होंने प्रसिद्ध शायर जौन एलिया के शेर से अपनी बात शुरू की:
"रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई, तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई"
गोयल ने लिखा, "आपको इस तरह नहीं जाना चाहिए था, सर। आपको क्या किसी को भी इस तरह नहीं जाना चाहिए।"
उन्होंने कुमार को एक "सक्षम, प्रतिभाशाली और प्रतिबद्ध वरिष्ठ IPS अधिकारी" बताते हुए सवाल उठाया कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण साल देश सेवा में लगा दिए, उसका इस तरह चले जाना हमारे समाज और सिस्टम, दोनों के लिए एक बड़ा प्रश्न है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह केवल औपचारिक सहानुभूति का नहीं, बल्कि वास्तविक आत्मनिरीक्षण (Real Introspection) का समय है।
'सिस्टम' पर तीखा प्रहार
अपनी पोस्ट में सोनल गोयल ने व्यवस्था की खामियों पर सीधे तौर पर उंगली उठाई। उन्होंने पूछा:
"हमने अपने इन्स्टिट्यूशंस के अंदर ये कैसा माहौल बना लिया है? आख़िर यह कौन सा सिस्टम है जहां उस सिस्टम के ही एक महत्वपूर्ण हिस्से को… इतना अनदेखा, अनसुना किया जाता है कि वो भीतर तक टूट जाता है और हारकर ऐसा एक्स्ट्रीम स्टेप उठाने पर मजबूर हो जाता है।"
उन्होंने आगे अंग्रेजी में लिखा, "Frankly, no one should ever be pushed to that edge- to feel unseen, unheard, or broken inside a system they once believed in." (साफ शब्दों में, किसी को भी कभी उस हद तक नहीं धकेला जाना चाहिए- जहां वे उस सिस्टम के भीतर खुद को अनदेखा, अनसुना या टूटा हुआ महसूस करें, जिस पर उन्होंने कभी विश्वास किया था।)
अधिकारियों के मानवीय पक्ष की अपील
गोयल ने याद दिलाया कि एक अधिकारी के रूप में देश की सेवा करने वाला व्यक्ति आखिरकार एक जीता-जागता इंसान ही है। उन्होंने ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति और परिवार को शक्ति देने की प्रार्थना की। साथ ही, उन्होंने ऑफिसर्स फ्रेटरनिटी से सामूहिक रूप से सिस्टम में उन बदलावों को लाने का साहस दिखाने की अपील की जिनकी सख्त जरूरत है, ताकि भविष्य में कोई और सहकर्मी इस तरह दुनिया को अलविदा न कह दे।
अपनी पोस्ट का अंत उन्होंने शायर नवाज़ देवबंदी के एक बेहद प्रासंगिक और चेतावनी भरे शेर से किया, जो मौन रहने के खतरों को उजागर करता है:
"जलते घर को देखने वालों फूस का छप्पर आपका है आपके पीछे तेज़ हवा है आगे मुकद्दर आपका हैउस के क़त्ल पे मैं भी चुप था मेरा नम्बर अब आया मेरे क़त्ल पे आप भी चुप है अगला नम्बर आपका है."
वाई. पूरन कुमार की दुखद मृत्यु और उस पर सोनल गोयल जैसी वरिष्ठ अधिकारी की प्रतिक्रिया ने एक असहज लेकिन आवश्यक संवाद को जन्म दिया है। यह घटना इस बात की गंभीर पड़ताल की मांग करती है कि क्या भारत की प्रतिष्ठित सिविल सेवाओं के भीतर का माहौल वास्तव में इतना विषाक्त हो गया है, जहां एक अधिकारी को न्याय और सम्मान के बजाय घुटन और अंत में मृत्यु को गले लगाना पड़ता है।
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