इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: तलाक लिए बिना 'लिव-इन' में रहना गैरकानूनी, सुरक्षा मांगने वाली याचिका खारिज

जस्टिस विवेक कुमार सिंह की सख्त टिप्पणी: 'निजी स्वतंत्रता असीमित नहीं, पहले जीवनसाथी के अधिकारों का हनन कर तीसरे के साथ संबंध बनाना गैरकानूनी
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Allahabad HC का बड़ा फैसला: बिना तलाक 'लिव-इन' में रहना गैरकानूनी, खारिज की अर्जी(Ai Image)
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाज और रिश्तों को लेकर एक बेहद अहम और कड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी विवाहित व्यक्ति अपने पहले जीवनसाथी (पति या पत्नी) से कानूनी रूप से तलाक लिए बिना किसी तीसरे व्यक्ति के साथ 'लिव-इन रिलेशनशिप' में नहीं रह सकता। इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने उस याचिका को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें एक प्रेमी जोड़े ने पुलिस सुरक्षा की मांग की थी।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 16 दिसंबर को न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की पीठ के समक्ष आया। याचिका दायर करने वाले जोड़े ने अदालत से गुहार लगाई थी कि वे दोनों वयस्क (Adults) हैं और अपनी मर्जी से पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें प्रतिवादियों से अपनी जान का खतरा है, इसलिए उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए।

सरकारी वकील की दलील

इस याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के वकील ने अदालत के सामने महत्वपूर्ण तथ्य रखे। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता का यह कदम पूरी तरह से गैरकानूनी है, क्योंकि महिला पहले से ही दिनेश कुमार नामक व्यक्ति के साथ विवाहित है। उसने अभी तक सक्षम न्यायालय से तलाक की डिक्री प्राप्त नहीं की है। ऐसी स्थिति में, बिना तलाक लिए किसी और के साथ लिव-इन में रहना विधि सम्मत नहीं है।

'निजी स्वतंत्रता असीमित नहीं हो सकती'

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने जो टिप्पणी की, वह बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि निस्संदेह किसी को भी दो वयस्कों की निजी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, यहाँ तक कि माता-पिता भी उनके रिश्ते में दखल नहीं दे सकते। लेकिन, स्वतंत्रता का अधिकार या निजी जीवन का अधिकार 'असीमित' (Absolute) नहीं है। यह कुछ कानूनी बंधनों और शर्तों के अधीन है।

अदालत ने एक बहुत ही गहरी बात कही, "एक व्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं खत्म हो जाती है, जहाँ से दूसरे व्यक्ति के कानूनी अधिकार शुरू होते हैं।"

फैसला

कोर्ट ने अपने फैसले में साफ शब्दों में कहा कि यदि याचिकाकर्ता पहले से शादीशुदा हैं और उनका जीवनसाथी जीवित है, तो उन्हें कानूनी तौर पर किसी तीसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जब तक कि वे अपने पूर्व जीवनसाथी से तलाक न ले लें।

इस आधार पर हाईकोर्ट ने यह कहते हुए सुरक्षा याचिका को खारिज कर दिया कि यह संबंध वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

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