
प्रयागराज: शादी का झूठा वादा कर महिलाओं का यौन शोषण करना और बाद में मुकर जाना, समाज में एक चिंताजनक प्रवृत्ति बनती जा रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बढ़ते हुए चलन पर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि इसे सख्ती से रोके जाने की जरूरत है। इसी आधार पर कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 (धोखे से यौन संबंध बनाना) और अन्य धाराओं के तहत आरोपी प्रशांत पाल की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है।
'शुरू से ही थी धोखे की मंशा'
न्यायमूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की एकल पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि आरोपी का इरादा शुरुआत से ही कपटपूर्ण था। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आरोपी की मंशा पीड़िता से शादी करने की कभी थी ही नहीं, बल्कि वह केवल अपनी हवस पूरी करना चाहता था।
अदालत ने इस अपराध की प्रकृति को "समाज के विरुद्ध गंभीर अपराध" की श्रेणी में रखा। बचाव पक्ष की ओर से आपसी सहमति (Consensual relationship) की दलील दी गई थी, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। न्यायमूर्ति ने स्पष्ट किया कि आरोपी ने शादी का प्रलोभन देकर महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए। शादी के बहाने महिला का शोषण करना और अंत में मना कर देना एक ऐसी बुराई है जिसे पनपने से पहले ही कुचलना आवश्यक है।
कोर्ट ने कहा, "यह समाज के खिलाफ एक गंभीर अपराध है, इसलिए आवेदक किसी भी उदारता का हकदार नहीं है।"
क्या है पूरा मामला?
केस के तथ्यों के मुताबिक, आरोपी और पीड़िता के बीच पिछले पांच साल से संबंध थे। आरोप है कि प्रशांत पाल ने शादी का झूठा वादा कर पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए और उसे मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। पांच साल के रिश्ते के बाद, आरोपी ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया और दूसरी जगह अपनी सगाई कर ली। इसके बाद पीड़िता ने औरैया में एफआईआर दर्ज कराई।
गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी। कोर्ट ने पाया कि भले ही पीड़िता वयस्क है और अपने अच्छे-बुरे को समझती है, लेकिन उसने आरोपी पर पूरा भरोसा किया था, जिसे आरोपी ने तोड़ा।
दलीलों में क्या कहा गया?
सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि आरोप निराधार और अस्पष्ट हैं। उन्होंने कहा कि दोनों वयस्क हैं और 2020 से लिव-इन रिलेशनशिप में थे, लेकिन आरोपी ने कभी शादी का वादा नहीं किया था। दलील दी गई कि लंबे रिश्ते के बाद शादी से मना करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता।
दूसरी ओर, सरकारी वकील ने इसका पुरजोर विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि आरोपी ने शादी के झूठे बहाने पर पांच साल तक यौन संबंध बनाए। मेडिकल रिपोर्ट में भी यौन उत्पीड़न की पुष्टि हुई है। इसके अलावा, यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी अश्लील वीडियो के जरिए पीड़िता को धमका रहा था।
4 नवंबर को सुनाया गया फैसला
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए स्थिति स्पष्ट की। कोर्ट ने कहा कि अगर वादा करते समय ही वादे को पूरा करने की मंशा न हो, तो उसे 'झूठा वादा' माना जाएगा। यदि इरादा महिला को धोखे में रखकर यौन संबंध बनाने का था, तो यह 'तथ्यों की गलतफहमी' (Misconception of fact) है, जो महिला की सहमति को शून्य कर देती है।
मौजूदा मामले के तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि आरोपी का आचरण झूठे वादे के दायरे में आता है। इसी आधार पर कोर्ट ने 4 नवंबर को दिए अपने फैसले में आरोपी प्रशांत पाल की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी।
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