'यूपी की तर्ज पर राजस्थान में भी जाति-आधारित रैलियों और स्टीकर पर लगे प्रतिबंध'- अजाक ने लिखा CM भजनलाल को पत्र

अजाक अध्यक्ष श्रीराम चोर्डिया ने अपने पत्र में तर्क दिया है कि राजस्थान राज्य में भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुरूप एक समान अधिसूचना जारी की जानी चाहिए। उन्होंने लिखा कि यह कदम "सामाजिक समरसता, समानता को बढ़ावा देने के साथ-साथ जातीय भेदभाव को कम करेगा।"
 बिहार के सहरसा विधान सभा क्षेत्र में अक्टूबर 16 को आयोजित जनसभा को संबोधित करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
बिहार के सहरसा विधान सभा क्षेत्र में अक्टूबर 16 को आयोजित जनसभा को संबोधित करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी सांकेतिक तस्वीर
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जयपुर- डॉ. अम्बेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी-कर्मचारी एसोसिएशन (AJAK) राजस्थान ने प्रदेश सरकार से उत्तर प्रदेश सरकार की तर्ज पर राज्य में जाति-आधारित रैलियों, वाहनों पर जाति संबंधी स्टीकर और पुलिस अभिलेखों में जाति के उल्लेख पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

अजाक के अध्यक्ष श्रीराम चोर्डिया ने मुख्यमंत्री भजनलाल और मुख्य सचिव को भेजे एक पत्र में यह आग्रह किया है। इस पत्र में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय और उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अधिसूचना का हवाला दिया गया है।

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पत्र में बताया गया है कि दिनांक 16 सितंबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक रूप से जाति के महिमामंडन को 'राष्ट्र विरोधी भावना' करार दिया था। इस निर्णय की पालना में उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 सितंबर को एक अधिसूचना जारी कर सभी जिलाधिकारियों और पुलिस प्रमुखों को निम्नलिखित निर्देश दिए थे:

1. वाहनों से जाति पहचान हटाना: वाहनों पर जाति-आधारित नाम, नारे या स्टीकर लगाए जाने पर केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत कड़ी कार्रवाई और जुर्माना किया जाएगा।

2. जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध: राजनीतिक उद्देश्यों के लिए आयोजित जाति-आधारित सभी रैलियाँ या कार्यक्रम पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेंगी, क्योंकि इन्हें सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा माना गया है।

3. पुलिस रिकॉर्ड से जाति का उल्लेख हटाना: एफआईआर, गिरफ्तारी ज्ञापन और केस डायरी जैसे पुलिस दस्तावेजों से जाति का कॉलम हटाया जाएगा। राज्य के CCTNS पोर्टल को भी अपडेट किया जा रहा है। जाति की जगह आरोपियों की पहचान के लिए उनके माता-पिता दोनों के नाम दर्ज किए जाएंगे। हालांकि, एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के मामलों में कानूनी आवश्यकता के अनुसार जाति का उल्लेख किया जा सकेगा।

4. सार्वजनिक प्रदर्शन हटाना: ऐसे सभी बोर्ड या घोषणाएं हटाई जाएंगी, जो किसी जाति का महिमामंडन करती हों या किसी क्षेत्र को किसी विशेष जाति का इलाका घोषित करती हों।

5. सोशल मीडिया की निगरानी: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की निगरानी की जाएगी और जाति आधारित घृणा फैलाने वाले किसी भी कंटेंट पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

श्री चोर्डिया ने अपने पत्र में तर्क दिया है कि राजस्थान राज्य में भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुरूप एक समान अधिसूचना जारी की जानी चाहिए। उन्होंने लिखा कि यह कदम "सामाजिक समरसता, समानता को बढ़ावा देने के साथ-साथ जातीय भेदभाव को कम करेगा।"

उन्होंने आगे कहा, "साथ ही यह समाज में सामाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने एवं भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगा।"

यदि राजस्थान सरकार भी इसी तरह का प्रतिबंध लागू करती है, तो यह राज्य में जातिगत पहचान को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की प्रथा पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकता है और सामाजिक एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा।

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