शिमला: हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रोहड़ू में जातीय भेदभाव से तंग आकर 12 वर्षीय दलित लड़के की कथित आत्महत्या के मामले में जांच में ढिलाई पर हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग ने कड़ा रुख अपनाया है। आयोग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार धीमन ने मामले के जांच अधिकारी (IO) को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का आदेश दिया है।
धीमन ने जांच अधिकारी एएसआई मंजीत को निलंबित करने और रोहड़ू के पुलिस उपाधीक्षक (DSP) से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगने के निर्देश जारी किए हैं।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला शिमला जिले के एक गांव का है, जहां एक 'सवर्ण' महिला पर आरोप है कि उसने 12 वर्षीय लड़के को अपने घर में घुसने पर गौशाला में बंद कर दिया था, जिसके बाद लड़के ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। मृतक के पिता ने 20 सितंबर को शिकायत दर्ज कराई थी कि 16 सितंबर की शाम को उनका बेटा उन्हें बेहोश मिला था। उसे तुरंत रोहड़ू के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां से उसे शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) रेफर कर दिया गया। अगले दिन इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी।
शिकायतकर्ता पिता ने बताया कि उनकी पत्नी ने उन्हें जानकारी दी थी कि खेलते समय 'सवर्ण' महिलाओं के घर में घुस जाने पर उनके बेटे को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया और गौशाला में बंद कर दिया गया। इस उत्पीड़न से आहत होकर लड़के ने यह खौफनाक कदम उठाया। पुलिस ने महिलाओं के खिलाफ मामला दर्ज किया था, जिन्हें अदालत से अंतरिम जमानत मिल गई थी।
पुलिस जांच पर उठे गंभीर सवाल
आयोग के अध्यक्ष धीमन ने पुलिस की जांच को पूरी तरह से असंतोषजनक करार दिया। उन्होंने कहा, "जब 20 सितंबर को FIR दर्ज की गई, तो मामले को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज नहीं किया गया था। जांच अधिकारी ने मामले की ठीक से जांच नहीं की।"
धीमन ने बताया, "पीड़ित परिवार ने पुलिस को दी शिकायत में साफ तौर पर कहा था कि घर में घुसने पर बच्चे को अछूत बताया गया और घर की शुद्धि के लिए पिता को एक बकरी देने के लिए मजबूर किया गया। इसके बावजूद, पुलिस ने SC/ST एक्ट के तहत मामला दर्ज करना जरूरी नहीं समझा। जब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा, तब जाकर इस अधिनियम के प्रावधानों को जोड़ा गया। लेकिन फिर भी, पुलिस आरोपी महिला को गिरफ्तार करने में नाकाम रही।"
धीमन ने यह भी बताया कि आयोग इस पूरे मामले पर शुरुआत से ही नजर बनाए हुए है। उन्होंने कहा, "1 अक्टूबर को रोहड़ू के SDPO को तीन दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन वह समय पर रिपोर्ट नहीं दे पाए। आयोग को 14 अक्टूबर, 2025 को डीजीपी कार्यालय से रिपोर्ट मिली, जो स्थानीय पुलिस के ढीले रवैये को दिखाता है।"
परिवार को मिली आर्थिक सहायता
आयोग की टीम ने बुधवार को रोहड़ू पहुंचकर जांच अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट ली और मामले के विभिन्न पहलुओं पर पूछताछ की। टीम ने पीड़ित परिवार से भी मुलाकात की और घटना की पूरी जानकारी ली। सरकार की ओर से सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के माध्यम से पीड़ित परिवार को ₹4,12,500 की आर्थिक सहायता प्रदान की गई है। धीमन ने कहा कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद इस मामले पर नजर रखे हुए हैं और उन्होंने आयोग को पीड़ित परिवार की हर संभव मदद करने का निर्देश दिया है।
उच्च न्यायालय ने खारिज की थी जमानत याचिका
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय पहले ही आरोपी महिला की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर चुका है। न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने अपने विस्तृत आदेश में कहा था, "स्टेटस रिपोर्ट और FIR को पहली नजर में देखने से पता चलता है कि आरोपी ने मृतक (अनुसूचित जाति के सदस्य) को पीटा और गौशाला में बंद कर दिया क्योंकि उसने आरोपी के घर को छू लिया था, और वह शुद्धि के लिए एक बकरे की बलि चाहती थी। इसलिए, यह अपराध मृतक की जाति के कारण किया गया। इस स्तर पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि याचिकाकर्ता ने प्रथम दृष्टया SC/ST अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध नहीं किया है।"
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.