MP के छतरपुर विशेष न्यायालय का कड़ा फैसला: सात माह की गर्भवती दलित महिला से दुष्कर्म के आरोपी को आजीवन कारावास

न्यायालय ने कहा- "गर्भवती महिला पर इस प्रकार का कृत्य न केवल उसकी गरिमा पर हमला है, बल्कि यह समाज के नैतिक ढांचे को भी क्षति पहुंचाता है। ऐसे अपराधों के प्रति उदारता उचित नहीं है।"
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भोपाल। सात माह की गर्भवती महिला से दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध में छतरपुर के विशेष न्यायालय ने बड़ा और कठोर फैसला सुनाया है। एससी-एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश उपेंद्र प्रताप सिंह ने आरोपी रामसेवक यादव को आजीवन कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई है। न्यायालय ने इस मामले को अत्यंत गंभीर मानते हुए कहा कि गर्भवती महिला पर इस प्रकार का हमला समाज की आत्मा को झकझोर देने वाला अपराध है, जिसे किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

घटना कैसे हुई

अभियोजन के अनुसार यह घटना 9 जून 2018 की दोपहर करीब 1 बजे की है। पीड़िता अपने घर के पास स्थित कुएं पर पानी भरने गई थी। उसी दौरान गांव का ही निवासी रामसेवक यादव वहां पहुंचा और उसने महिला से छेड़खानी करने लगा। विरोध करने पर आरोपी ने जान से मारने की धमकी देते हुए उसके साथ जबरन दुष्कर्म किया।

घटना के बाद आरोपी मौके से फरार हो गया। पीड़िता ने शाम को अपने पति और सास के लौटने पर पूरी घटना बताई, जिसके बाद थाना मातगुवां में तत्काल रिपोर्ट दर्ज कराई गई। मामला दर्ज होते ही पुलिस ने जांच शुरू की।

सात साल चला प्रकरण

इस गंभीर मामले की जांच एसडीओपी राकेश कुमार पेंड्रो ने की। अभियोजन पक्ष की ओर से प्रभारी उपनिदेशक अभियोजन और विशेष लोक अभियोजक प्रवेश कुमार अहिरवार ने कोर्ट में सशक्त पैरवी पेश की। उन्होंने अदालत को बताया कि पीड़िता गर्भावस्था के सातवें महीने में थी, इसलिए यह अपराध न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी अत्यंत अमानवीय था।

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश ने माना कि अभियोजन ने आरोपी के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में सफलता पाई है।

कड़े दंड का आदेश

न्यायालय ने आरोपी को दो गंभीर धाराओं में दोषी पाते हुए कठोर दंड सुनाया है। एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(V) के तहत अदालत ने आजीवन कारावास और 2,000 रुपये के अर्थदंड का प्रावधान लागू किया। इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(J) के अंतर्गत आरोपी को 10 वर्ष का सश्रम कारावास और 2,000 रुपये अर्थदंड की सजा दी गई। अदालत ने कहा कि गर्भवती महिला के साथ इस प्रकार का अपराध अत्यंत निंदनीय है, इसलिए कठोर दंड देना ही न्याय के अनुरूप है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि गर्भवती अनुसूचित जाति महिला के साथ दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध से समाज में भय और असुरक्षा का वातावरण पैदा होता है। इसलिए कठोर दंड देकर ऐसे अपराधों पर रोक लगाने का संदेश दिया जाना आवश्यक है।

न्यायालय ने कहा- "गर्भवती महिला पर इस प्रकार का कृत्य न केवल उसकी गरिमा पर हमला है, बल्कि यह समाज के नैतिक ढांचे को भी क्षति पहुंचाता है। ऐसे अपराधों के प्रति उदारता उचित नहीं है।"

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