MP में निमाड़ के किसानों का खलघाट में आंदोलन: NH-52 जाम, MSP कर्जमाफी और निर्यात नीति में बदलाव की मांग!

समन्वयक वल्लभ पटेल ने कहा कि अगर सरकार बातचीत के लिए तैयार है तो किसान भी तैयार हैं, लेकिन टालमटोल नहीं चलेगा।
मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन
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भोपाल। मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के बड़वानी, धार, खरगोन और खंडवा यह चार जिलों के किसानों ने मिलकर सोमवार सुबह से धार जिले के खलघाट में नेशनल हाईवे-52 पर जोरदार प्रदर्शन शुरू कर दिया। आंदोलन इतना व्यापक है कि सुबह से हाईवे पर आमजन की आवाजाही ठप हो गई। किसानों ने सड़क के बीचोंबीच बड़े पेड़ रख दिए और उसके ऊपर बैठकर चक्काजाम कर दिया। प्रशासन ने एक लेन से ट्रैफिक शुरू करने की कोशिश की, लेकिन किसान नाराज हो गए और वाहनों के सामने खड़े हो गए। इसके बाद पुलिस ने वाहनों को वापस लौटाना शुरू कर दिया। दोपहर 12.15 बजे के बाद आंदोलन पूरी तरह उग्र हो गया और हाईवे के बीच में पेड़ रखकर रास्ता जाम कर दिया गया।

किसानों की नाराज़गी क्यों भड़की?

निमाड़ क्षेत्र के चार जिलों के हजारों किसान अपनी मुख्य मांगों को लेकर लंबे समय से सरकार को आवेदन दे रहे थे। किसानों का कहना है कि “पांच महीने बीत गए, लेकिन आज तक किसी ने सुनवाई नहीं की।” किसानों की शिकायत है कि न तो फसलों की खरीद सुनिश्चित हो रही है, न ही कर्जमाफी का कोई स्पष्ट रोडमैप। एमएसपी की कानूनी गारंटी के मुद्दे पर सरकार से कोई ठोस जवाब नहीं मिला। किसानों ने साफ कहा कि जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, वे धरनास्थल से उठने वाले नहीं हैं।

ट्रैफिक बहाल करने की कोशिश पर टकराव

सुबह पुलिस ने फोरलेन की एक लेन से ट्रैफिक बहाल करने का प्रयास किया। लेकिन किसानों को यह प्रयास ‘आंदोलन को कमजोर करने’ जैसा लगा, और वे वाहनों के सामने जाकर खड़े हो गए। इससे हाईवे पर तनाव बढ़ गया। इसके बाद पुलिस को मजबूर होकर ट्रैफिक रोकना पड़ा। दोपहर होते-होते किसानों ने सड़क पर बड़ा पेड़ रखकर उसे अवरुद्ध कर दिया, जिससे जाम कई किलोमीटर तक फैल गया। स्थिति संभालने के लिए पुलिस अधिकारियों सहित लगभग 400 जवान मौके पर तैनात किए गए हैं।

राष्ट्रीय किसान महासंघ के पदाधिकारियों ने पहले से ही गांव-गांव जाकर किसानों को खलघाट पहुंचने की अपील की थी। आंदोलन स्थल पर लगातार नए किसान ट्रैक्टरों और वाहनों से पहुंच रहे हैं। संगठन ने स्पष्ट कहा है कि यह लड़ाई लंबी चलेगी, इसलिए किसानों को अपने साथ कंबल, लकड़ी, कंडे, दाल-आटा और दो जोड़ी कपड़े लाने को कहा गया है। इससे संकेत मिलता है कि धरना सिर्फ एक दिन का नहीं, बल्कि लंबा जनआंदोलन बनने की ओर है।

मंत्री ने शादी का हवाला दिया, किसान नहीं माने

शनिवार को कृषि मंत्री एंदल सिंह कंसाना और किसान नेताओं के बीच भोपाल में बातचीत हुई थी, लेकिन बैठक बेनतीजा रही। मंत्री ने मुख्यमंत्री के घर में हो रही शादी का हवाला देते हुए आंदोलन स्थगित करने की अपील की। किसानों ने इसे अनुचित बताया और स्पष्ट कहा कि मुद्दों का समाधान शादी-ब्याह से बड़ा है। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार गंभीरता नहीं दिखा रही।

किसानों की मुख्य मांगें:

मक्का, सोयाबीन और कपास की सरकारी खरीदी पूर्व योजना के अनुसार की जाए।

सभी किसानों का कर्ज माफ किया जाए।

एमएसपी (MSP) की कानूनी गारंटी लागू की जाए।

दलहन, कपास और प्याज के निर्यात पर लगी रोक हटाई जाए।

आयात-निर्यात नीति किसान हित में बनाई जाए।

किसान नेताओं का आरोप है कि गलत निर्यात नीतियों ने उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया है, जिससे फसलें लागत निकालने लायक भी नहीं बिक पाईं।

कांग्रेस भी मैदान में

खलघाट धरनास्थल पर किसानों को संबोधित करते हुए प्रदेश किसान कांग्रेस के महासचिव सुनील चौहान ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार किसान, आदिवासी और मजदूरों की नहीं, बल्कि उद्योगपतियों की सरकार है। उन्होंने कहा कि किसान अगर अपनी ताकत से आंदोलन कर सकते हैं तो सरकार को झुका भी सकते हैं। चौहान ने आरोप लगाया कि किसानों को जानबूझकर हाशिये पर धकेला जा रहा है।

राष्ट्रीय किसान मजदूर यूनियन की चेतावनी- 'प्लान बी' तैयार, सप्लाई बंद करने की धमकी

समन्वयक वल्लभ पटेल ने कहा कि अगर सरकार बातचीत के लिए तैयार है तो किसान भी तैयार हैं, लेकिन टालमटोल नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि “प्लान बी के तहत किसान टोल प्लाज़ा पर लगातार आंदोलन करेंगे और परिवारों की मदद से लॉकडाउन जैसी स्थिति बना देंगे।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि किसान दूध, सब्ज़ी और फल समेत सभी आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बंद कर सकते हैं। इसे आंदोलन का बड़ा दबाव माना जा रहा है।

मानवीयता की मिसाल, एम्बुलेंस को रास्ता दिया

आंदोलन के बीच एक गंभीर मरीज को इंदौर रेफर किया गया था। एम्बुलेंस जब धरनास्थल के पास पहुंची, तो किसानों ने तुरंत रास्ता बनाकर उसे टोल टैक्स के पार निकलवाया। इससे स्पष्ट है कि आंदोलन के बीच भी मानवता और जीवन की प्राथमिकता किसानों ने सबसे ऊपर रखी।

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