
लखनऊ/प्रयागराज: उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) द्वारा जारी नवीनतम विज्ञापन संख्या D-6/E-1/2025 ने प्रदेश की सियासत और प्रतियोगी छात्रों के बीच एक नया भूचाल ला दिया है. 22 दिसंबर 2025 को जारी इस विज्ञापन में विभिन्न विभागों में सैकड़ों पदों पर रिक्तियां निकाली गई हैं, लेकिन इन आंकड़ों की गहराई में जाने पर आरक्षण की एक ऐसी तस्वीर उभरती है जो 'संवैधानिक हकमारी' की ओर इशारा कर रही है.
आंकड़े गवाह हैं कि कई प्रमुख पदों पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की हिस्सेदारी या तो नाममात्र है या पूरी तरह से शून्य कर दी गई है, जबकि अनारक्षित (General) और EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए खजाना खोल दिया गया है.
इस विज्ञापन में सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा 'उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग' (Livestock Department) का है. यहाँ 'वेटनरी ऑफिसर' (Veterinary Officer) के कुल 404 पदों पर भर्ती निकाली गई है.
आरक्षण नियमों के तहत OBC को 27% आरक्षण मिलना चाहिए, जिसका अर्थ है कि लगभग 109 सीटें OBC के खाते में आनी चाहिए थीं. लेकिन आयोग द्वारा जारी तालिका देखिए:
कुल पद: 404
अनारक्षित (UR): 243 (60% से अधिक)
EWS: 40 (पूरा 10% कोटा)
OBC: 00 (शून्य)
यह एक बड़ा सवाल खडा करता है कि जब सामान्य वर्ग को 243 सीटें और EWS को 40 सीटें मिल सकती हैं, तो प्रदेश की सबसे बड़ी आबादी वाले OBC वर्ग के लिए एक भी सीट क्यों नहीं? क्या पशुपालन विभाग में OBC अभ्यर्थियों की आवश्यकता नहीं है?
सिर्फ पशुपालन विभाग ही नहीं, अन्य पदों का विश्लेषण करने पर भी यही पैटर्न दिखाई देता है जहाँ सामान्य वर्ग (General) का दबदबा है और OBC को हाशिये पर धकेला गया है:
1. स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी (Family Welfare Dept): कुल 221 पदों पर विज्ञापन जारी हुआ है. यहाँ 27% आरक्षण के हिसाब से OBC को करीब 59-60 सीटें मिलनी चाहिए थीं.
हकीकत: OBC को मिलीं मात्र 20 सीटें (10% से भी कम).
अनारक्षित (UR): 143 सीटें.
यहाँ सामान्य वर्ग को लगभग 65% सीटें दे दी गई हैं, जो आरक्षण की 50% की सीमा (General Open Competition) से कहीं ज्यादा प्रतीत होती हैं.
2. चिकित्सा अधिकारी (आयुर्वेद): कुल 168 पदों में से:
अनारक्षित (UR): 122 सीटें.
OBC: मात्र 15 सीटें.
यहाँ भी OBC का प्रतिनिधित्व 10% से नीचे है, जबकि उनकी संवैधानिक हिस्सेदारी 27% है.
इन सरकारी नियुक्तियों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि जहाँ भी पद सृजित हुए हैं, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10% सीटों का प्रावधान लगभग हर जगह सख्ती से लागू किया गया है. उदाहरण के लिए, वेटनरी ऑफिसर में 404 में से 40 सीटें EWS को दी गई हैं. लेकिन उसी भर्ती में OBC का कॉलम खाली (00) है. यह विसंगति यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रोस्टर प्रणाली का उपयोग आरक्षित वर्गों को बाहर करने के लिए किया जा रहा है?
अगर हम सिर्फ ऊपर दिए गए तीन प्रमुख पदों (वेटनरी ऑफिसर, स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी, चिकित्सा अधिकारी आयुर्वेद) का कुल योग देखें:
कुल पद: 793
संवैधानिक अधिकार (27% के अनुसार): लगभग 214 सीटें OBC को मिलनी चाहिए थीं.
वास्तविक आवंटन: मात्र 35 सीटें (0 + 20 + 15).
नुकसान: सीधे तौर पर लगभग 179 सीटों का नुकसान.
उत्तर प्रदेश में यह पहली बार नहीं है जब सरकारी भर्तियों में आरक्षण के पालन को लेकर सवाल उठे हैं. पिछले कुछ वर्षों में 69,000 शिक्षक भर्ती घोटाला हो या RO/ARO परीक्षा में धांधली के आरोप, अभ्यर्थी लगातार सड़कों पर हैं. विपक्षी पार्टियां और छात्र संगठन लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार 'एनएफएस' (Not Found Suitable) या रोस्टर के तकनीकी पेंच फंसाकर पिछड़ों और दलितों की आरक्षित सीटों को सामान्य वर्ग में बदल रही है या उन्हें खाली छोड़ रही है.
UPPSC का यह नया विज्ञापन (D-6/E-1/2025) उसी आग में घी डालने का काम कर सकता है. प्रतियोगी छात्रों का कहना है कि यह केवल एक भर्ती का मामला नहीं है, बल्कि यह धीरे-धीरे संस्थानों से सामाजिक न्याय को खत्म करने की एक साजिश है.
22 जनवरी 2026 तक इस आवेदन की अंतिम तिथि है, लेकिन आवेदन भरने से पहले ही प्रदेश के लाखों OBC युवाओं के सामने यह यक्ष प्रश्न खड़ा है कि जब वैकेंसी ही नहीं है, तो वे परीक्षा दें भी तो किसके लिए? क्या सरकार और आयोग इस भारी विसंगति पर कोई स्पष्टीकरण देंगे या फिर इसे 'रोस्टर का नियम' बताकर फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?
द मूकनायक की प्रीमियम और चुनिंदा खबरें अब द मूकनायक के न्यूज़ एप्प पर पढ़ें। Google Play Store से न्यूज़ एप्प इंस्टाल करने के लिए यहां क्लिक करें.