राजस्थान का धर्मांतरण विरोधी कानून: एक ओर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस, इधर कोटा में ईसाई पादरियों पर एक्शन... जानिए क्या है पूरा विवाद!

आरोपी बनाए गए दिल्ली के पादरी चंडी वर्गीज और कोटा के पादरी अरुण जॉन पर आरोप है कि उन्होंने सभा में हिंदू समुदाय के खिलाफ अपमानजनक बयान दिए, राजस्थान सरकार को 'शैतान का राज्य' कहा और कई लोगों का बपतिस्मा कराकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए ललकारा।
राजस्थान धर्मांतरण विरोधी कानून
बीरशेबा चर्च में आयोजित तीन दिवसीय 'स्पिरिचुअल सत्संग' के दौरान लालच देकर धर्मांतरण के आरोप लगाये गए हैं । सोशल मीडिया
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कोटा/जयपुर- राजस्थान के विवादास्पद धार्मिक रूपांतरण विरोधी कानून ने एक साथ दो मोर्चों पर सुर्खियां बटोर ली हैं। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर कानून की वैधता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं दूसरी ओर कोटा में इस कानून के तहत पहला आपराधिक मामला दर्ज हो गया है।

ईसाई मिशनरियों पर 'लालच' देकर धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए पुलिस ने एक्शन ले लिया है। यह मामला न केवल धार्मिक संवेदनशीलता को उजागर कर रहा है, बल्कि राज्य में सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दे सकता है। आइए जानते हैं इस पूरे विवाद की जड़ें और ताजा अपडेट्स...

कानून की शुरुआत और कोटा का पहला केस:

राजस्थान विधानसभा ने 9 सितंबर को मानसून सत्र में 'राजस्थान धार्मिक रूपांतरण निषेध अधिनियम, 2025' पास किया, जिसे 29 अक्टूबर को गृह विभाग ने अधिसूचित कर लागू कर दिया। इस कानून का मकसद धोखा, लालच या जबरदस्ती से होने वाले धर्मांतरण को रोकना बताया गया है। इसमें आजीवन कारावास, 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना, संपत्ति जब्ती और विध्वंस जैसी सख्त सजाएं हैं। हालांकि, 'पैतृक धर्म' में वापसी को इससे छूट दी गई है।

इस कानून की पहली परीक्षा कोटा में हुई, जहां 4 से 6 नवंबर तक बीरशेबा चर्च में आयोजित तीन दिवसीय 'स्पिरिचुअल सत्संग' पर सवाल उठे। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल के स्थानीय नेताओं की शिकायत पर 20 नवंबर रात को बोरखेड़ा थाने में एफआईआर दर्ज की गई। आरोपी बनाए गए दिल्ली के पादरी चंडी वर्गीज और कोटा के पादरी अरुण जॉन पर आरोप है कि उन्होंने सभा में हिंदू समुदाय के खिलाफ अपमानजनक बयान दिए, राजस्थान सरकार को 'शैतान का राज्य' कहा और कई लोगों का बपतिस्मा कराकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए ललकारा।

एफआईआर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा) के साथ राजस्थान अधिनियम की धारा 3 (धर्मांतरण की कोशिश) और 5 (अवैध रूपांतरण) के तहत दर्ज हुई। पुलिस ने कार्यक्रम के वीडियो और सोशल मीडिया लाइवस्ट्रीम क्लिप्स जब्त कर लिए हैं, जिनमें युवाओं के मंच से बपतिस्मा की घोषणा के दृश्य हैं। पादरियों को तीन दिनों में नोटिस का जवाब देने का आदेश दिया गया है, लेकिन अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई।

कोटा के पादरी अरुण जॉन ने 'द हिंदू' को बताया, "हमारे पास छिपाने जैसा कुछ नहीं। कार्यक्रम के वीडियो सार्वजनिक हैं और कोई अवैध काम नहीं हुआ। यह शुद्ध आध्यात्मिक सत्संग था।" वहीं, वीएचपी ने दावा किया कि यह हिंदू युवाओं को निशाना बनाने की साजिश थी।

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राजस्थान के एंटी-कन्वर्जन लॉ पर सुप्रीम कोर्ट का राज्य सरकार को नोटिस: 4 हफ्ते में जवाब दो!

आपको बता दें, कानून पर सवाल उठाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते हफ्ते ही राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। जयपुर कैथोलिक वेलफेयर सोसाइटी की याचिका में कहा गया कि यह कानून 'संवैधानिक रूप से दोषपूर्ण' है, सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का उल्लंघन करता है और राज्य विधानसभा ने अपनी शक्तियों का अतिक्रमण किया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि कानून धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) को प्रभावित करता है। कोर्ट ने सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है।

यह कानून भाजपा शासित राज्यों में एक कड़ी है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में पहले से ऐसे कानून हैं, जो 'घर वापसी' को बढ़ावा देते हुए 'बाहरी' धर्मांतरण को रोकने का दावा करते हैं। विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे 'सांप्रदायिक विभाजन का हथियार' बताया है, जबकि भाजपा इसे 'राष्ट्रीय एकता' का प्रतीक मानती है। कोटा मामले ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है।

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