सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: केवल 'समानता' के आधार पर नहीं मिल सकती जमानत, अपराध की गंभीरता को देखना जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलटा; कहा- अपराध की गंभीरता और भूमिका देखे बिना रिहाई गलत, 'समानता' कोई कानूनी अधिकार नहीं
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए स्पष्ट किया है कि आपराधिक मामलों में किसी आरोपी को जमानत देने के लिए केवल 'समानता' (Parity) यानी सह-आरोपियों को मिली राहत, एकमात्र आधार नहीं हो सकता। हालांकि, अदालतें अक्सर इस सिद्धांत का पालन करती हैं कि 'जमानत नियम है और जेल अपवाद', लेकिन शीर्ष अदालत ने साफ किया है कि इसका मतलब यह नहीं है कि अपराध की परिस्थितियों को नजरअंदाज कर दिया जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलटा

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें हत्या के एक मामले में आरोपी को केवल इसलिए जमानत दे दी गई थी क्योंकि अन्य सह-आरोपियों को जमानत मिल चुकी थी। पीठ ने मंगलवार (1 दिसंबर, 2025) को कहा कि जिस अपराध के लिए आरोपी को गिरफ्तार किया गया है, उससे जुड़ी परिस्थितियों पर उचित ध्यान दिए बिना जमानत की राहत नहीं दी जा सकती।

28 नवंबर के फैसले में कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 28 नवंबर के फैसले में कहा, "अक्सर कहा जाता है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद। इस बात पर जितना जोर दिया जाए कम है। लेकिन साथ ही, इसका अर्थ यह नहीं है कि अपराध की गंभीरता और इसमें आरोपी की संलिप्तता की परिस्थितियों को दरकिनार कर जमानत दे दी जाए।"

कोर्ट ने कहा कि जमानत देते समय अदालत को कई पहलुओं पर विचार करना होता है और शीर्ष अदालत के कई फैसलों में इन विचारों को रेखांकित किया गया है।

हाईकोर्ट से हुई चूक

पीठ ने माना कि हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते समय सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि हाईकोर्ट ने गलती से केवल 'समानता' के आधार पर जमानत दे दी। निचली अदालत ने समानता के सिद्धांत को गलत समझा और इसे सीधे लागू कर दिया, जबकि असल में समानता का पैमाना आरोपी द्वारा निभाई गई भूमिका पर केंद्रित होना चाहिए, न कि केवल इस बात पर कि सभी आरोपी एक ही अपराध में शामिल हैं।

'समानता' का असली अर्थ: अपराध में भूमिका अहम

कानून की सही स्थिति को स्पष्ट करते हुए पीठ ने कहा कि समानता ही जमानत का एकमात्र आधार नहीं हो सकती। कोर्ट ने 'कैम्ब्रिज डिक्शनरी' का हवाला देते हुए समझाया कि 'समानता' (Parity) का अर्थ 'वेतन या पद की समानता' से है।

शीर्ष अदालत ने कहा, "जब समानता के आधार पर किसी अर्जी को तौला जाता है, तो 'स्थिति' (Position) ही निर्णायक होती है। 'स्थिति' की आवश्यकता केवल एक ही अपराध में शामिल होने से पूरी नहीं होती। यहां स्थिति का मतलब अपराध में उस व्यक्ति की भूमिका से है।"

अपराध में अलग-अलग भूमिकाएं

कोर्ट ने विस्तार से समझाया कि एक ही अपराध में अलग-अलग लोगों की भूमिकाएं अलग हो सकती हैं। जैसे:

  • कोई व्यक्ति डराने के इरादे से बड़ी भीड़ का हिस्सा हो सकता है।

  • कोई हिंसा का मुख्य सूत्रधार (instigator) हो सकता है।

  • कोई किसी के उकसाने पर हाथापाई कर सकता है।

  • कोई हथियार चला सकता है या धारदार हथियार से हमला कर सकता है।

कोर्ट ने कहा कि समानता उन लोगों के बीच देखी जाएगी जिन्होंने समान कृत्य किए हैं। जिसने हथियार से हमला किया, उसकी तुलना उससे नहीं की जा सकती जो केवल भीड़ की संख्या बढ़ाने के लिए वहां मौजूद था।

क्या था मामला?

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उत्तर प्रदेश के एक गांव में हुई हत्या के मामले में आया है। यह घटना ग्रामीणों के बीच हुई मौखिक बहस के बाद विवाद हिंसक हो गया था। इस मामले में एक मुख्य आरोपी को जमानत मिलने के बाद, अन्य सह-आरोपियों को भी केवल समानता के आधार पर जमानत दे दी गई थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया है।

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