
प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन को एक अहम निर्देश जारी करते हुए यूपी बार काउंसिल में पंजीकृत वकीलों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने आदेश दिया है कि ऐसे वकीलों का पूरा ब्यौरा जल्द से जल्द एक सारणीबद्ध (Tabular) फॉर्मेट में उपलब्ध कराया जाए।
किन जानकारियों को शामिल करने का है आदेश?
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पुलिस द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट में निम्नलिखित जानकारियां अनिवार्य रूप से शामिल होनी चाहिए:
एफआईआर दर्ज होने की तारीख, संबंधित क्राइम नंबर और लगाई गई धाराएं (Penal provisions)।
संबंधित पुलिस स्टेशन का नाम।
विवेचना (जांच) की वर्तमान स्थिति और अगर जांच पूरी हो चुकी है, तो उसके निष्कर्ष की तारीख।
चार्जशीट दाखिल करने की तारीख।
आरोप तय (Framing of charge) होने की तारीख।
अब तक परीक्षित अभियोजन पक्ष के गवाहों का विवरण और ट्रायल की मौजूदा स्थिति।
क्या है पूरा मामला?
यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने इटावा के एक वकील मोहम्मद कफिल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिकाकर्ता ने जिला अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें एक शिकायत के मामले में पुलिस अधिकारियों को तलब करने की उनकी प्रार्थना को खारिज कर दिया गया था।
मामले के रिकॉर्ड और हलफनामों को देखने के बाद कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता वकील खुद तीन आपराधिक मामलों में फंसा हुआ है। इसके अलावा, उसके सभी भाइयों की पहचान भी आदतन अपराधियों (Hardened criminals) के रूप में की गई है।
कोर्ट ने टिप्पणी की, "इन परिस्थितियों में, यह आकलन करना जरूरी है कि याचिकाकर्ता का ऐसे आपराधिक मामलों में शामिल होना उसकी पेशेवर अखंडता (Professional integrity) को किस हद तक प्रभावित करता है। यह मूल्यांकन यह तय करने के लिए आवश्यक है कि क्या उसका आचरण अदालतों के कामकाज को प्रभावित कर सकता है और क्या वह अपने पेशेवर कर्तव्यों को निष्पक्ष और विश्वसनीय तरीके से निभाने में सक्षम है।"
अपराधिक छवि वाले वकीलों पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी
निर्देश जारी करते हुए कोर्ट ने एक गंभीर अवलोकन किया। कोर्ट ने कहा, "इस तथ्य का संज्ञान लिया गया है कि कई मौकों पर जिला न्यायपालिका का कामकाज उन वकीलों के आचरण के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जिनका आपराधिक इतिहास रहा है। कोर्ट के ध्यान में यह भी आया है कि कई जिलों में, गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे वकील अपने-अपने जिला बार एसोसिएशनों में अधिकार और सत्ता के पदों पर काबिज हैं।"
न्यायमूर्ति दिवाकर ने कहा, "कानूनी प्रणाली को अपनी ताकत केवल वैधानिक प्रावधानों या न्यायिक नजीरों से नहीं मिलती, बल्कि इसकी निष्पक्षता और अखंडता में जनता के विश्वास से मिलने वाली नैतिक वैधता से मिलती है। अधिवक्ता और बार एसोसिएशन के पदाधिकारी एक अद्वितीय संस्थागत स्थिति रखते हैं—वे कोर्ट के अधिकारी भी हैं और पेशेवर नैतिकता के संरक्षक भी। इसलिए, उनका आचरण कानून और व्यावसायिकता से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है।"
रिपोर्ट सौंपने की प्रक्रिया
कोर्ट ने 26 नवंबर को दिए अपने आदेश में डीजीपी (अभियोजन) और यूपी डीजीपी के माध्यम से सभी कमिश्नर, एसएसपी और एसपी को यह व्यापक विवरण तैयार करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने यह भी छूट दी है कि संबंधित अधिकारी इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए यदि कोई अतिरिक्त जानकारी आवश्यक समझें, तो उसे भी अपने विवेक से शामिल कर सकते हैं। यदि जानकारी संवेदनशील है, तो उसे 'सीलबंद लिफाफे' में सीधे कोर्ट के समक्ष या हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से जमा किया जा सकता है।
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