
पटना- आगामी 10 दिसंबर को विश्व स्तर पर मनाए जाने वाले मानवाधिकार दिवस के अवसर पर बिहार की आदर्श सेंट्रल जेल बेऊर के हाई सेक्यूरिटी सेल में बंद पत्रकार रूपेश कुमार सिंह ने जेल बंदियों के मानवाधिकारों की दुर्दशा पर गंभीर चिंता जताई है। 2022 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से लगातार जेल जीवन बिता रहे सिंह ने जेल के एसटीडी फोन से 6 दिसंबर को अपनी पत्नी इप्सा को यह अपील सुनाई, जिसे इप्सा ने द मूकनायक को साझा किया। सिंह ने वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के हनन की तुलना करते हुए जेलों को 'नरकीय व्यवस्था' करार दिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं व मीडिया से जेल बंदियों की आवाज उठाने की अपील की।
रूपेश कुमार सिंह ने कहा, "आगामी 10 दिसंबर को पूरी दुनिया में ऐसे समय में मानवाधिकार दिवस मनाया जाएगा जब पूरी दुनिया में मानवाधिकार पर चौतरफा हमला बढ़ा है। फिलिस्तीन में रोज-रोज अमेरिका के शह पर इजराइल द्वारा मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाई जा रही है, तो यूक्रेन में रूस द्वारा भी यही किया जा रहा है। हम कह सकते हैं कि आज दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है, जहां पर मानवाधिकार का हनन नहीं हो रहा है और मानवाधिकार के हनन के खिलाफ संघर्ष नहीं हो रहा है।"
भारत के संदर्भ में सिंह ने कहा कि देश में रोज हजारों मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं हो रही हैं। "मानवाधिकार के पक्ष में आवाज उठाने वालों को जेलों में डाला जा रहा है या फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है, ताकि कोई हिम्मत न कर सके।" उन्होंने अपनी गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए बताया, "मैं 17 जुलाई 2022 को गिरफ्तार हुआ और 18 जुलाई से जेल में हूं। अपने लंबे जेल जीवन के आधार पर कह सकता हूं कि आज सबसे अधिक मानवाधिकार हनन की घटनाएं जेलों में हो रही हैं।"
" जेलों में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण कई बंदियों की अकाल मृत्यु हो जाती है, तो कई अपंग हो जाते हैं। जेलों में क्षमता से दुगना बंदी रहने के कारण रहने सोने, शौच करने, नहाने आदी में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। "
सिंह ने बिहार-झारखंड की छह जेलों के अपने अनुभव साझा करते हुए जेल व्यवस्था की पोल खोली। उन्होंने आरोप लगाया कि बंदियों को जेल मैनुअल के अनुसार न तो उचित भोजन मिलता है और न ही अन्य सुविधाएं। "लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण कई बंदी अकाल मृत्यु के शिकार हो जाते हैं, तो कई अपंग हो जाते हैं। जेलों में क्षमता से दोगुना बंदी रहने के कारण रहने, सोने, शौच करने, नहाने आदि में भी मशक्कत करनी पड़ती है। जेल अधिकारियों द्वारा बंदियों पर लाठी बरसाना, तू-तड़ाक से बात करना, गाली-गलौज करना तो उनका जन्मसिद्ध अधिकार समझा जाता है। भ्रष्टाचार और घूसखोरी जेल प्रशासन की नस-नस में समाया हुआ है। वहीं जेल की इस नरकीय व्यवस्था के खिलाफ अगर कोई बंदी आवाज उठाता है तो प्रशासनिक लगाकर उन्हें अन्य जेलों में भेज दिया जाता है। जहाँ पहुंचते ही जेल गेट पर उन पर सैकड़ों लाठियां बरसाईं जाती हैं। "
एक बंदी के नाते उन्होंने मानवाधिकार दिवस मना रहे साथियों से अपील की, "आप अपने कार्यक्रमों में हम जेल बंदियों के बारे में भी आवाज उठाएं।"
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