SC/ST एक्ट के मामलों में समझौते के लिए धारा 482 में जाने की जरूरत नहीं, अपील में ही खत्म हो सकता है केस: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साफ की कानूनी स्थिति: वैधानिक उपचार मौजूद होने पर धारा 482 CrPC के इस्तेमाल की जरूरत नहीं, अपील में ही समझौते के आधार पर रद्द हो सकती है कार्यवाही।
इलाहाबाद हाईकोर्ट
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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि SC/ST एक्ट के तहत चल रही आपराधिक कार्यवाही को समझौते (Compromise) के आधार पर सीधे रद्द किया जा सकता है। इसके लिए अब अलग से दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अधिनियम की धारा 14-A(1) के तहत दायर अपील में ही निस्तारण संभव है।

वैधानिक उपचार उपलब्ध होने पर अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग जरूरी नहीं

मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की पीठ ने कहा कि जब कानून में अपील का वैधानिक उपचार (Statutory Remedy) पहले से ही मौजूद है, तो हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों (Inherent Powers) यानी धारा 482 CrPC का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए, न्यायमूर्ति यादव ने गुलाम रसूल खान और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2022) 8 ADJ 691 के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ (Full Bench) द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा जताया।

क्या था 'गुलाम रसूल' मामले में पूर्ण पीठ का मत?

गौरतलब है कि अक्सर आपराधिक कार्यवाही को समझौते के आधार पर रद्द कराने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत याचिका दायर की जाती है। लेकिन, 'गुलाम रसूल' मामले में पूर्ण पीठ ने विशेष रूप से यह मुद्दा उठाया था कि क्या धारा 14-A (अपीलीय तंत्र) के तहत उपाय उपलब्ध होने पर धारा 482 का इस्तेमाल किया जा सकता है?

इस प्रश्न का उत्तर 'नहीं' में देते हुए पूर्ण पीठ ने स्पष्ट किया था:

"अगर पीड़ित व्यक्ति के पास 1989 के अधिनियम की धारा 14A के तहत अपील का उपाय है, तो उसे CrPC की धारा 482 के तहत इस न्यायालय के अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र को लागू करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

न्यायमूर्ति यादव ने इसी फैसले की व्याख्या करते हुए कहा कि SC/ST एक्ट के मामले को धारा 14-A(1) के तहत आपराधिक अपील में ही कंपाउंड (समझौता) किया जा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि

मौजूदा मामला एक आपराधिक अपील से जुड़ा था, जिसमें आईपीसी की धारा 147, 323, 500, 504, और 506 के साथ SC/ST एक्ट की धारा 3(2)(va) के तहत आरोप लगाए गए थे। अपीलकर्ताओं ने मेरठ के विशेष न्यायाधीश (SC/ST एक्ट) द्वारा जारी चार्जशीट और समनिंग ऑर्डर को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि दोनों पक्षों के बीच विवाद पूरी तरह से निजी प्रकृति का था और उन्होंने बिना किसी दबाव या अनुचित प्रभाव के आपस में समझौता कर लिया है। इसके अलावा, एक पिछले आदेश के अनुपालन में, निचली अदालत द्वारा इस समझौते का सत्यापन भी किया जा चुका था।

फैसला और निर्देश

न्यायमूर्ति यादव ने माना कि अपराध पीड़ित की जाति के कारण नहीं किया गया था और चूंकि समझौता हो चुका है, इसलिए कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। गुलाम रसूल मामले के सिद्धांत को लागू करते हुए, एकल पीठ ने कहा कि अपील ही समझौते के लिए उचित मंच है।

परिणामस्वरूप, कोर्ट ने आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए समनिंग ऑर्डर और चार्जशीट सहित पूरी कार्यवाही को रद्द कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए शिकायतकर्ता (विपक्षी संख्या 2) को आदेश दिया कि वह मुआवजे की राशि संबंधित प्राधिकरण को एक सप्ताह के भीतर वापस करे।

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