आगामी जनगणना में अलग से गिने जा सकते हैं ‘अत्यंत कमजोर जनजातीय समूह’ (PVTGs)

सरकार पहली बार आगामी जनगणना में अलग से गिन सकती है अत्यंत कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs)
PVTGs Census 2025
PVTGs Census 2025: पहली बार जनगणना में अलग गिने जाएंगे अत्यंत कमजोर जनजातीय समूहफोटो साभार- इंटरनेट
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नई दिल्ली – जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने पिछले महीने भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त (RGI) को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि आगामी जनगणना में ‘अत्यंत कमजोर जनजातीय समूहों’ (PVTGs) की अलग से गणना की जाए।

मंत्रालय ने अपने पत्र में कहा कि पीवीटीजी परिवारों और व्यक्तियों की सटीक संख्या के साथ-साथ उनके जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं को दर्ज किया जाना चाहिए। मंत्रालय का मानना है कि यह जानकारी पीवीटीजी के लिए लक्षित योजनाओं—जैसे प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM JANMAN)—के प्रभावी क्रियान्वयन में मददगार होगी।

कौन होते हैं PVTGs?

अत्यंत कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs) अनुसूचित जनजातियों (STs) की एक विशेष उप-श्रेणी हैं। इनमें कुछ सामान्य विशेषताएँ पाई जाती हैं—जैसे जनसंख्या में गिरावट या स्थिरता, भौगोलिक रूप से अलग-थलग रहना, कृषि-पूर्व जीवनशैली (शिकार और संग्रहण), आर्थिक रूप से पिछड़ापन और साक्षरता का बेहद निम्न स्तर।

यह श्रेणी 1960-61 में गठित धेबार आयोग की सिफारिशों पर बनी थी। आयोग के अध्यक्ष और तत्कालीन सांसद यू. एन. धेबार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर अनुसूचित जनजातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययन किया था। उनकी रिपोर्ट में पाया गया कि कुछ जनजातियाँ बाकी की तुलना में कहीं अधिक कमजोर स्थिति में थीं।

सबसे पहले, पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) के दौरान 52 समूहों को पीवीटीजी के रूप में चिन्हित किया गया। बाद में 2006 में 23 और जनजातीय समूह जोड़े गए। वर्तमान में देश में कुल 75 पीवीटीजी हैं, जो 18 राज्यों और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में फैले हुए हैं।

क्या पहले कभी अलग से हुई है PVTGs की गिनती?

अब तक किसी भी जनगणना में पीवीटीजी की अलग से गणना नहीं हुई है। ये अनुसूचित जनजातियों की उप-श्रेणी होने के कारण आमतौर पर एसटी की व्यापक सूची में शामिल हो जाते हैं। कई बार एक ही नाम के अंतर्गत कई पीवीटीजी समूह गिने जाते हैं।

दिसंबर 2016 में लोकसभा को दिए गए एक जवाब में मंत्रालय ने बताया था कि 75 पीवीटीजी में से 40 को संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत ‘सिंगल एंट्री’ अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।

उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना में मध्य प्रदेश के बैगा समुदाय को अलग से गिना गया था। लेकिन अबुझ मारिया, भरिया, हिल कोरबा और कैमरों को अलग सूचीबद्ध नहीं किया गया था। बाद में 2013 में संसद के कानून के माध्यम से अबुझ मारिया और हिल कोरबा को छत्तीसगढ़ की एसटी सूची में जोड़ा गया।

संसदीय जवाबों के अनुसार, आरजीआई द्वारा केवल मुख्य एसटी का डेटा ही प्रकाशित किया जाता है, जिसमें उनके उप-समूहों और समानार्थी समूहों की जानकारी भी सम्मिलित होती है।

कितनी है PVTGs की अनुमानित जनसंख्या?

नवंबर 2023 में केंद्र सरकार ने 24,104 करोड़ रुपये की लागत से PM JANMAN योजना की शुरुआत की। इसका उद्देश्य पीवीटीजी समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका और बुनियादी सुविधाओं में सुधार करना है। यह योजना 200 से अधिक जिलों में लागू की जा रही है।

इस योजना के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने संयुक्त रूप से एक व्यापक सर्वेक्षण किया। इसमें पीवीटीजी की बस्तियों का डेटा इकट्ठा किया गया और बुनियादी ढांचे की कमी का आकलन किया गया।

सर्वेक्षण के मुताबिक, देशभर में पीवीटीजी की अनुमानित संख्या 47.5 लाख है। इनमें सबसे ज्यादा 13.22 लाख मध्य प्रदेश में हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 6.7 लाख और आंध्र प्रदेश में करीब 5.18 लाख पीवीटीजी हैं।

2011 की जनगणना में यह भी सामने आया कि देश के 13 पीवीटीजी की आबादी 1,000 से भी कम थी। इनमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के जारवा, ओंगे, सेंटिनलीज़ और शोंपेन शामिल हैं। इसके अलावा उत्तराखंड के राजी, तमिलनाडु के कोटा, ओडिशा के बिरहोर, मध्य प्रदेश के कैमरा और बिहार के सावर, बिरहोर, बिरजिया, कोरवा, परहैया भी इस सूची में आते हैं।

सबसे कम आबादी वाले समूह सेंटिनलीज़ थे, जिनकी संख्या मात्र 15 दर्ज की गई थी। वहीं, सबसे अधिक आबादी 4,14,526 मध्य प्रदेश के बैगा समुदाय की थी।

क्यों जरूरी है अलग से गणना?

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि पीवीटीजी की सही संख्या और उनके सामाजिक-आर्थिक आंकड़े मिलने से योजनाओं के कार्यान्वयन में बड़ी खामियों को दूर किया जा सकेगा। खासकर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी योजनाओं को ज्यादा प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा।

साथ ही, यह जानकारी यह समझने में भी मदद करेगी कि पीवीटीजी की पहचान के लिए तय किए गए मापदंड आज भी प्रासंगिक हैं या उनमें बदलाव की आवश्यकता है।

यह कदम न केवल जनजातीय समूहों की वास्तविक स्थिति को उजागर करेगा, बल्कि उन्हें मुख्यधारा में लाने और उनकी जीवन स्थितियों में सुधार की दिशा में सरकार को ठोस रणनीति बनाने में भी मदद करेगा।

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