
नई दिल्ली- सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी एक्ट) की धारा 3(1)(स) के तहत दर्ज मुकदमे में जातिगत अपमान मानने से इंकार कर दिया है। यह फैसला उत्तर प्रदेश के एक मामले में आया है, जहां दलित समुदाय की महिला सफाई कर्मी ने आरोपियों के विरुद्ध उसके घर में घुसकर मारपीट, मान भंग और जातिगत अपमान के आरोप लगाए थे, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि जातिगत अपमान 'सार्वजनिक दृश्य' में होना अनिवार्य है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि यदि अपमान निजी स्थान पर हुआ, तो यह धारा लागू नहीं हो सकती। अब यह केस केवल आईपीसी की धाराओं के तहत सुना जाएगा।
यह मामला सोहनवीर उर्फ सोहनवीर धामा और अन्य के खिलाफ है, जो उत्तर प्रदेश के एक गांव में रहते हैं। पीड़िता अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखती हैं जिसने आरोप लगाया था कि अपीलकर्ताओं ने उन्हें जातिगत अपमानित किया और हमला किया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि घटना घर के अंदर हुई, जो सार्वजनिक दृश्य नहीं है। कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 8 जुलाई 2025 के फैसले को आंशिक रूप से पलट दिया और केवल आईपीसी की धाराओं 323 (मारपीट) और 504 (उकसाना) के तहत मुकदमा चलने की अनुमति दी।
यह केस उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव का है। पीड़िता (रिस्पॉन्डेंट नंबर 2) अनुसूचित जाति से हैं और गांव में स्वीपर का काम करती हैं। उनका आरोप है कि अपीलेंट नंबर 1 (सोहनवीर उर्फ सोहनवीर धामा) ने कई बार उन्हें अपने घर का कचरा साफ करने को मजबूर किया। मना करने पर धमकी दी कि "तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को फंसवा दूंगा।"
23 जुलाई 2023 की सुबह सफाई करते वक्त विवाद हुआ। पीड़िता के मुताबिक सोहनवीर, उसके बेटे (अपीलेंट नंबर 2) और नौकर (अपीलेंट नंबर 3) ने गाली-गलौज शुरू की। मारपीट के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की। पीड़िता भागकर घर पहुंचीं, लेकिन अपीलेंट्स पीछा करते हुए घर में घुस आए। वहां जातिगत गालियां दीं, कपड़े फाड़े और धमकी दी। अगले दिन (24 जुलाई) पीड़िता के बेटे पर भी हमला हुआ।
पीड़िता ने तुरंत थाने में शिकायत की, लेकिन पुलिस ने दर्ज नहीं की। आखिरकार, 6 अक्टूबर 2023 को स्पेशल जज के पास सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत प्रकरण दर्ज करवाया।
2 दिसंबर 2023 को FIR आईपीसी की धारा 323 (मारपीट), 504 (उकसाना) और SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(s) के तहत दर्ज हुई। साथ ही 26 जुलाई 2023 को नेशनल कमीशन फॉर वुमन (NCW) में भी शिकायत की गई।
आरोपियों/अपीलेंट्स ने सारे आरोपों को नकारा। उनका कहना था कि पीड़िता ने सच्चाई छिपाई। 24 जुलाई को तो पीड़िता का बेटा अपीलेंट नंबर 3 पर चाकू से हमला करने की कोशिश कर रहा था। गंभीर चोटें आईं, इसलिए उसी दिन एक FIR (हत्या का प्रयास) और 308 (कुश्तगी का इरादा) आईपीसी के तहत दर्ज हुई। अपीलेंट्स का कहना है की पीडिता द्वारा शिकायत में देरी (3 महीने), बेटे की चोट की मेडिकल रिपोर्ट न होना आदि सब कुछ झूठे केस का सबूत हैं।
ट्रायल कोर्ट ने 12 सितंबर 2024 को समन जारी किया। अपीलेंट्स ने SC/ST एक्ट की धारा 14-ए(1) के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की। लेकिन 8 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी। हाईकोर्ट का तर्क था कि घटना सार्वजनिक सड़क पर हुई, इसलिए धारा 3(1)(s) लागू होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक रूप से पलट दिया। अपील को आंशिक रूप से मंजूर करते हुए SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(s) के तहत मुकदमे को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आईपीसी की धाराओं के तहत केस चलने की छूट दी। कोर्ट ने माना अपमान घर के अंदर हुआ, जो 'सार्वजनिक दृश्य' नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 3(1)(s) की व्याख्या करते हुए कहा: "जो कोई, अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य न होकर, किसी अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य को जाति नाम से किसी भी स्थान पर सार्वजनिक दृश्य में अपमानित करे... सार्वजनिक दृश्य का मतलब खुला स्थान, जहां लोग देख-सुन सकें। चारदीवारी के अंदर अगर कोई जनता न हो, तो यह सार्वजनिक दृश्य नहीं।" अदालत ने SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(s) के तहत कार्यवाही रद्द की लेकिन आईपीसी की बाकी धाराओं में केस चलेंगे।
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