दलित दूल्हों की घोड़ी उतरवाने से लेकर मटकी के पानी तक: SC/ST आरक्षण में 'क्रीमी लेयर' क्यों है सवर्णवादी साजिश, अजाक ने गिनाई वजहें

संविधान के अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है, जो जातिगत कलंक को स्वीकार करता है। आर्थिक समृद्धि के बावजूद SC वर्ग को कार्यस्थलों और समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
केवल राजस्थान में ही गत 3-4 वर्षों मे 60 दलित दुल्हों को केवल जाति आधार पर अपमानित कर घोडी से नीचे से उतार दिया गया.
केवल राजस्थान में ही गत 3-4 वर्षों मे 60 दलित दुल्हों को केवल जाति आधार पर अपमानित कर घोडी से नीचे से उतार दिया गया.
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जयपुर: भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) को प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक बार फिर से विवाद उठ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में SC/ST आरक्षण में भी OBC की तरह 'क्रीमी लेयर' (आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग को आरक्षण से बाहर करना) लागू करने की मांग की गई है।

इसके जवाब में डॉ अम्बेडकर अनुसूचित जाति अधिकारी- कर्मचारी एसोसिएशन (अजाक) राजस्थान ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन भेजकर इस 'गलत और दुर्भावनापूर्ण' अवधारणा का पुरजोर विरोध किया है और केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट में इसकी पैरवी करने की मांग की है।

अजाक के अध्यक्ष और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी श्रीराम चोरडिया ने एक पत्र में कहा है कि आरक्षण सामाजिक पिछड़ेपन को दूर करने का उपाय है, न कि आर्थिक सहायता का। उन्होंने SC/ST समुदाय के खिलाफ जारी गहरी सामाजिक नफरत और भेदभाव को उजागर करते हुए ताज़ा घटनाओं का हवाला दिया। उन्होंने कहा, " भारतीय इतिहास में हजारों-हजारों वर्ष से व्याप्त रूढ़िवादी एवं मनुवादी व्यवस्था द्वारा SC/ST वर्ग को शिक्षा लेने व सम्पदा अर्जन करने से वंचित किया गया, पीढ़ी दर पीढ़ी निम्नस्तर के कार्य करने के लिए विवश कर सामाजिक रूप से तिरस्कृत, बहिष्कृत व अमानवीयपूर्ण जीवन जीने के लिए बाध्य किया गया, जन्म के आधार पर ऊंच-नीच में बाटा गया, जिसके कारण यह समाज अपने मौलिंक अधिकारों से वचित होकर समाज के निग्नतम पायदान पर जीवन व्यतीत कर रहा है।"

"इस वंचित, शोषित व प्रताडित समाज को हजारों वर्ष से व्याप्त जातिगत असमानता व अस्पृश्यता से मुक्ति दिलवाने तथा प्रजातंत्र में अन्य नागरिकों के समान सम्मानपूर्वक जिंदगी जीने का हक दिलवाने व अन्य समाजों के साथ राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने के लिए भारतीय संविधान में प्रतिनिधित्व की व्यवस्था (आरक्षण) के प्रावधान कर समाजिक न्याय स्थापित करने व समाज व प्रशासन में सभी जातियों की सामाजिक सहभागिता सुनिश्चित करने का प्रयत्न किया गया था।"

केवल राजस्थान में ही गत 3-4 वर्षों मे 60 दलित दुल्हों को केवल जाति आधार पर अपमानित कर घोडी से नीचे से उतार दिया गया.
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चोरडिया ने लिखा, " भारत में जातिगत व्यवस्था के मध्यनजर आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग बेगानी ही है क्योकि केवल राजस्थान में ही गत 3-4 वर्षों मे 60 दलित दुल्हों को केवल जाति आधार पर अपमानित कर घोडी से नीचे से उतार दिया गया है, साथ ही स्कूल (शिक्षा के मंदिर) के दलित छात्र को मटकी से पानी पीने पर तथा दलितों को मूंछ रखने पर ही मौत के घाट उतार दिया।"

उन्होंने जोर देकर कहा कि दलित वर्ग के खिलाफ जाति आधार पर अपराध बढ़ रहे हैं, आर्थिक आधार पर नहीं। अगर आर्थिक आधार पर होती तो दलित IPS अधिकारी को पुलिस सुरक्षा में बिन्दोली नहीं निकाली पड़ती एव दलित व्यक्ति की शव यात्रा मुख्य मार्ग से जाने से तथा मदिर में भी केवल जाति के आधार पर रोका जाता है न कि आर्थिक आधार पर। संविधान के अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है, जो जातिगत कलंक को स्वीकार करता है। आर्थिक समृद्धि के बावजूद SC वर्ग को कार्यस्थलों और समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।(उदाहरण: NCRB 2023 के अनुसार 50,000 वार्षिक अत्याचार)। क्रीमी लेयर का सिद्धान्त इस वास्तविकता को नजरअंदाज करता है।"

अजाक ने चेतावनी दी है कि अगर SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू हुआ तो यह आरक्षण को कमजोर करने का रास्ता खोलेगा, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन होगा।
अजाक ने चेतावनी दी है कि अगर SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू हुआ तो यह आरक्षण को कमजोर करने का रास्ता खोलेगा, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन होगा।

सुप्रीम कोर्ट की याचिका और सरकार से अपील

ज्ञापन में बताया गया है कि रामशंकर प्रजापति बनाम भारत सरकार (रिट याचिका संख्या 682/2025) में SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने की मांग की गई है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 10 सितंबर को जवाब देने का नोटिस जारी किया है।

अजाक ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को निर्देश दें कि वे इस याचिका का विरोध करें और सुनिश्चित करें कि SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू न हो। साथ ही, इस मामले की पैरवी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति की जाए।

चोरडिया ने अपने तर्क में स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 335 और 341 SC/ST को आरक्षण सामाजिक भेदभाव और अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए देते हैं, न कि केवल आर्थिक कमजोरी के आधार पर। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इंद्रा साहनी (1992) और एम. नागराज (2006) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि Court ने खुद माना है कि SC/ST आरक्षण सामाजिक पिछड़ेपन पर आधारित है, आर्थिक स्थिति पर नहीं, और इसीलिए SC/ST के लिए क्रीमी लेयर की अवधारणा को OBC से अलग रखा गया था।

अजाक ने चेतावनी दी है कि अगर SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू हुआ तो यह आरक्षण को कमजोर करने का रास्ता खोलेगा, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन होगा। इससे SC/ST समुदाय के आर्थिक रूप से संपन्न लोगों की उच्च पदों (जैसे IAS, IPS, IRS, न्यायपालिका) तक पहुंच सीमित हो जाएगी, जबकि आरक्षण का मकसद प्रशासन और समाज में इन वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।

ज्ञापन में कहा गया है कि पहले से ही निजीकरण, आउटसोर्सिंग, संविदा नियुक्तियों और रिक्तियां न भरने जैसे तरीकों से आरक्षण के सिद्धांत की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। क्रीमी लेयर इसी श्रृंखला की एक और कड़ी है जिसका उद्देश्य दलित-आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना है

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