नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को एक जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। यह याचिका अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय के रामाशंकर प्रजापति और यमुना प्रसाद ने दाखिल की थी, जिसमें SC/ST आरक्षण के भीतर आर्थिक आधार पर प्राथमिकता देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अमीर SC/ST परिवारों ने आरक्षण का लाभ अधिक हासिल कर लिया है, जिससे गरीब तबके के लोग पीछे रह गए हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमल्या बागची ने इस याचिका के व्यापक प्रभाव को देखते हुए सरकार से 10 अक्टूबर, 2025 तक जवाब मांगा है। इस मामले ने भारत की आरक्षण नीति पर बहस को फिर से शुरू कर दिया है, जिस पर रिटायर्ड जज अनिल वैद्य ने SC/ST समुदायों के लिए Creamy Layer लागू करने के संविधानिक और सामाजिक जोखिमों को लेकर आशंका जाहिर की है।
रिटायर्ड जज अनिल वैद्य कहते हैं कि SC/ST आरक्षण में Creamy Layer लागू करना डॉ. बी.आर. अंबेडकर के संविधानिक दृष्टिकोण से भटकाव होगा। 1930–32 के राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस और संविधान सभा की बहसों के दौरान अंबेडकर ने, दलित और आदिवासी समुदाय के लिए, चाहे आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, सभी SC/ST व्यक्तियों के लिए सामाजिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की पैरवी की थी।
वैद्य ने धनी SC/ST हस्तियों जैसे दशरथ पाटिल, राजाभाऊ खोब्रागड़े और अमृतराव रानखंबे का उदाहरण दिया, जिन्होंने बिना किसी आर्थिक भेदभाव के आरक्षण का लाभ उठाया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5), 16(4) और 16(5) का हवाला दिया, जो आरक्षण को Creamy Layer के बिना लागू करने की अनुमति देते हैं। 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के फैसले में नौ-जजों की पीठ ने स्पष्ट रूप से SC/ST को Creamy Layer के दायरे से बाहर रखा था। वैद्य ने चेतावनी दी कि न्यायिक हस्तक्षेप से इस सिद्धांत को बदलना अंबेडकर के सामाजिक न्याय के दर्शन को कमजोर करेगा।
वैद्य ने SC/ST समुदायों के भीतर आर्थिक आधार पर विभाजन पैदा होने के खतरे को रेखांकित किया। Creamy Layer नीति से समुदाय के धनी और गरीब सदस्यों के बीच तनाव बढ़ सकता है, जिससे ऐतिहासिक भेदभाव के खिलाफ उनकी सामूहिक लड़ाई कमजोर होगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि आर्थिक रूप से बेहतर SC/ST व्यक्ति भी जातिगत भेदभाव जैसे नौकरियों में झूठे आरोप, बर्खास्तगी या निचले पदों पर तैनाती आदि का सामना करते हैं। अगर उन्हें आरक्षण से बाहर कर दिया जाता है, तो वे सामान्य वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर होंगे, जहां पूर्वाग्रही चयन बोर्ड उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे समुदाय के भीतर असमानता बढ़ सकती है, जो PIL के मकसद के विपरीत होगा।
वैद्य ने एक बड़ा सवाल उठाया कि क्या Creamy Layer में आने वाले SC/ST व्यक्ति अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के संरक्षण से भी वंचित हो जाएंगे?
वैद्य ने 1951 के डोराई चंपकन बनाम मद्रास सरकार मामले का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को रद्द कर दिया था, जिसके बाद संविधान में अनुच्छेद 15(4) के तहत संशोधन किए गए। उन्होंने चेतावनी दी कि बिना सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श के आरक्षण ढांचे में बदलाव करने से उस नाजुक संतुलन को बिगाड़ा जा सकता है, जो ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों की रक्षा के लिए स्थापित किया गया था, जिससे आगे कानूनी और सामाजिक चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।
1 अगस्त, 2024 को पंजाब सरकार बनाम देवेंद्र सिंह और आंध्र प्रदेश केस में सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST के लिए Creamy Layer की सिफारिश की थी। वैद्य ने सरकार, कानून निर्माताओं और वकीलों से सावधानी बरतने की अपील की है, ताकि सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को बचाया जा सके।
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