नई दिल्ली - उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक साधारण-सी धार्मिक जुलूस ने पूरे देश को हिला दिया है, जहां एक बैनर पर लिखे 'आई लव मुहम्मद' के शब्दों ने न सिर्फ स्थानीय तनाव को जन्म दिया, बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर की मुहिम को जन्म दे दिया जो आज भी थमने का नाम नहीं ले रही। इस आन्दोलन में मुस्लिम समुदाय के साथ अब अन्य धर्मों के लोग भी साथ जुड़ रहे हैं और लोगों का मानना है कि यह अब धार्मिक आक्रोश का मुद्दा नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल बना गया है।
यह घटना 4 सितंबर को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर रावतपुर के सैयद नगर इलाके में घटी, जब मुस्लिम समुदाय के युवाओं ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रति अपनी मोहब्बत और अकीदत जताने के लिए एक ट्रैक्टर पर बड़ा-सा बैनर लगाया, जिसमें साफ-साफ लिखा था 'आई लव मुहम्मद'।
यह बैनर नबी अकरम की शान में एक सच्चे दिल की पुकार था, जो इस्लामी आस्था का अभिन्न हिस्सा है, जहां हर मुसलमान के लिए पैगंबर की मोहब्बत माता-पिता से भी ऊपर रखी जाती है। लेकिन कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों के सदस्यों ने इसका विरोध किया, दावा किया कि यह 'नई परंपरा' है और जुलूस के रास्ते पर धार्मिक पोस्टर्स फाड़े गए। झड़प हुई, बैनर तोड़ दिया गया, और पुलिस ने हस्तक्षेप कर जुलूस को शांत किया, लेकिन कोई तत्काल एफआईआर नहीं दर्ज की गई।
कुछ दिनों बाद, 9 सितंबर को कानपुर पुलिस ने अचानक मोर्चा खोल दिया और रावतपुर थाने में एक एफआईआर दर्ज की, जिसमें 12 नामजद मुस्लिम युवाओं- शराफत हुसैन, सबनूर आलम, बाबू अली, मोहम्मद सिराज आदि के साथ-साथ 12-15 अज्ञात व्यक्तियों और दो वाहनों को आरोपी बनाया गया। भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (धार्मिक आधार पर समूहों के बीच दुश्मनी भड़काना) और 299 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा) के तहत यह केस दर्ज हुआ, जिसमें कहा गया कि बैनर लगाना 'नई रिवायत' थी जो साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ सकती थी।
डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस दिनेश त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि यह बैनर के कंटेंट से ज्यादा जुलूस के 'नए स्थान' पर लगाने और आपसी आरोपों से जुड़ा था, लेकिन आलोचकों ने इसे एकतरफा कार्रवाई करार दिया। वीडियो सबूतों में हिंदुत्व समूहों द्वारा बैनर तोड़ने की घटना साफ दिख रही थी, फिर भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिससे मुस्लिम समुदाय में गुस्सा भड़क गया। यह एफआईआर करीब 25 मुस्लिम नौजवानों को निशाना बनाने वाली लगी, और यहीं से 'आई लव मुहम्मद' का नारा एक विरोध का प्रतीक बन गया।
इस घटना ने सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलाव किया, जहां #ILoveMuhammad हैशटैग ने रिकॉर्ड तोड़ दिया। 15 सितंबर को एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट किया, 'आई लव मुहम्मद कहना अपराध नहीं है, अगर है तो मैं सजा भुगतने को तैयार हूं, लेकिन मुसलमानों को पैगंबर के प्रति मोहब्बत जताने की सजा न दी जाए।' इस पोस्ट को लाखों व्यूज मिले, और जल्द ही फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर यह ट्रेंड करने लगा। मुसलमानों ने न सिर्फ बैनर लगाए, बल्कि नात शरीफ पढ़कर, वीडियो शेयर करके और प्लेकार्ड उठाकर अपनी अकीदत का इजहार किया।
कानपुर से शुरू होकर यह मुहिम उत्तर प्रदेश के उनाव, महराजगंज, कौशांबी जैसे जिलों में फैली, जहां जुमे की नमाज के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। हैदराबाद, नागपुर, मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ और आगरा तक यह लहर पहुंच गई, जहां महिलाओं ने विधान भवन के बाहर धरना दिया और भीम आर्मी चीफ और नगीना सांसद चन्द्रशेखर आज़ाद ने भी समर्थन जताया। बरेली की दरगाह-ए-आला हजरत ने एफआईआर को 'गैर-कानूनी' बताकर निंदा की, जबकि मुस्लिम कौमी यूथ फोरम ने पुलिस कार्रवाई रोकने की मांग की।
लेकिन यह मुहिम अब सिर्फ धार्मिक आक्रोश तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल बन गई। मुसलमानों के लिए पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सिर्फ आखिरी रसूल नहीं, बल्कि जिंदगी का केंद्र हैं, उनकी सीरत, अख्लाक और तालीमात हर दिल में बसी हैं। इस मुहिम के जरिए वे दुनिया को बता रहे हैं कि नबी की शान में कोई गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं होगी, और यह मोहब्बत का पैगाम है जो अमन और एतिराम सिखाता है। 20 सितंबर को जुमे के दिन पूरे देश में मस्जिदों के बाहर हजारों लोग बैनर लेकर सड़कों पर उतरे, 'आई लव मुहम्मद' के नारे लगाए और एफआईआर वापस लेने की मांग की। हालांकि कुछ जगहों पर तनाव बढ़ा, उनाव में पथराव, महराजगंज में 64 के खिलाफ केस, और पिलीभीत में तीन गिरफ्तारियां हुईं, फिर भी ज्यादातर प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी समर्थन दिया, जबकि कुछ कट्टरपंथी आवाजें जैसे बरेली के मौलाना तौकीर रजा ने एक हफ्ते का अल्टीमेटम दिया, जो हिंसा को हवा दे सकती है।
यह मुहिम थमने का नाम नहीं ले रही, और अब व्लॉगर्स से लेकर पॉलिटिशियनों तक इसका समर्थन कर रहे हैं, जो इसे एक जन-आंदोलन बना रहा है। हाल ही में, 23 सितंबर को कर्नाटक में कांग्रेस नेता सैयद अशरफ ने 'आई लव मुहम्मद' और 'आई लव इंडिया' कैंपेन लॉन्च किया, जिसमें उन्होंने कहा कि यह न सिर्फ धार्मिक मोहब्बत है बल्कि देशभक्ति का प्रतीक भी।
पत्रकार करिश्मा सिंह का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमे वे कहते दिखती हैं कि, " मैं हिंदू लड़की हूं और गर्व से बोलती हूं I Love Muhammad, मुझे जेल में डाल दो".
मुंबई की सोशल एक्टिविस्ट मरजिया पठान ने वीडियो में चैलेंज दिया, 'मैं सीना तानकर कहूंगी आई लव मुहम्मद, मेरे ऊपर एफआईआर करो तो करो।' इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकील और काउंसलर मुमताज ने भी वीडियो शेयर कर समर्थन जताया, जबकि पत्रकार मोहम्मद साद ने पोस्ट किया कि यह आस्था का सवाल है।
व्लॉगिंग वर्ल्ड में मोहम्मद शादाब खान ने बच्चों के वीडियो शेयर किए, जहां वे बेझिझक नारा लगा रहे हैं, और शादाब चौहान जैसे यूजर्स ने पैगंबर को अपना 'हीरो, लीडर और गाइड' बताते हुए पोस्ट किए। एआईएमआईएम के वारिस पठान ने मुंबई के बायकुल्ला में रैली का नेतृत्व किया, जबकि पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि दशकों बाद मुसलमानों में ऐसा गुस्सा जागा है। यहां तक कि सूफी फोरम ने भी शांतिपूर्ण समर्थन की अपील की।
इस मुहिम की ताकत यही है कि यह सिर्फ कानपुर की घटना नहीं, बल्कि पूरे मुल्क में फैली बेचैनी का प्रतीक बन गई है, क्या मुल्क में राय की आजादी इतनी सिकुड़ गई है कि नबी की मोहब्बत जताना भी अपराध लगे?
प्रशासन ने बातचीत का दौर शुरू किया है, लेकिन एफआईआर अभी भी कायम है, और कोई गिरफ्तारी कानपुर में नहीं हुई। पिलीभीत जैसी जगहों पर नई गिरफ्तारियां हुईं, जबकि हैदराबाद में नमाज के बाद प्रदर्शन हुए। क्या यह आंदोलन और तूल पकड़ेगा, या बीच का रास्ता निकलेगा? क्या उन अफसरों पर कार्रवाई होगी जिन्होंने एकतरफा एक्शन लिया? ये सवाल अब हवा में तैर रहे हैं, लेकिन एक बात साफ है- 'आई लव मुहम्मद' का नारा अब सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि मुसलमानों की एकजुटता और आस्था की मिसाल बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना रोचक होगा कि क्या सरकार इस मुहिम को समझेगी या यह साम्प्रदायिक तनाव को नई हवा देगी, लेकिन फिलहाल तो यह मोहब्बत की लहर पूरे भारत को लपेट रही है।
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