संविधान माह विशेष: 26 नवंबर 1949 में पारित हुआ था संविधान, लेकिन चार दिन बाद ही आरएसएस ने 'ऑर्गेनाइजर' में लिखा- 'हम इसे रद्द करते हैं, मनुस्मृति चाहिए!'

14 अगस्त 1947 को ऑर्गनाइजर ने तिरंगे का विरोध करते हुए लिखा था कि तीन रंगों वाला झंडा हिंदू कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
संविधान पारित होने के चार दिन बाद ही आरएसएस के विवादास्पद एडिटोरियल में संविधान रद्द करने और मनुस्मृति की मांग की गयी थी।
संविधान पारित होने के चार दिन बाद ही आरएसएस के विवादास्पद एडिटोरियल में संविधान रद्द करने और मनुस्मृति की मांग की गयी थी।ai से निर्मित इमेज
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नई दिल्ली- यह माह संविधान उत्सव मनाने का है, क्योंकि 26 नवंबर 1949 ही वो ऐतिहासिक दिन था जब संविधान सभा ने भारत का संविधान पारित किया था। यह वह दस्तावेज था जिसने एक विविधतापूर्ण, समावेशी और लोकतांत्रिक राष्ट्र की नींव रखी, जहां हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार मिला। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी संविधान के पारित होने के महज चार दिन बाद, 30 नवंबर 1949 को, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र 'ऑर्गेनाइजर' ने एक एडिटोरियल छापा, जिसमें खुलेआम लिखा गया- 'हम इसको रद्द करते हैं। हम इसको लात मारते हैं। हमको मनुस्मृति चाहिए।'

यह एडिटोरियल न केवल संविधान की आत्मा पर प्रहार था, बल्कि आरएसएस की विचारधारा का आईना भी था, जो आज भी संगठन के 100 वर्ष पूरे होने के संदर्भ में बहस का केंद्र बिंदु बना हुआ है। स्टैंड-अप कॉमेडियन कुनाल कामरा के हालिया पॉडकास्ट में दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर और लेखक शम्सुल इस्लाम ने आरएसएस के दस्तावेजों से ऐसे कई खुलासे किए, जो आम आदमी को शायद आज भी मालूम न हों। इस्लाम ने आरएसएस को 'गंदगी का महासागर' करार देते हुए कहा कि संगठन का असली टारगेट न केवल अल्पसंख्यक हैं, बल्कि हिंदू समाज का बहुलवाद और बराबरी की लड़ाई भी है, और संविधान जैसी प्रगतिशील संस्थाओं को हमेशा से चुनौती देता रहा है।

संविधान पारित होने के चार दिन बाद ही आरएसएस के विवादास्पद एडिटोरियल में संविधान रद्द करने और मनुस्मृति की मांग की गयी थी।
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कुणाल कामरा के नोप पॉडकास्ट में बीते दिनों 'द RSS फाइल्स' नाम से प्रसारित वीडियो रिपोर्ट में प्रो. इस्लाम ने संविधान के उस ऐतिहासिक पल को जोड़ते हुए बताया कि जब देश आजादी की उमंग में था, तब आरएसएस ने 'ऑर्गेनाइजर' के माध्यम से मनुस्मृति को ही सच्चा संविधान घोषित कर दिया। उन्होंने मनुस्मृति के चैप्टर एक, आठ और नौ के श्लोक उद्धृत करते हुए कहा कि यह किताब मुसलमानों या ईसाइयों के खिलाफ नहीं, बल्कि हिंदुओं के बीच ही असमानता को स्थायी बनाने वाली है। 'अनादि ब्राह्मण ने लोक कल्याण के लिए अपने मुंह से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, जांघ से वैश्य और चरणों से शूद्र उत्पन्न किए,' इस्लाम ने श्लोक 31 का हवाला देते हुए कहा, और जोड़ा कि शूद्रों का एकमात्र कर्तव्य तीनों वर्णों की निस्वार्थ सेवा है, बिना सवाल उठाए। उन्होंने चैप्टर आठ के श्लोक 272 का जिक्र किया, जहां शूद्र द्वारा ब्राह्मण को धर्म उपदेश देने पर उसके मुंह और कान में गर्म तेल डालने की सजा बताई गई है। 'उच्च वर्णों के साथ बैठने की इच्छा रखने वाले शूद्र की कमर को दागकर निकाल भगाना चाहिए, या उसके नितंब को काट देना चाहिए ताकि न मरे न जिए,' श्लोक 280 को उद्धृत करते हुए इस्लाम ने सवाल उठाया कि क्या यही वह संविधान है जो आरएसएस चाहता था?

इस्लाम कहते हैं कि इन सब बातों पर देश डिस्कस नहीं कर रहा है। केवल अंबेडकर साहब ने इसका मुद्दा बनाया। अंबेडकरवादियों ने बनाया। लेकिन जो दूसरे बाहर के लोग हैं, उन्होंने इस सवाल को नहीं बनाया। और जब अंबेडकर साहब ने ये सवाल उठाए तो उनको कहा अरे यार ये तो ये तो दलितों की बात कर रहा है। दलितों का मसीहा है।"

कुणाल ने हैरानी जताते हुए कहा कि यह सब हिंदू समाज के भीतर का संकट है, जो बाहर के दुश्मन गढ़कर छिपाया जाता है। इस्लाम ने स्पष्ट किया कि सावरकर ने मनुस्मृति को वेदों के बाद सबसे पूजनीय ग्रंथ बताया था, और आरएसएस ने संविधान को 'रद्द' करने का ऐलान करके अपनी असली मंशा उजागर कर दी।

पॉडकास्ट में इस्लाम ने आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार की पृष्ठभूमि से जोड़ते हुए कहा कि 1925 में आरएसएस की स्थापना ही गांधी की हिंदू-मुस्लिम एकता की विचारधारा के खिलाफ हुई थी। हेडगेवार, जो कांग्रेस के नेता थे, ने खिलाफत आंदोलन के समर्थन में गरम भाषण देकर 11 महीने की सजा काटी, लेकिन बाद में गांधी की 'सभी धर्मों का एक राष्ट्र' वाली सोच को बर्दाश्त न कर संगठन बना लिया। इस्लाम ने बताया कि 'गोलवलकर के 'बंच ऑफ थॉट्स' के चैप्टर 16 में आंतरिक खतरे के रूप में मुसलमान, ईसाई और कम्युनिस्टों को निशाना बनाया गया है,' और जोड़ा कि मुसलमानों को पाकिस्तानी दलाल, ईसाइयों को पादरिस्तान बनाने वाले और कम्युनिस्टों को समाजवाद लाने वाले करार देकर इन्हें खत्म करने की वकालत की गई। लेकिन संविधान के संदर्भ में उन्होंने 14 अगस्त 1947 के 'ऑर्गेनाइजर' एडिटोरियल का जिक्र किया, जहां तिरंगे को 'मनहूस' और 'तीन रंगों वाला बुरा प्रभाव' बताते हुए कहा गया कि 'हिंदू इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे।' कुणाल ने टिप्पणी की कि आज जब आरएसएस के लोग सत्ता में हैं, तब ये पुराने दस्तावेज क्यों भुला दिए जाते हैं? इस्लाम ने जवाब दिया कि आरएसएस ने कभी स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया; 1942 के क्विट इंडिया में हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ सरकारें चलाईं, और गोलवलकर ने ब्रिटिश राज को 'प्राकृतिक' ठहराया।

शम्सुल इस्लाम का मानना है कि आरएसएस का असली निशाना मुसलमान या ईसाई नहीं, बल्कि हिंदू समाज ही है। उसका लक्ष्य हिंदू समाज में समानता, बहुलवाद और सामाजिक न्याय की लड़ाई को खत्म करना है।
शम्सुल इस्लाम का मानना है कि आरएसएस का असली निशाना मुसलमान या ईसाई नहीं, बल्कि हिंदू समाज ही है। उसका लक्ष्य हिंदू समाज में समानता, बहुलवाद और सामाजिक न्याय की लड़ाई को खत्म करना है। कुणाल कामरा के पॉडकास्ट से स्क्रीन शॉट

'हिंदुओं की 'नस्ल' को 'सुधारने' के लिए उत्तर भारत से नंबूदरी ब्राह्मणों को केरल भेजा'

आरएसएस के 100 साल पूरे होने के संदर्भ में इस्लाम के खुलासे और भी चौंकाने वाले थे, जो आम आदमी की समझ से परे हैं। उन्होंने गोलवलकर की 1960 की गुजरात यूनिवर्सिटी स्पीच 'क्रॉस ब्रीडिंग इन हिंदू हिस्ट्री' का हवाला दिया, जहां दक्षिण भारत की हिंदू नस्ल को 'अशुद्ध' बताते हुए नंबूदरी ब्राह्मणों को सुधारक के रूप में पेश किया गया। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत और केरल में हिंदुओं की 'नस्ल' को 'सुधारने' के लिए उत्तर भारत से नंबूदरी ब्राह्मणों को भेजा गया था और उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई थी कि ब्राह्मणों को छोड़कर अन्य हिंदुओं (शूद्रों, क्षत्रियों, वैश्य) का पहला बच्चा एक नंबूदरी ब्राह्मण से ही पैदा होना चाहिए। यह घटना आरएसएस की मानसिकता और उसके जातिवादी, नस्लवादी एजेंडे की पोल खोलने के लिए काफी है।

इस्लाम ने गीता प्रेस की किताबों का जिक्र किया, जो रेलवे स्टेशनों पर बिकती हैं और 2024 में गांधी शांति पुरस्कार पा चुकी हैं। स्वामी रामसुखदास की 'गृहस्थ में कैसे रहें' में पत्नी को पीटने को 'पूर्व जन्म का बदला' बताया गया है, और बलात्कार पीड़ित को 'चुप रहना बेहतर' कहा गया। सती प्रथा को 'कर्तव्य' करार देने वाली ये किताबें आरएसएस की बुक स्टॉल्स पर उपलब्ध हैं। 'आरएसएस महिलाओं को 'सेविकाएं' मानता है, जबकि पुरुष 'स्वयंसेवक',' इस्लाम ने राष्ट्र सेविका समिति का उदाहरण देकर कहा, जहां महिलाओं को 'इज्जत की रक्षा' और 'मीठी भाषा' की शपथ दिलाई जाती है।

एपिसोड के अंत में इस्लाम ने अपील की कि पेरियार का सेल्फ रेस्पेक्ट मूवमेंट, अंबेडकर का डिप्रेस्ड क्लासेस मूवमेंट और भगत सिंह की नौजवान भारत सभा को जिंदा करना होगा, ताकि आरएसएस जैसे संगठनों का असली एजेंडा जो हिंदू समाज को तोड़ने का है – उजागर हो। कुणाल ने समापन में कहा, "100 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन सवाल वही है: आरएसएस का ऑब्जेक्टिव क्या है? गोलवलकर की यह स्पीच जवाब देती है – नफरत और विभाजन।" इस एपिसोड के क्लिप्स सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं जहां युवा इसे आरएसएस की विचारधारा पर नई बहस की शुरुआत बता रहे हैं।

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